इंसानियत जिंदा है! माता-पिता, दादा-दादी की मौत, 4 से 7 साल के 3 बच्चों को सहारा देन समाज ने जुटाए 10 लाख

यह खबर राजस्थान के अलवर से सामने आई है। जहां कुछ दिन पहले  राजगढ़ क्षेत्र में रहने वाले 4 से 7 साल के तीन बच्चों के माता-पिता, दादा-दादी की मौत हो गई थी। समाज के लोगों ने इन बच्चों के लिए देवदूत बनकर दस लाख रुपए की मदद की है।

 

अलवर (राजस्थान). इंसानियत से जुड़ी कोई खबर कभी कभार ही सामने आती है, लेकिन ये खबरें पढ़कर आंखे नम भी हो जाती हैं।  ऐसी ही एक खबर अब राजस्थान के अलवर से सामने आई है। जिसे पढ़ने के बाद आपका इंसानियत पर भरोसा और मजबूत हो जाएगा।  तीन मासूम बच्चे जिनकी उम्र चार  से सात साल के बीच है, आज से ठीक 11 दिन पहले उनके दादा-दादी, माता-पिता एक ही हादसे में काल में समा गए। पहाड़ सी जिंदगी के बारे में अंदाजा लगाना मुश्किल था, लेकिन इस बीच देवदूत बनकर कुछ लोग आगे और बारवें से पहले पहले ही दस लाख रुपए लुटा लिए। ये रुपए कल पगढ़ी के दिन परिवार को दिए जाएंगे। ये रुपए बच्चों को जब मिलेगे तब वे व्यस्क हो जाएंगे। परोपकार के इस काम की पूरे अलवर में चर्चा शुरु हो गई है। 

माता पिता, दादा-दादी की एक साथ हो गई थी मौत, आज से ग्यारह दिन पहले 
दरअसल अलवर जिले के राजगढ़ क्षेत्र में रहने वाले 50 वर्षीय हरिराम सैनी के परिवार से जुड़ा यह पूरा मामला हैं। हरिराम परिवार के मुखिया थे, शराब पीने के आदी हरिराम की इस आदत से सभी परेशान थे। इसी कारण हरिराम, उनकी पत्नी रज्जो, बेटा डब्लू और बहू मीरा आज से ग्यारह दिन पहले अलवर के राजगढ़ से दौसा स्थित एक बालाजी मंदिर में पूरा करने गए थे। ताकि हरीराम की शराब पीने की आदत छूट जाए। चारों लोग परिवार के एक सदस्य के ऑटो से ही गए थे और वापस लौट रहे थे। परिवार का जो युवक ऑटो चला रहा था वह 15 मई को हुए हादसे कुछ ही देर पहले ऑटो को साइड में खड़ा कर पेशाब करने चला गया था। इतनी ही देर में ऑटो में बैठे पूरे परिवार को ट्रक ने कुचल दिया। तीन की मौके पर ही मौत हो गई और चौथे ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस  घटना के बाद परिवार में कोहराम मच गया। प्रशासन भी आगे आया और मदद करने का आश्वासन दिया। लेकिन मदद क्या की यह पता नहीं चल सका। हरिराम के तीन बेटे थे। जिनमें डब्लू की मौत हो गई। छोटा बेटा शादीशुदा था और तीसरे की शादी होने वाली थी। 

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टैंट का काम करते थे पिता पुत्र, देवदूत बनकर आए साथी... दस लाख देंगे
प्रशासन की मदद की बात छोड़ अब असली मदद की बात करते हैं। हरीराम और उनका बेटा डब्लू टैंट का काम करते थे। लेकिन कोरोना में रोजगार छीन गया था। उसके बाद वापस जैसे तैसे काम जमा रहे थे। टैंट डीलर्स एसोसिएशन और ऑल इंडिया टैंट डेकोरेटर सोसायटी के अध्यक्ष रवि जिंदल और अन्य पदाधिकारियों को यह पता चला तो बच्चों की मदद की बात सामने आई। पदाधिकारियों ने कहा कि एक लाख रुपए की मदद की जा सकती है। लेकिन यह मदद कम लगी तो आवाज आई कि दस लाख की एफडी करा सकते हैं। यह विचार सबको जम गया और दस लाख रुपए की एफडी तीनों बच्चों के नाम करा दी गई। इस एफडी को डब्लू के तीनों बच्चे आठ साल की चेतना, चार साल की काजल और छह साल के लेखराज में बांटा गया है। सभी को तीन लाख पैंतीस हजार रुपए की एफडी देने की तैयारी है। जो उनके व्यस्क होने पर खुलेगी। जब तक परिवार की आर्थिक मदद भी की जाएगी।  परिवार अब बच्चों के भविष्य को लेकर संतुष्ट है।


 

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