
धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्रीराम भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे। राक्षसों के विनाश के लिए त्रेतायुग में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर श्रीराम का जन्म अयोध्या के राजा दशरथ के यहां हुआ था। हर साल इस तिथि पर राम जन्मोत्सव बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस बार चैत्र शुक्ल नवमी तिथि 2 दिन है, जिसके चलते राम नवमी पर्व कब मनाया जाए, इसे लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति बन रही है। आगे उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा से जानिए, इस बार कब मनाएं राम जन्मोत्सव…
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, इस बार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 16 अप्रैल, मंगलवार की दोपहर 01:24 से शुरू होगी, जो अगले दिन यानी 17 अप्रैल, बुधवार की दोपहर 03:14 तक रहेगी। ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीराम का जन्म दोपहर 12 बजे हुआ था। ये स्थिति 17 अप्रैल, बुधवार को बन रही है, इसलिए इसी दिन राम जन्मोत्सव मनाया जाएगा। इस दिन रवि योग बनेगा, जो बहुत ही शुभ है।
ज्योतिषाचार्य पं. शर्मा के अनुसार, भगवान श्रीराम का जन्म दोपहर में हुआ था। इसलिए राम नवमी पर इसी समय पर मुख्य पूजा की जाती है। 17 अप्रैल, बुधवार को राम नवमी पूजन का मध्याह्न मुहूर्त सुबह 11:03 से 01:38 तक रहेगा, यानी भक्तों को इस दिन भगवान श्रीराम की पूजा के लिए 02 घण्टे 35 मिनट का समय मिलेगा।
- 17 अप्रैल, बुधवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल और चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- घर में किसी स्थान पर गंगाजल छिड़ककर उसे पवित्र करें। यहां एक पटिया यानी बाजोट स्थापित कर इसके ऊपर लाल कपड़ा बिछाएं।
- बाजोट पर भगवान श्रीराम का चित्र स्थापित करें। श्रीराम का चित्र इस तरह रखें कि इसका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे।
- भगवान श्रीराम के चित्र के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। चित्र पर फूल माला अर्पित करें और कुमकुम से तिलक भी लगाएं।
- इसके बाद अबीर, गुलाल, रोली, कलावा, चावल, चंदन, फूल, नारियल, पान आदि चीजें एक-एक करके श्रद्धा पूर्वक चढ़ाते रहें।
- पूजा के बाद नीचे लिखे मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।
श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे
रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः
- मंत्र जाप के बाद भगवान श्रीराम को अपनी इच्छा अनुसार भोग लगाएं और आरती करें। संभव हो तो इस दिन उपवास रखें।
- राम नवमी पर जो इस विधि से से भगवान श्रीराम की पूजा करता है, उसके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। साथ ही उसकी हर कामना भी पूरी होती है।
आरती कीजे श्रीरामलला की । पूण निपुण धनुवेद कला की ।।
धनुष वान कर सोहत नीके । शोभा कोटि मदन मद फीके ।।
सुभग सिंहासन आप बिराजैं । वाम भाग वैदेही राजैं ।।
कर जोरे रिपुहन हनुमाना । भरत लखन सेवत बिधि नाना ।।
शिव अज नारद गुन गन गावैं । निगम नेति कह पार न पावैं ।।
नाम प्रभाव सकल जग जानैं । शेष महेश गनेस बखानैं
भगत कामतरु पूरणकामा । दया क्षमा करुना गुन धामा ।।
सुग्रीवहुँ को कपिपति कीन्हा । राज विभीषन को प्रभु दीन्हा ।।
खेल खेल महु सिंधु बधाये । लोक सकल अनुपम यश छाये ।।
दुर्गम गढ़ लंका पति मारे । सुर नर मुनि सबके भय टारे ।।
देवन थापि सुजस विस्तारे । कोटिक दीन मलीन उधारे ।।
कपि केवट खग निसचर केरे । करि करुना दुःख दोष निवेरे ।।
देत सदा दासन्ह को माना । जगतपूज भे कपि हनुमाना ।।
आरत दीन सदा सत्कारे । तिहुपुर होत राम जयकारे ।।
कौसल्यादि सकल महतारी । दशरथ आदि भगत प्रभु झारी ।।
सुर नर मुनि प्रभु गुन गन गाई । आरति करत बहुत सुख पाई ।।
धूप दीप चन्दन नैवेदा । मन दृढ़ करि नहि कवनव भेदा ।।
राम लला की आरती गावै । राम कृपा अभिमत फल पावै ।।
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