Inside Story: अमृतसर ईस्ट में सिद्धू Vs मजीठिया, जानें माझे के सरदार ने क्यों दी कांग्रेस के सरदार को चुनौती?

बताते चलें कि पंजाब की राजनीति में बिक्रम मजीठिया को माझे का सरदार बुलाया जाता है। उनकी अपने इलाके मजीठा समेत अमृतसर और आसपास जबरदस्त पकड़ है। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि सिद्धू को अमृतसर में मजबूत करने में मजीठिया ने भी योगदान दिया था, तभी सिद्धू यहां से दो बार लोकसभा सांसद (2004 से तक 2014) चुने गए।

मनोज ठाकुर, चंडीगढ़। पंजाब विधानसभा चुनाव में अमृतसर ईस्ट (पूर्व) सबसे हॉट सीट बन गई है। यहां से शिरोमणि अकाली दल ने पार्टी के तेजतर्रार नेता बिक्रमजीत सिंह मजीठिया को उम्मीदवार बनाकर राजनीतिक माहौल में गर्मी ला दी है। चूंकि, इस सीट से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और सिटिंग विधायक नवजोत सिंह सिद्धू चुनावी मैदान में हैं। सिद्धू और मजीठिया के बीच सियासी अदावत जगजाहिर है। ऐसे में माना जा रहा है कि अब इस सीट पर सबसे रोमांचक मुकाबला होने वाला है। Asianet News Hindi ने पहले ही यह जानकारी दी थी कि बिक्रम मजीठिया, सिद्धू के खिलाफ चुनाव लड़ सकते हैं। 

बताते चलें कि पंजाब की राजनीति में बिक्रम मजीठिया को माझे का सरदार बुलाया जाता है। उनकी अपने इलाके मजीठा समेत अमृतसर और आसपास जबरदस्त पकड़ है। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि सिद्धू को अमृतसर में मजबूत करने में मजीठिया ने भी योगदान दिया था, तभी सिद्धू यहां से दो बार लोकसभा सांसद (2004 से तक 2014) चुने गए। इतना ही नहीं, जब इस संसदीय सीट से भाजपा ने दिवंगत अरुण जेटली को प्रत्याशी बनाया तो सिद्धू नाराज हो गए थे। हालांकि, पार्टी ने उन्हें साधने के लिए 2016 में राज्यसभा सांसद बनाया। कहा जाता है कि सिद्धू का गुस्सा शांत नहीं हुआ और वे भाजपा से रिजाइन करके कांग्रेस में चले गए। सिद्धू 25 अप्रैल 2016 से लेकर 18 जुलाई 2016 तक राज्यसभा के सदस्य रहे।

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सिद्धू की पत्नी भी रहीं इस सीट से विधायक
बाद में 2017 के चुनाव में सिद्धू कांग्रेस से अमृतसर पूर्व से चुनाव लड़े और जीते। इस सीट से पहले उनकी पत्नी नवजोत कौर भाजपा के टिकट 2012 से 2016 तक विधायक रहीं। तब अकाली सरकार में उन्हें मुख्य संसदीय सचिव बनाया गया था। हाल के घटनाक्रम के बाद इस सीट पर सभी की नजर टिकी हुई थी कि क्या मजीठिया यहां से चुनाव लड़ेंगे या नहीं। मजीठिया अभी तक मजीठा से चुनाव लड़ते रहे हैं और वहां के सिटिंग विधायक भी हैं।

क्या खासा है यह मुकाबला 
नवजोत सिंह सिद्धू का अकाली दल खासतौर पर सुखबीर बादल और बिक्रम मजीठिया के साथ छत्तीस का आंकड़ा है। अमृतसर के स्थानीय पत्रकार अनिल शर्मा ने बताया कि इसके पीछे वजह यह थी कि जब सिद्धू भाजपा में थे तो पंजाब में अकाली दल सरकार थी। इस दौरान सिद्धू की ज्यादा नहीं चलने देते थे। इस वजह से सिद्धू नाराज रहते थे। उनकी कोशिश रहती थी कि भाजपा अकाली सरकार से अपना समर्थन वापस ले। इसे लेकर उन्होंने पूरी ताकत लगाई। लेकिन कामयाब नहीं हो सके। बताया जाता है कि सिद्धू की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ रही थी। वह सियासी तौर पर और ज्यादा पावरफुल होना चाह रहे थे। अकाली दल के साथ ऐसा होता संभव नहीं था। इस वजह से अकाली दल और सिद्धू के बीच विवाद बढ़ता गया। 

