अनोखा मामला: मौत पर शोक नहीं जश्न मना रहा पूरा गांव, लोग बोले-ऐसे पति-पत्नी की जोड़ी लाखों में एक होती है...

अभी तक आपने देखा होगा कि जब किसी के परिवार में किसी की मौत हो जाती है तो पूरे कॉलोनी में शोक का माहौल होता है। लेकिन राजस्थान के बाडमेर से अनोखा मामला सामने आया है। जहां पति की मौत की खबर पर पत्नी ने खाना पीना छोड़ दिया है तो वहीं पूरा परिवार शौक की बजाए जश्न मना रहा है।

Arvind Raghuwanshi | Published : Jan 14, 2023 4:47 AM IST / Updated: Jan 14 2023, 10:42 AM IST

जयपुर. मौत होने पर घर में रोते चीखते हुए लोग, गुमसुम पड़ी गलियां अक्सर हमने किसी भी परिवार में किसी व्यक्ति की ज्यादा तबीयत खराब होने पर या मौत होने पर ऐसे ही सीन देखे होंगे। लेकिन राजस्थान के बाड़मेर जिले से एक अनोखा मामला सामने आया है। यहां के एक बुजुर्ग दंपत्ति की कुछ दिनों में मौत होने वाली है पूर्णविराम मौत भी उनकी इच्छा से ही हो रही है। ऐसे में परिवार के लोग कोई मातम नहीं बल्कि जश्न मना रहे हैं। परिवार के सभी लोग एक साथ रह रहे हैं। वही घर में पूरे दिन भजन कीर्तन हो रहे हैं।

मौत के मुंह से लौटे तो सब त्याग दिया
दरअसल बाड़मेर जिले के जसोल गांव के रहने वाले पुखराज संकलेचा को 7 दिसंबर को हार्ट अटैक आ गया पूर्णविराम इस उम्र में हार्ट अटैक आने के बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। लेकिन भगवान की ऐसी कृपा है कि वह पूरी तरह से ठीक होकर 16 सितंबर को वापस अपने घर लौट आए। जब बुजुर्ग घर लौटा तो गांव में उनका भव्य स्वागत किया गया। लेकिन 27 दिसंबर को बुजुर्ग ने फैसला किया कि वह अब संथारा करेंगे इसके लिए उन्होंने खाना-पीना और यहां तक कि दवाई लेना भी छोड़ दी। 

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पति के त्याग के बाद पत्नी ने भी दिया बलिदान
वही उनकी पत्नी गुलाबी देवी की रोहित ने करीब 10 साल पहले दीक्षा ली थी। उसी दिन से गुलाबी देवी ने निर्णय किया था कि जब दोहिती की दीक्षा के 10 साल पूरे हो जाएंगे। लेकिन परिवार के लोगों ने उन्हें 10 साल होने के बाद भी रुका हुआ था। पति के संथारा लेने पर उन्होंने भी संथारा लेने का निर्णय किया और खाना पीना छोड़ दिया। अब घर में और गांव में 27 दिसंबर से ही उनके सभी रिश्तेदार आए हुए हैं। गांव में और घर में पूरे दिन भजन कीर्तन होते रहते हैं। वहीं पूरे जैन समाज के इतिहास में यह पहला मामला है जब पति और पत्नी दोनों ही संथारा ले रहे हो। मामले में दंपति के बेटे का कहना है कि बुजुर्गों की मौत को भी महोत्सव के रूप में मनाया जाना चाहिए। गांव में इसके पहले भी कई लोग संथारा ले चुके हैं। जैन धर्म के इतिहास की माने तो संथारा का मतलब होता है कि जब मनुष्य खुद ईश्वर के पास जाने के लिए अन्य और जल का त्याग कर देता है।

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