सांस अटक रही थी और दर्द बढ़ रहा था... सिर्फ सूरज उगने का इंतजार था, हिम्मत देगी 23 साल की लड़की की कहानी

खांसी, बुखार, गले में दर्द, सांस लेने में तकलीफ थी। वो सारे लक्षण थे जो एक कोरोना पॉजिटिव को होते हैं। अदिती ने जल्दी से अपना टेस्ट कराया लेकिन उसकी रिपोर्ट नेगिटिव आई। फिर टेस्ट कराया फिर रिपोर्ट नेगिटिव आई। अब तक अदिती की सूघंने की शक्ती पूरी तरह खत्म हो गई थी। डॉक्टर ने सीटी स्कैन करने की सलाह दी। लेकिन एक बीमार 23 साल की अकेली लड़की की इस कोरोना काल में कोई हेल्प नहीं करेगा। ये सोचकर उसने बस पकड़ी और वहां चली गई जहां उसके बुजुर्ग दादा दादी रहते हैं। 

Asianet News Hindi | / Updated: Jun 20 2021, 06:00 AM IST

जयपुर। सबसे अच्छी खबर यही है कि कोरोना के मामलों में गिरावट आ रही है और एक बार फिर इस देश की सड़कें लोगों की चहल पहल से रोशन हो रही हैं। हालांकि कुछ दिन पहले बीते उस वक्त के बारे में सोचकर  ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मरीजों से भरे अस्पताल और ऑक्सीजन की कमी से जूझते लोगों को चीखें आज भी सिहरन पैदा कर देती हूं। इस कोरोना ने कई घरों को उजाड़ दिया। कई बच्चों ने मां बाप छीन लिए तो मां बाप से उनकी संतानें। कोरोना ने ऐसा जख्म दिया है जो कभी नहीं भर सकता। इस कोरोना में कुछ लोग ऐसे भी थो वायरस को मारकर मौत के मुंह से वापस आए। एक ऐसी ही कहानी है जयपुर में नौकरी करने वाली एक 23 साल की लड़की की। परिवार से दूर एक बड़े से शहर में अकेले रहकर अपने सपनों को एक उड़ान देने के लिए जयपुर आई थी। यहां रहकर नौकरी कर रही थीं। जॉब छोटी थी लेकिन अदिती के लिए वो उसके सपनों का संसार था। लेकिन कोरोना से सब खत्म कर दिया। 

Asianet news की राखी सिंघल ने बात की लखनऊ की रहने वाली लेकिन जयपुर में नौकरी करने वाली 23 साल की अदिती कौशक शर्मा से। अदिती को मैं बहुत करीब से जानती हूं। मेरी दोस्त जैसी ही है। बस फर्क ये है कि हम अलग अलग जगह काम करते हैं। अलग अलग शहर में रहते हैं। वो कितनी सच्ची और सीधी है इस बात को बताने बैठूंगी तो मुद्दे से भटक जाऊंगी। वो 9 मई का दिन था मैंने कोरोना का टीका लगवाया था तो थोड़ा फीवर था। अचानक याद आया कि क्यों ना आज अदिती से बात की जाए। अदिती को फोन लगाया तो उधर से धीमी से आवाज आई। मैंने हैरानी के साथ पूछा क्या हुआ तुम ठीक तो हो। अदिती ने कहा नहीं मेरी तबियत ठीक नहीं है। मैंने उसको ऑफिस से कुछ दिन की छुट्टी लेकर रूम पर रहने की सलाह दे दी। उसने भी हां कहते हुए फोन काट दिया। लेकिन जितना उसने बताया था उसकी तबियत उससे कई ज्यादा गुना खराब थी। खांसी रुक नहीं रही थी। फीवर था। और बदन बुरी तरह टूट रहा था। अदिती ने होशियारी दिखाई और लोगों से दूरी बनाना शुरू कर दी ये सोचकर कि मेरी वजह से किसी को परेशानी ना हो। ऑफिस से छुट्टी तो वो ले चुकी थी। लेकिन बुखार था जो टूट ही नहीं रहा था।