मजीठिया और सुखबीर बादल का जबरदस्त विरोध किया 
सिद्धू ने बिक्रम मजीठिया और सुखबीर बादल का सबसे ज्यादा विरोध किया। मजीठिया के ड्रग्स केस में दर्ज एफआइआर में भी किसी ने किसी स्तर पर सिद्धू का एक वजह बताया जा रहा है। हालांकि सिद्धू इसे नशे के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता करार देते हैं। लेकिन जानकार कहते हैं कि वजह दूसरी है। अकाली दल की ओर से भी समय-समय पर सिद्धू को घेरने की हरसंभव कोशिश की। फिर भी दोनों एक-दूसरे के रास्ते में नहीं आ रहे थे। कम से कम इस तरह से सीधी चुनौती एक दूसरे को कभी नहीं दी। यह पहला मौका है, जब मजीठिया ने सिद्धू को चैलेंज किया है। 

ड्रग्स केस बना तत्कालीन कारण 
कैप्टन के सीएम पद से हटते ही चरणजीत चन्नी ने जैसे ही यह पद संभाला तो नवजोत सिंह नशे के मामले को लेकर मजीठिया पर आक्रमक हो गए। पंजाब की राजनीति पर पीएचडी कर रहे शोधार्थी मनीष शर्मा ने बताया कि सिद्धू के बयानों से ऐसा लग रहा था कि वह मजीठिया के मामले में व्यक्तिगत हो रहे हैं। जिस तरह से आनन फानन में केस दर्ज हुआ। इसके बाद मजीठिया की गिरफ्तारी के लिए रेड, फिर लुक आउट नोटिस जारी होने से रही सही कसर पूरी कर दी। मजीठिया की आज की पत्रकारवार्ता में जिस तरह से मजीठिया ने कांग्रेस पर हमला बोला, जिस तरह से उन्होंने इमोशनल बातचीत की, इससे साफ हो गया था कि अब  अकाली दल काग्रेस और सिद्धू के खिलाफ लंबी लड़ाई की रणनीति बना चुके हैं। 

मुकाबला नहीं आर पार जैसे बनेंगे आसार 
मजीठिया  के जानकार कहते हैं कि वह एक बार जो ठान लेते हैं इसे पूरा करके मानते हैं। कमोबेस सिद्धू के लिए भी स्थिति करो और मरो जैसी है। क्योंकि मजीठिय और सिद्धू ने एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोक कर खुद को भी दांव पर लगा दिया है। यहां हारने वाला एक सीट नहीं खोएगा, बल्कि किसी न किसी स्तर पर उसका सियासी करियर भी दांव पर होगा। मनीष कुमार ने बताया कि सिद्धू पार्टी में रह कर खुद को सीएम फेस के तौर पर मजबूत करने की कोशिश कर रहे है, मजीठिया के सामने आने से अब या तो वह नेता के तौर पर सबसे मजबूत नेता बन कर निकलेंगे। यदि सीट लूज कर गए तो उनके लिए आगे की सियासी राह बेहद मुश्किल हो जाएगी। यही स्थिति मजीठिया के बारे में है, यदि इस सीट पर उनका प्रदर्शन उम्मीद के अनुरूप न हुआ तो सियासी करियर पर भारी पड़ सकता है। 

हर किसी नजर रहेगी इस मुकाबले पर 
यह सीट अब इतनी ज्यादा रोचक हो गई कि पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाला हर कोई इस सीट पर नजर टिकाए देखेंगा। क्योकि यहां थोड़ा सा उतार चढ़ाव अकाली दल ओर कांग्रेस की राजनीति को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा। देखना यह भी होगा कि कौन-किसको किस तरह से घेरता है। मनीष शर्मा ने बताया कि मजीठिया के इस सीट से खडे़ होते ही प्रदेशभर में इस सीट की चर्चा हो रही है। आने वाले दिनों में यह चर्चा और ज्यादा तेज होगी। 

मजीठिया जेल गए या बेल मिली, दोनों को कैश करेंगे
आज उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने जो सियासी प्ले किया, इसका लाभ उन्हें मिलेगा। अब यदि उन्हें बेल मिल जाती है तो वह सीधे कांग्रेस खासतौर पर सिद्धू पर आक्रामक रहेंगे। बेल न मिलने की स्थिति में वह मतदाताओं में यह संदेश देने की हरसंभव कोशिश करेंगे कि उन्हें जबरदस्ती जेल में डाला गया है। इसका लाभ पूरे अकाली दल को मिल सकता है। इसलिए मजीठिया ने ऐसा दांव खेल दिया, जिसका दोनों स्थिति में लाभ ही होगा।

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