सार

SuryaDev Aarti: हिंदू धर्म में सूर्य को प्रत्यक्ष देवता माना गया है यानी वो देवता जिन्हें हम अपनी आंखों से देख सकते हैं। पंचदेवों में भी सूर्य की पूजा का विधान है। इसकी वजह है कि बिना सूर्य की रोशनी से पृथ्वी पर जीवन संभव ही नहीं है।

 

Kaise kare SuryaDev Ki Aarti: जिस तरह ज्योतिष शास्त्र में सूर्य का विशेष महत्व बताया गया है, उसी तरह धर्म ग्रंथों में भी है। सूर्य को प्रत्यक्ष देवता कहते हैं। पंचदेव जिनमें भगवान विष्णु और शिव शामिल हैं, उसमें भी सूर्यदेव को स्थान दिया गया है। विद्वानों के अनुसार, सूर्यदेव की पूजा से हर ग्रह की शांति संभव है। इसलिए हमारे पूर्वजों ने रोज रूप सूर्यदेव को जल चढ़ाने की परंपरा बनाई। सूर्यदेव की आरती रोज करने से भी हमारी परेशानियां कम हो सकती हैं। आगे जानिए सूर्यदेव की आरती करते समय किन बातों का ध्यान रखें…

Shanidev Aarti Lyrics in Hindi: कैसे करें शनिदेव की आरती? जानें पूरी विधि

 

इस विधि से करें सूर्यदेव की आरती

1. रोज सुबह स्नान आदि करने के बाद ही सूर्यदेव की आरती करें। बिना स्नान करें सूर्यदेव की पूजा करने से अशुभ फल मिल सकते हैं।
2. जब सूर्योदय हो तो सबसे पहले तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं। ध्यान रखें ये जल किसी के पैरों में नहीं आना चाहिए।
3. इसके बाद शुद्ध घी का दीपक जलाकार सूर्यदेव की आरती करें। अगर मन में कोई इच्छा है तो वह भी बोल लें।
4. इस तरह रोज सूर्यदेव की आरती करने से आपकी सभी तरह की परेशानियां अपने आप ही दूर हो सकती हैं।

सूर्यदेव की आरती लिरिक्स हिंदी में (SuryaDev Aarti Lyrics In Hindi)

ऊँ जय सूर्य भगवान,
जय हो दिनकर भगवान ।
जगत् के नेत्र स्वरूपा,
तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ।
धरत सब ही तव ध्यान,
ऊँ जय सूर्य भगवान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
सारथी अरूण हैं प्रभु तुम,
श्वेत कमलधारी ।
तुम चार भुजाधारी ॥
अश्व हैं सात तुम्हारे,
कोटी किरण पसारे ।
तुम हो देव महान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
ऊषाकाल में जब तुम,
उदयाचल आते ।
सब तब दर्शन पाते ॥
फैलाते उजियारा,
जागता तब जग सारा ।
करे सब तब गुणगान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
संध्या में भुवनेश्वर,
अस्ताचल जाते ।
गोधन तब घर आते॥
गोधुली बेला में,
हर घर हर आंगन में ।
हो तव महिमा गान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
देव दनुज नर नारी,
ऋषि मुनिवर भजते ।
आदित्य हृदय जपते ॥
स्त्रोत ये मंगलकारी,
इसकी है रचना न्यारी ।
दे नव जीवनदान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
तुम हो त्रिकाल रचियता,
तुम जग के आधार ।
महिमा तब अपरम्पार ॥
प्राणों का सिंचन करके,
भक्तों को अपने देते ।
बल बृद्धि और ज्ञान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
भूचर जल चर खेचर,
सब के हो प्राण तुम्हीं ।
सब जीवों के प्राण तुम्हीं ॥
वेद पुराण बखाने,
धर्म सभी तुम्हें माने ।
तुम ही सर्व शक्तिमान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
पूजन करती दिशाएं,
पूजे दश दिक्पाल ।
तुम भुवनों के प्रतिपाल ॥
ऋतुएं तुम्हारी दासी,
तुम शाश्वत अविनाशी ।
शुभकारी अंशुमान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
ऊँ जय सूर्य भगवान,
जय हो दिनकर भगवान ।
जगत के नेत्र रूवरूपा,
तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ॥
धरत सब ही तव ध्यान,
ऊँ जय सूर्य भगवान ॥


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