तबियत बिगड़ रही थी और रिपोर्ट नेगिटिव थी 

खांसी, बुखार, गले में दर्द, सांस लेने में तकलीफ थी। वो सारे लक्षण थे जो एक कोरोना पॉजिटिव को होते हैं। अदिती ने जल्दी से अपना टेस्ट कराया लेकिन उसकी रिपोर्ट नेगिटिव आई। फिर टेस्ट कराया फिर रिपोर्ट नेगिटिव आई। अब तक अदिती की सूघंने की शक्ती पूरी तरह खत्म हो गई थी। डॉक्टर ने सीटी स्कैन करने की सलाह दी। लेकिन एक बीमार 23 साल की अकेली लड़की की इस कोरोना काल में कोई हेल्प नहीं करेगा। ये सोचकर उसने बस पकड़ी और वहां चली गई जहां उसके बुजुर्ग दादा दादी रहते हैं। अदिती के दादा दादी जयपुर से कुछ दूर कोटपुतली में रहते हैं। वहां भी डर था। घर तो बड़ा था लेकिन देखभाल करने वाले बिल्कुल बुजुर्ग। अदिती खुद अपनी देखभाल करने में सक्षम नहीं थी। वो पूरी तरह टूट गई थी। अदिती ने जब अपनी कहानी बताई तो मैं भी शॉक्ड हो गई थी।

मुझे लगा कि मैं कल का सूरज नहीं देख पाऊंगी

अदिती ने बताया कि दादा और दादी मेरी बिगड़ती हालत पर परेशान हो रहे थे। दादा जी ने तुरंत फोन घुमाया और लखनऊ से मेरी मम्मी और भाई को बुला लिया। वो दोनों गाड़ी से उसी वक्त निकल गए। तब तक दादा जी ने डॉक्टर से पूछकर मुझे कुछ दवाएं दे दीं और दादी ने अपने घरेलू नुस्खे से मेरी सांसों को बचाए रखा। उस दिन मुझे लग रहा था कि मैं कल का सूरज नहीं देख पाऊंगी। मेरी हिम्मत टूट रही थी। लेकिन इंतजार था मुझे भी मेरी मां और भाई को देखने का उनसे मिलने का। मेरी मां डाइबिटीज की मरीज है। ये डर भी था कि मेरी वजह से उन्हें संक्रमण ना हो जाए। लेकिन मैं ये जरूर कहूंगी कि मैं अगर जिंदा हूं तो मेरे परिवार की वजह से। जिन्होंने मुझे हिम्मत दी, हौसला दिया। मां और भाई एक लंबा सफर तय करके यहां पहुंच गए। मां को मैंने खुद से दूर रखा क्यों कि वो डाइबिटीज की पेशेंट हैं। भाई ने मुझे गाड़ी में बैठाया और सीधा अस्पताल लेकर पहुंचा। वहां मेरा सीटी स्कैन कराया गया। अब तक मेरे दिल में कहीं ना कहीं ये आस थी कि मैं नेगिटिव हो सकती हैं लेकिन सीटी स्कैन की रिपोर्ट ने मुझे झूठा साबित कर दिया। मैं पॉजिटिव थी। जी हां कोरोना पॉजिटिव। 

सबसे ज्यादा टफ थे वे 8 दिन 

अदिती कोरोना विनर बनने की कहानी बताते बताते कई बार इमोशनल भी हुई। शायद उसके मन में भावनाओं का वो ज्वार फिर से उमड़ आया जो उसने अपनी बीमारे के दौरान अपनी मां और दादी के आंखों में देखा था। अदिती कहती है कि वो 8 दिन मेरी जिंदगी के सबसे टफ दिन थे। मैं दवाएं ले रही थी। काढ़ा, गर्म पानी, नीबू पानी सब ले रही थी। समय पर खाना और सिर्फ आराम भी था लेकिन फिर भी मैं हार रही थी। उन खबरों से जो मीडिया में आ रही थीं। उन माता पिता के दुखों से जो उन्हें अपने बच्चों के खोने के बाद होता है। दवाओं का असर हो रहा था या नहीं मुझे नहीं पता लेकिन ये पता था कि मुझे पॉजिटिव आने के 8 दिन तक ऐसा लगा जैसे में धीरे धीरे क्षीण होती जा रही हूं। मेरे दादा जी हर घंटे में बुखार देखते ते। थर्मामीटर तो मेरे दोस्त जैसा हो गया था। वही पास था। अगर बुखार कम तो टेंशन कम और बुखार ज्यादा तो टेंशन भी ज्यादा। उफ वो 8 दिन। मैं प्रार्थना करूंगी कि वो किसी की जिंदगी में ना आए। घर में सब परेशान थे। और मैं.... मैं तो किसी और दुनिया में थी। जहां मैं हंसना भूल गई थी। और यही मेरी सबसे बड़ी गलती थी।

