बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार वन्यजीवों लिए भी जरूरी, केवलादेव नेशनल पार्क में आज क्यो की जाती गणना, जाने मामला

बुद्ध पूर्णिमा में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में वन्यजीवों की गणना शुरू हुई। 29 प्वाइंट पर 58 वनकर्मी कर रहे वाटरहोल पद्धति से गणना। कल सुबह तक चलेगी काउंटिंग।

भरतपुर.दो साल तक कोरोना संक्रमण काल में जनजीवन अस्तव्यस्त रहा। ऐसे में दो साल तक वन्यजीव गणना भी नहीं हो पाई। दो साल बाद सोमवार को केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, बंध बारैठा और वन क्षेत्र में वन्यजीवों की गणना शुरू हो गई। कुल 29 प्वाइंट पर 58 फॉरेस्ट ऑफिसर वन्यजीवों की गणना जुटे हुए हैं। सोमवार सुबह 8 बजे वनकर्मियों की टीमों को वाटर प्वाइंट के लिए रवाना किया गया, जो मंगलवार सुबह तक वन्यजीव की काउंटिंग करेंगे। 

 बुद्ध पूर्णिमा की रात ही क्यों ?

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असल में हर वर्ष बुद्ध पूर्णिमा की रात को ही वन्यजीव गणना के लिए चुना जाता है। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के एसीएफ नारायण सिंह नरूका ने बताया बुद्ध पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की पूरी रोशनी रहती है। इसलिए रात के वक्त वाटर प्वाइंट पर पानी पीने आने वाले वन्यजीव आसानी से नजर आ जाते हैं। यही वजह है कि बुद्ध पूर्णिमा की रात को ही वन्यजीव गणना के लिए चुना जाता है।

24 घंटे तक गणना

एसीएफ नरूका ने बताया कि वन्यजीव गणना के लिए केवलादेव घना में 23 और बंध बारैठा क्षेत्र में 6 प्वाइंट बनाए गए हैं। इन वाटर प्वाइंट पर करीब 58 वनकर्मी वाटरहोल पद्धति से वन्यजीव गणना कर रहे हैं। वनकर्मी सोमवार सुबह 8 बजे से मंगलवार सुबह 8 बजे तक वन्यजीव गणना करेंगे। इस दौरान वनकर्मियों पूरे 24 घंटे गणना के काम में मुस्तैद रहेंगे। इनके खाने की व्यवस्था भी ड्यूटी प्वाइंट पर की गई है।

दो साल पहले इतने वन्यजीव

कोरोना काल से पहले वर्ष 2020 में वन्यजीव गणना की गई थी। उस दौरान घना में सियार 251, जरख 14, जंगली बिल्ली 4, बिज्जु 7, चीतल 2079, सांभर 20, रोजड़ा 280, जंगली सूअर 96, सेही 15, होग डीयर 3 की काउंटिंग की गई थी। बंध बारैठा अभयारण्य में सियार 145, जरख 19, जंगली बिल्ली 16, लोमड़ी 12, भेडिय़ा 6, बिज्जु 8, चीतल 3,  रोजडा 143, सेही 29, लंगूर 15 दर्ज किए गए थे।

क्या है वाटर होल पद्धति

नेशनल पार्क में वन्य कर्मी पानी के सोर्स के पास बैठकर वहां पानी पीने आने वालों की गणना करते है। इस गणना से उनको पता चलता है कि वन्यजीवों की संख्या कितनी है। इस काउंटिंग को पानी के सोर्स के पास ही किया जाता है क्योकि 24 घंटे में सभी जीव एक न बार पानी पीने जाते ही है। और इस तरह से वन्यजीवों के गणना की विधि वाटरहोल पद्धति कहलाती है।

 

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