आखा तीज में मारवाड़ की प्राचीन परम्परा का आयोजन,धणी बताएगा इस बार मौसम का क्या होगा हाल

पशु पालक घांची समाज के लोग अनुष्ठान से करते है भविष्यवाणी पता लगाते है कि आने वाले साल में बरसात होगी कि पड़ेगा सूखा

जोधपुर.पूरे राजस्थान में आखा तीज का त्यौहार बड़े धूम धाम से बनाया जाता है और वहां अलग-अलग क्षेत्रों में  अनेक तरह की पूजा होती है। इसी कड़ी में  मारवाड़ में सदियों से एक समाज विशेष के लोग अक्षय तृतीया(आखा तीज) के दिन धणी के माध्यम से मौसम की सटीक भविष्यवाणी करते है। इनका आंकलन इतना सटीक माना जाता है कि पूरे मारवाड़ के लोगों को आखा तीज पर अकाल( सूखा) या सुकाल (बरसात) से जुड़ी धणी की घोषणा का इंतजार रहता है। इसके अलावा राजनीतिक उठा पटक के भी संकेत मिलते है। शहर में पशु पालक घांची समाज सदियों से धणी का आयोजन करता आ रहा है। जोधपुर में एक बार फिर मंगलवार 3 मई  को आखातीज पर धणी का आयोजन होगा। ऐसे में सभी को बड़ी उत्सुकता के साथ इसकी घोषणा का इंतजार है कि इस बार मारवाड़ के भविष्य में क्या होगा। कोरोना के चलते दो साल बाद आयोजन हो रहा है।
 पुरानी परंपराओं में से एक है
धणी की परम्परा बहुत प्राचीन मानी जाती है। इस आयोजन से जुड़े घनश्याम परिहार  का कहना है कि प्राचीन काल में मौसम विभाग  नहीं था। यदि था भी तो कम्यूनिकेशन साधनों  के अभाव में उसकी दी गई जानकारी किसानों व पशुपालकों तक नहीं पहुंच पाती थी। ऐसे में समाज ने अपने लेवल  पर मौसम की भविष्यवाणी करना शुरू कर दिया जिससे  किसान व पशुपालक पहले से अलर्ट होकर  अपने सामान व अनाज को सुरक्षित  रख सके। उनका कहना है कि यह हमारे समाज के बुजुर्गों के अनुभव की देन है। यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। उनका दावा है कि इसके माध्यम से सिर्फ अकाल-सुकाल ही नहीं देश की राजनीतिक स्थिरता के अलावा अन्य संकेत भी मिलते है जिससे लोगों का भला होता है।

ऐसे की जाती है  ये रस्म

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यह  आयोजन अनूठा होता है। इसमें सारी जिम्मेदारी  दो अबोध बालकों पर होती है। रीति-रिवाज से अनजान  ये बालक यज्ञ की वेदी पर बुजुर्गों के बताए अनुसार अपना कार्य करते रहते है. इसमें मिलने वाले संकेतों को समझ समाज के बुजुर्ग इस वर्ष होने वाले अकाल या सुकाल की घोषणा करते है।

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