अस्पताल में नहीं मिली थी जगह 

अदिती ने जब अपनी बात बताई तो कहा कि आपको याद होगा उस वक्त अस्पतालों की क्या हालत थी। अदिती कहती है कि मेरी तबियत इतनी बिगड़ गई थी कि मुझे अस्पताल में रहने की जरूरत थी। ऑक्सीजन की जरूरत कभी भी पड़ सकती थी। लेकिन अस्पतालों की हालत देख कर हिम्मत टूट गई। मैंने सोचा यहां रहने से अच्छा है अपनों के बीच रहूं। हम घर पर आ गए और मेरे कमरे को ही पूरी तरह अस्पताल में बदल दिया था। मम्मी डाइबिटीज की मरीज थीं और दादा जी और दादी बुजुर्ग हैं वे तीनों मेरे पास नहीं आ सकते थे ऐसे में मेरा भाई ही था जिसने मेरी पूरी तरह से देखभाल की। अदिती के पापा लखनऊ में थे और उसकी बड़ी बहन अपने ससुराल में थीं। जो खुद कोरोना पॉजिटिव थीं। 

इस दुख में सिर्फ एक बात अच्छी थी 

अदिती कहती हैं कि मैं आज तक सोचती हूं कि मैं पॉजिटिव कैसे हुई। ऑफिस में कोई पॉजिटिव नहीं था। रूम से ऑफिस का रास्ता 200 मीटर तक है जिसे मैं पैदल ही पार करती हूं। रूम से मैं कहीं जाती हीं किसी से मिली नहीं फिर मैं पॉजिटिव कैसे हुईं। अदिती ये बात कहते कहते थोड़ा से मुस्कुराई और बोली कि ये मेरे लिए भी एक पहेली है। खैर... उसने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि सबसे अच्छी बात सिर्फ यही हुई कि मैं ऑफिस में जिन लोगों के संपर्क में आई उनमें से किसी की रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आई। सब नेगिटिव थे। ये वो एक खबर थी जिसने मुझे खुश किया हुआ था। परिवार के अलावा एक और चीज थी जिसके लिए मुझे जीने का मन था... वो हैं मेरे सपने। जब मैं कमरे में बंद थी तब मुझे लगा जैसे मेरा ऑफिस मुझे बुला रहा है। मेरे सपनों को मेरी जरूरत है। मेरे सपने मेरी हिम्मत बने और मेरा परिवार मेरी ताकत बना। 

दिन तो कट जाता लेकिन रात भारी पड़ जाती 

अदिती बताती हैं कि दिन में सब मुझे दिखाई देते थे। बातें करते थे। घर के आंगन से कभी मां की तो कभी दादी की खटपट भी मुझे अच्छी लगने लगी थी। उनकी नोक झोंक का मैं इंतजर करती थी। दिन कट जाता था। कभी मां की बातों कभी दादी और दादा जी की कहानियों में और वो मेरा छोटा भी वो है तो बहुत खडूस लेकिन वो मेरा बहुत ध्यान रखता था। मेरे लिए खाने पीने की सारी चीजें मेरे कमरे तक पहुंचाना उसकी जिम्मेदारी थी। दिन तो इसी उधेड़ बुन में कट जाता लेकिन रात... रात बहुत बड़ी पड़ जाती थी। कटती ही नहीं थी ना नींद आती थी। ना किसी की आवाज सुनाई देती थी बस बार बार फोन चेक करती ये देखने के लिए कि सुबह कब होगी और मां और दादी कब जागेंगे। कई बार दिल घबराता था। उठ कर बैठ जाती थी। अजीब से बैचेनी होती। मन में बुरे बुरे ख्याल आते थे। सीने में दर्द और कई बार सांस लेने में दिक्कत भी हुई ऐसा लगता था कि ये रात आखिरी है। 

