जयपुर का गणगौर पर्व: यहां शिव के बिना ही मां गौरी की पूजा, राजशाही ठाठबाट से निकलती है सवारी, जानिए पूरी कहानी

इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत और पूजा अर्चना करती हैं। व्रत से पहले मिट्टी से भगवान शिव और मां पार्वती की स्थापना करती हैं और फिर उनकी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती ने सभी प्राणियों को सौभाग्य का वरदान दिया था। 

जयपुर : देशभर में आज गणगौर पर्व (Gangaur Puja 2022) मनाया जा रहा है। मुख्य रूप से राजस्थान (Rajasthan) में मनाए जाने वाले इस पर्व की की शुरुआत होली के दूसरे दिन से होती है और यह अगले 16 दिनों तक चलती है। जयपुर (Jaipur) में आज गणगौर माता की शाही सवारी निकलेगी। राज परिवार की पूजा-अर्चना के बाद शहर भर में यह सवारी जाएगी। कोरोना के चलते दो साल से इस आयोजन पर ब्रेक लगा हुआ था। माता की सवारी के लिए शहर के चारदीवारी क्षेत्र को दुल्हन की तरह सजाया गया है। शाम चार बजे से करीब सात बजे तक शहर में मेले का माहौल रहेगा। इस दौरान देश-विदेश के हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए शहर में जुटेंगे। राजधानी के अलावा बीकानेर और जैसलमेर समेत कई शहरों में माता की सवारी धूमधाम से निकाली जाती है। 

बेहद खास मानी जाती है सवारी
राजस्थान में गणगौर पूजन पर महिलाएं शिव और गौरी की कृपा पाने के लिए पूजा और व्रत करती हैं। उत्तर भारत में ये त्योहार खासा लोकप्रिय है। गणगौर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर मनाया जाता है। अलग-अलग जगहों पर अलग अलग तरीके से पूजा पाठ का विधान है। कहीं 16 दिन तो कहीं तीन दिन पूजा की जाती है। जयपुर में मां की सवारी बेहद अहम है। शहर में पारम्परिक नृत्य और कई तरह की प्रस्तुतियां आकर्षण का केंद्र रहती हैं और साथ ही कच्ची घोड़ी, कालबेलिया, बहरूपिया, अलगोजा, गैर, चकरी नाच देखने हजारों की संख्या में लोग आते हैं। माता की सवारी के लिए जुलूस में तोप गाड़ी, सुसज्जित रथ, घोड़े और ऊंट भी शामिल रहते हैं। बैंड की धुनों के बीच शहर के बीचों बीच से सवारी निकाली जाती है। 

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गणगौर माता के पूजन की धार्मिक मान्यता 
गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती...ये उस गीत की लाइन हैं जो राजस्थान के लाखों घरों में आज के दिन गाया जाता है। वैसे तो 16 से 18 दिन तक माता पूजन घरों में किया जाता है। इस दौरान यह गीत गाया जाता है और माता की पूजा की जाती है। माता को पार्वती और उनके पति ईसरजी को शिव का प्रतिरूप माना जाता है। मान्यताएं आदिकाल से चली आ रही हैं कि शिवजी जब माता को लेने आए थे तो उस समय मंगल गीत गाए गए थे और पूजा पाठ किया गया था।

शिव के बिना ही मां गौरी की पूजा
जयपुर में गणगौर पर सिर्फ गौरी की ही पूजा की जाती है, इसलिए गणगौर सवारी में सिर्फ गौरी स्वरूपा गणगौर की ही सवारी निकलती है। सवारी के दौरान वे अकेली रहती हैं। जबकि अन्य रियासतों में ईसरजी और गणगौर मां की सवारी साथ निकाली जाती है। जयपुर में मां की सवारी के पीछे मान्यता है कि जयपुर के ईसरजी को कई सालों पहले किशनगढ़ रियासत ले जाया गया था। उसके बाद वे वापस नहीं लौटे। उनको वहीं पर पूजित किया जाता है। सिटी पैलेस के सूत्रों के अनुसार तभी से वहीं पर उनका पूजन किया जाता है।

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