
जयपुर.अक्सर कांग्रेस, बीजेपी समेत अन्य बड़ी पार्टियों में फूट देखने को मिलती है और इस फूट का अधिकतर नुकसान पार्टी को उठाना पड़ता है। इसी फूट की तरह अब छात्र संगठन में भी फूट दिखने को मिली है। कांग्रेस से ताल्लुक रखने वाला छात्र संगठन एनएसयूआई हो या फिर भारतीय जनता पार्टी से ताल्लुक रखने वाला छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हो फूट के कारण दोनों संगठनों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसका सीधा उदाहरण राजस्थान विश्वविद्यालय का नया अध्यक्ष निर्मल चौधरी है।
निर्मल की जीत के पीछे इनका हाथ
निर्मल चौधरी की जीत निर्मल चौधरी की नहीं है, निर्मल चौधरी के पीछे दो दिग्गज नेता रामनिवास गावड़िया और मुकेश भाकर है। दोनों एमएलए हैं और दोनों ही कुछ साल पहले राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र थे और वहीं से अध्यक्ष पद पर जीतने के बाद उन्होंने राजनीति की सीडी पर पहला कदम रखा था। उसके बाद उन्हें टिकट मिला और वे एमएलए बने। निर्मल चौधरी भी लगातार एनएसयूआई से टिकट मांग रहे थे। वह करीब 5 साल से एनएसयूआई के सक्रिय कार्यकर्ता थे, और एनएसयूआई के तमाम बड़े नेताओं से ताल्लुक रखते थे। चुनाव लड़ने में भी धन और बल की कमी सामने आई तो इसे पर्दे के पीछे से सपोर्ट कर रहे मुकेश भाकर और रामनिवास गावड़िया ने पूरा किया।
बागी होकर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की
निर्मल चौधरी ने बागी होने से पहले कहा था कि एनएसयूआई का शायद ही कोई धरना प्रदर्शन हो जो उन्होंने छोड़ा हो। वे लगातार संगठन की सेवा करते रहे लेकिन संगठन ने उन्हें नहीं चुना। हालांकि उन्होंने एनएसयूआई की दूसरी बागी निहारिका जोरवाल की तरह अपशब्दों का ज्यादा प्रयोग नहीं किया। उसके बाद निर्मल ने बागी होकर चुनाव लड़ा। सवेरे से जब कॉमर्स कॉलेज में मतगणना जारी थी तो 10:00 बजे से लेकर करीब 12:00 बजे तक तो रितु बराला और निहारिका मीणा ही अध्यक्ष पद पर सबसे आगे चल रही थी। लेकिन दोपहर के बाद जब अन्य बैलट पेपर खुलने लगे तो निर्मल चौधरी इतना आगे निकल गए कि उन्हें फिर से नहीं पकड़ा जा सका ।
बता दे कि निर्मल चौधरी और निहारिका मीणा दोनों ही एनएसयूआई के बागी है और दोनों ने ही मिलकर करीब साढे 6000 से भी ज्यादा वोट अपने नाम किए हैं। जबकि एनएसयूआई ने जिस रितु बराला को टिकट दिया वह इन दोनों से काफी पीछे रह गई है। वहीं निहारिका मीणा को संगठन ने 6 साल के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
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