भगवान शिव की पवित्र 'छड़ी मुबारक' अमरनाथ गुफा मंदिर पहुंची, सदियों पहले भगवान भृगु ने शुरू की थी यात्रा

अमरनाथ यात्रा की परंपरा सदियों पुरानी है। सर्वप्रथम यह भृगु ऋषि ने की थी। अमरनाथ यात्रा की समाप्ति छड़ी मुबारक के पूजन के साथ समाप्त होती है। यह पूजा श्रावण पूर्णिमा के दिन की जाती है।

श्रीनगर। भगवान शिव की पवित्र 'छड़ी मुबारक' को मंगलवार को पारंपरिक पहलगाम मार्ग से जम्मू क्षेत्र के पुंछ जिले में स्थित बुद्ध अमरनाथ के गुफा मंदिर में ले जाया गया। भगवान शिव को समर्पित बुद्ध अमरनाथ को चट्टानी बाबा अमरनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह जम्मू से 290 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित है। पवित्र छड़ी यात्रा का नेतृत्व आचार्य श्री श्री महामंडलेश्वर स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती महाराज ने किया। इसे पुंछ में दशनामी अखाड़ा मंदिर परिसर से मंडी के राजपुरा क्षेत्र में श्री बुद्ध अमरनाथ मंदिर तक ले जाया गया था।

विशेष पूजन अर्चन के बाद यात्रा प्रारंभ

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पुंछ अखाड़ा मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विशेष पूजा और हवन के बाद यात्रा की शुरुआत हुई। पूजा और हवन के बाद स्वामी जी ने एक भव्य धार्मिक सभा को संबोधित किया।

कब से चली आ रही है छड़ी मुबारक यात्रा?

अमरनाथ यात्रा की परंपरा सदियों पुरानी है। सर्वप्रथम यह भृगु ऋषि ने की थी। अमरनाथ यात्रा की समाप्ति छड़ी मुबारक के पूजन के साथ समाप्त होती है। यह पूजा श्रावण पूर्णिमा के दिन की जाती है। इसके पहले छड़ी यात्रा शुरू होती है। श्रीनगर से विधिवत पूजन अर्चन के बाद भगवान शिव की पवित्र छड़ी अमरनाथ गुफा पहुंचाई जाती है। इस यात्रा के बाद पवित्र छड़ी  को अमरनाथ गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित किया जाता है। फिर रक्षा बंधन के अगले दिन उसे वहां से पुन: अपने स्थान पर ले जाया जाता है। 

कल्हण रचित ग्रंथ राजतरंगिणी के अनुसार श्री अमरनाथ यात्रा का प्रचलन ईस्वी से भी एक हजार वर्ष पूर्व का है। एक किंवदंती यह भी है कि कश्मीर घाटी पहले एक बहुत बड़ी झील थी जहां सर्पराज नागराज दर्शन दिया करते थे। अपने संरक्षक मुनि कश्यप के आदेश पर नागराज ने कुछ मनुष्यों को वहां रहने की अनुमति दे दी। मनुष्यों की देखा-देखी वहां राक्षस भी आ गए जो बाद में मनुष्य व नागराज दोनों के लिए सिरदर्द बन गए। अंतत: नागराज ने कश्यप ऋषि से इस संबंध में बातचीत की। कश्यप ऋषि ने अपने अन्य संन्यासियों को साथ लेकर भगवान भोले भंडारी से प्रार्थना की। तब शिव भोले नाथ ने प्रसन्न होकर उन्हें एक चांदी की छड़ी प्रदान की। यह छड़ी अधिकार एवं सुरक्षा की प्रतीक थी। भोलेनाथ ने आदेश दिया कि इस छड़ी को उनके निवास स्थान अमरनाथ ले जाया जाए जहां वह प्रकट होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देंगे। इसके बाद छड़ी यात्रा की परंपरा प्रारंभ हुई।

क्यों प्रसिद्ध है यह मंदिर?

समुद्र तल से 4,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर पुंछ के मंडी क्षेत्र में सुरम्य वातावरण के बीच स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर हिमालय में उस स्थान पर स्थित है, जहां लंका के राजा रावण के दादा ऋषि पुलत्स्य ने कई दशकों तक शिव की पूजा की थी। पीर पंजाल (हिमालय) के लोरन-मंडी पहाड़ों से पुंछ और पीओके तक बहने वाली पुलस्त नदी का नाम इस महान संत के नाम पर रखा गया है। छड़ी मुबारक दो दिनों तक मंदिर में रहेगा और रक्षा बंधन के अगले दिन वापस लाया जाएगा।

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