Navratri 2023 Frist Day: 15 अक्टूबर को नवरात्रि के पहले दिन करें देवी शैलपुत्री की पूजा, जानें विधि, मंत्र, आरती और कथा

Published : Oct 14, 2023, 03:19 PM IST
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सार

Navratri 2023 Frist Day Puja Vidhi: इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरूआत 15 अक्टूबर, रविवार से हो रही है। नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा का विधान है। जानें देवी शैलपुत्री की पूजा विधि, मंत्र और पूरी डिटेल… 

Navratri 2023 Frist Day Puja Devi Shailputri: धर्म ग्रंथों के अनुसार, नवरात्रि के 9 दिनों में देवी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन देवी के शैलपुत्र रूप की पूजा का विधान है। इस बार शारदीय नवरात्रि का पहला दिन 15 अक्टूबर, रविवार को है, इसलिए इस दिन देवी शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। शैल का अर्थ होता है पर्वत तो शैलपुत्री का अर्थ हुआ पर्वत की पुत्री। आगे जानिए देवी शैलपुत्री की पूजा विधि, मंत्र, आरती और कथा…

कैसा है देवी शैलपुत्री का स्वरूप? (Navratri Ka pahle Din Kis Devi Ki Puja Kare)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, दैवी शैलपुत्री का वाहन बैल है। ये सफेद वस्त्र धारण करती हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री की पूजा करनी चाहिए।

ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा ( Devi Shilputri Ki Puja Vidhi)
- घर में किसी साफ स्थान पर पटिए (बाजोट) पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर देवी शैलपुत्री की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। देवी को कुंकुम का तिलक लगाएं और शुद्ध घी का दीपक लगाएं।
- माता की तस्वीर के निकट ही पानी से भरा एक कलश भी रखें। कलश पर कुंकुम से स्वस्तिक का निशान लगाएं। देवी को चुनरी ओढ़ाएं और नीचे लिखा मंत्र बोलें-
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
- इसके बाद कुंकुम, अबीर, गुलाल, फूल, फल, लौंग आदि चीजें एक-एक करके देवी को चढ़ाते रहें। अपनी इच्छा अनुसार देवी को भोग भी लगाएं और आरती करें।

ये हैं देवी शैलपुत्री (Shilputri Aarti) की आरती
शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

ये है देवी शैलपुत्री की कथा (Story of Devi Shailputri)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव का विवाह ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति की पुत्री सती से हुआ था। एक बार दक्ष प्रजापित ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, लेकि द्वेषतावश उन्होंने अपने जमाई शिवजी को नहीं बुलाया। पिता के घर यज्ञ का आयोजन होने पर सती बिना बुलाए वहां पहुंच गई। जब सती ने देखा की यज्ञ में उनके पति शिव का अपमान हो रहा है तो उन्होंने यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया। इसके बाद उन्होंने हिमालय के यहां पुत्री रूप में दोबारा जन्म लिया। हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण ही इनका नाम शैलपुत्री पड़ा क्यों शैलपुत्री का अर्थ होता है पर्वतों की कन्या।


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