संत आंदोलन: आत्मदाह करने वाले बाबा की इलाज के दौरान मौत, 2017 में बने थे महंत, बरसाना में होगा अंतिम संस्कार

भरतपुर में साधुओं ने अशोक गहलोत सरकार के आश्वासन के बाद 551 दिन से चल रहा धरना खत्म कर दिया था लेकिन पहाड़ों से अवैध खनन नहीं रूका जिसके विरोध में साधु विजयदास ने खुद को आग लगा ली थी।  

भरतपुर. भरतपुर जिले में पहाड़ों के सरंक्षण के लिए खुद को आग के हवाले करने वाले बाबा विजय दास की शुक्रवार देर रात दिल्ली में मौत हो गई। उनको गुरुवार दोपहर ही  जयपुर के एसएमएस अस्पताल से दिल्ली के लिए रेफर किया गया था। दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में उनका इलाज जारी था, देर रात इलाज के दौरान बाबा ने दम तोड़ दिया। बाबा विजय दास ने बुधवार दोपहर भरतपुर में खुद को आग के हवाले कर लिया था। वे अस्सी फीसदी से ज्यादा झुलस गए थे। उधर पुलिस ने बाबा के आत्मदाह करने के मामले को लेकर बाबा विजय दास और उनके साथी बाबा नारायण दास पर हत्या के प्रयास का केस दर्ज करा लिया है। 

इस कारण खुद को आग लगाई थी बाबा विजय दास  ने 
दरअसल, भरतपुर में पौराणिक महत्व के दो पर्वत आदिबद्री पर्वत और कनकाचंल पर्वत में काफी समय से अवैध खनन हो रहा था। सरकार तक ने इस पर लीज जारी कर रखी थी। जबकि कई साल पहले इन पर्वत को संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था। उसके बाद भी सरकार का इस ओर ध्यान नहीं था। इन पर्वत से अवैध खनन और सरकारी लीज हटवाने के लिए संत 550 दिन से धरना प्रदर्शन कर रहे थे। ग्रामीण भी उनके साथ थे। इस धरने प्रदर्शन के दौरान सीएम और प्रियंका गांधी तक से मुलाकात की थी और अपना पक्ष रखा था। लेकिन फिर भी खनन जारी था। इसी खनन के विरोध में 19 जुलाई को बाबा हरिबोल दास ने चेतावनी दी थी कि वे सीएम हाउस के बाहर आत्मदाह करेंगे। इस पर प्रशासनिक अधिकारी चेते थे और उनको जल्द ही उचित कार्रवाई का भरोसा दिलाया था। लेकिन उसके बाद भी ऐसा कुछ नहीं हुआ। 

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35 घंटे टावर पर चढ़े हुए थे बाबा, इस दौरान दूसरे ने कर लिया आत्मदाह
सरकार ने एक संत को तो आत्मदाह करने से रोक लिया लेकिन दूसरे संत विजय दास को आत्मदाह करने से नहीं रोक सके। उन्होंने बिना किसी चेतावनी के बुधवार दोपहर खुद को आग के हवाले कर दिया था। उन्हें पहले भरतपुर में भर्ती कराया गया था और बाद में जयपुर रेफर किया था। जयपुर से दिल्ली भेजा गया और दिल्ली में उनकी मौत हो गई।

हरियाणा के थे बाबा विजय दास
संत विजय दास हरियाणा में फरीदाबाद जिले के बडाला गांव के रहने वाले थे। 12 साल पहले वो संत बन गए थे। एक हादसे में उनके बेटे औऱ बहू की मौत हो गई थी। जिसके बाद वो बरसाना चले गए थे औऱ वहीं संत बन गए। 2017 में वह धार्मिक मान्यता वाले आदिबद्री और कनकांचल इलाके में खनन के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया।  

बरसाना में होगा अंतिम संस्कार
बाबा का अंतिम संस्कार पहले भरतपुर के पसोपा में किया जाना था लेकिन रीट एग्जाम के चलते प्रशासन ने बरसाना में अंतिम संस्कार के लिए निवेदन किया था। जिसे साधु-संतों ने स्वीकार कर लिया था। अब बाबा का अंतिम संस्कार बरसाना में किया जाएगा। 

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