4 साल से चर्चा में महालक्ष्मी का राजस्थान स्थित ये मंदिर, बंद दरवाजों के पीछे हुआ चमत्कार, दिखे ये सबूत

राजस्थान में दिवाली पर अपने आप बंद हुए मंदिर में मिले थे मां लक्ष्मी के पदचिन्ह। 4 साल पहले अचानक हुए ऐसे चमत्कारों के लिए चर्चा में है महालक्ष्मी का ये मंदिर। कोरोना के बाद से देशभर से लोग दर्शन करने के लिए पहुंच रहे है।

सीकर. राजस्थान के सीकर जिले के खाटूश्यामजी के नजदीकी गांव डूकिया में स्थित मनोकामनापूर्ण मां लक्ष्मी का मंदिर चमत्कारों को लेकर चर्चा में है। मंदिर में विराजित मां लक्ष्मी मूर्ति 4 साल पहले जमीन की खुदाई में निकली थी। जिसकी मंदिर में स्थापना के बाद दिवाली पर मां लक्ष्मी के मंदिर में प्रवेश और पदचिन्ह की मौजूदगी के दावों ने इस मंदिर को   प्रसिद्ध कर दिया। आलम यह है कि अब देशभर से लोग इस मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आने लगे हैं। भक्तों की बढ़ी भीड़ को देखते हुए उनकी सुविधा के लिए अब यहां करोड़ों की लागत से रेस्तरां, सेवन डी थियेटर, पार्क व बाजार विकसित किया जा रहा है। 

खुदाई में निकली मूर्ति, 2 करोड़ का बनाया मंदिर
मंदिर का निर्माण नजफगढ़ दिल्ली के श्याम भक्त नरेश नागर ने किया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने डूकिया में आवास के लिहाज से 150 बीघा जमीन खरीदी थी। जहां निर्माण के लिए नींव खोदते समय उन्हें मिट्टी से 18 भुजाधारी लक्ष्मी मां की छोटी सी मूर्ति मिली। इस मूर्ति को उन्होंने त्रिवेणी धाम महंत नारायण दास महाराज को दिखाया तो उन्होंने उसी जमीन पर मां का मंदिर बनाने की बात कही। इस पर करीब दो करोड़ की लागत से मंदिर बनवाकर 17 अक्टूबर 2018 शारदीय नवरात्रों में महालक्ष्मी की मूर्ति को प्रतिष्ठित करवाया गया।

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दिवाली पर खुद आई मां लक्ष्मी
मंदिर के निर्माण वर्ष की दिवाली पर यहां मां लक्ष्मी के खुद पहुंचने का दावा किया जाता है। मंदिर पुजारी राजू शर्मा ने बताया कि दिवाली पर उन्होंने रात को मंदिर के पट दर्शनों के लिए खुले छोड़ दिए थे। पर देर रात मंदिर के दरवाजे अपने आप अंदर से बंद हो गए। जिसकी सूचना पर मौके पर काफी लोगों की भीड़ जुट गई। पर काफी कोशिश के बाद भी मंदिर का दरवाजा नहीं खुला। इस पर अगले दिन सुबह एक कारीगर को बुलाकर मंदिर का गेट तुड़वाया गया। अंदर देखा तो मूर्ति के सामने मेहंदी और चंदन लगे मां के पदचिन्ह दिखाई दिए। जिन्हें शीशे में मंढवाने के बाद उसके दर्शनों के लिए यहां काफी भक्तों का हुजूम आना शुरू हो गया।

छोटी मूर्ति को मिला बड़ा स्वरूप
जमीन की नींव भरते समय निकली मूर्ति करीब एक फीट की धातू निर्मित थी। पर महंत नारायणदास ने उसे लोगों की छाया से बचाए रखने की सलाह दी थी। इस पर मां लक्ष्मी की नई बड़ी मूर्ति बनवाकर उसके भीतर ही उस मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया है।

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