मेरा परिवार मेरी ताकत बना 
अदिती कहती है कि मैं मम्मी से ज्यादा से दादा और दादी की लाडली रही हूं। और मुझे भी मेरी दादी दुनिया की सबसे अच्छी दादी लगती हैं। जब मैं बीमार हुई तो मैंने देखा कि उनके चेहरे का रंग फीका पड़ने लगा है जैसे वे मुझे देखकर बहुत दुखी हैं। मेरी मां भी परेशान रहती थी और दादा जी और मेरा छोटा खडूस भाई उन्होंने मुझे कभी जाहिर नहीं होने दिया लेकिन उनका दर्द भी मेरी समझ में आ रहा था। वो एक पल ही था जब मुझे लगा कि मैं मेरे परिवार की खुशी हूं। मैं मेरे परिवार को खुद की वजह से दुखी नहीं कर सकती और मैंने फैसला लिया आज से और अभी से मैं पॉजिटिव होकर नेगिटिव सोचना छोड़ दूंगी। हुआ भी ऐसा ही। इसे ईश्वर की महेरबानी कहिए मेरे अपनों का आशीर्वाद कहिये या दवाओं का असर कहिए। मेरी तबियत अब ठीक हो रही थी। मेरे पास मेरा परिवार था। मुझे मेरे परिवार का पूरा सपोर्ट मिला था। उन्होंने जो हिम्मत और हौसला दिखाया मैंने उसी रास्ते पर खुद को ढाल लिया। 

कोरोना पॉजिटिव होने के साथ शुरू किया एक रुटीन 

अदिती ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि कोरोना में जरूरी है हेल्दी फूड के साथ समय पर खाना, पानी पीना, दवाएं लेना, मौसमी फल लेना। साथ ही काढ़ा, गर्म पानी, गार्गल, सूखी खांसी के लिए अदरक और शहद। कुल मिलाकर ये है कि मैं अंग्रेजी दवाओं के साथ साथ मैं घरेलू नुस्खे भी कर रही थी। स्टीम लेना सबसे अच्छा रहता है। मैंने दिन में 4 बार स्टीम लिया। व्यायाम किया। योग और प्राणायाम किया। सुबह की फ्रेश एयर ली। और खुश रहना शुरू किया। जब ये सब रुटीन मैंने किया तो मुझे रात में नींद आने लगी और मेरे नेगिटिव विचार लगभग खत्म हो गए थे। और मुझे पूरा भरोसा हो गया था कि अब मैं ठीक हो जाऊंगी। 

जब रिपोर्ट नेगिटिव आई तो लगा मैं तो IAS भी पास कर लेती 
अदिती कहती है कि खांसी में कुछ ज्यादा सुधार नहीं था लेकिन बुखार नहीं आ रहा था। दर्द नहीं था कहीं भी हां कमजोरी बहुत थी। बीमारी के बाद रहती है। लेकिन मेरी स्मैल वापस आ गई थी। मुझे लगभग 15 दिन हो चुके थे कोरोना में लेकिन खांसी की वजह से डर फेंफड़ों में संक्रमण का लग रहा था। लिहाजा हम डॉक्टर के पास गए रिपोर्ट कराई डॉक्टर ने साथ ही एक कफ सीरप भी लिख दी। 3 दिन बाद रिपोर्ट आई तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। रिपोर्ट नेगिटिव थी। डॉक्टर ने जो कफ सीरप दी थी उसने भी अपना असर दिखाया और खांसी कम हो गई थी। रिपोर्ट हाथ में लेकर मैंने अपने भाई से इतना ही कहा कि IAS का एग्जाम भी होता तो उसे भी पास कर लेती ये तो कोरोना था। इसको तो हराना ही था। उस दिन मैं जीती और मेरा डर हमेशा के लिए हार गया। 15 दिन बाद ऑफिस पहुंचकर मैंने अपना खोया हुआ आत्मविश्वास भी फिर से पा लिया। अदिती ने अपनी बात खत्म करते हुए एक लाइन कही उन्होंने कहा कि 'तबियत दिन ब दिन बिगड़ रही थी लेकिन मैं जानती थी, वायरस को मारने के लिए मुझे पहले मेरे डर को मारना होगा' 


 

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