
Pradosh Vrat October 2025: धर्म ग्रंथों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अनेक व्रत बनाए गए हैं, प्रदोष व्रत भी इनमें से एक है। ये व्रत हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि पर किया जाता है। इस तरह साल 24 प्रदोष व्रत किए जाते हैं। ये व्रत जिस वार को किया जाता है, उसी के अनुसार, इसका नाम हो जाता है जैसे रविवार को प्रदोष व्रत होने से ये रवि प्रदोष कहलाता है। जानें अक्टूबर 2025 में कब करें प्रदोष व्रत…
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पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 04 अक्टूबर, शनिवार की शाम 05 बजकर 09 मिनिट से शुरू होगी जो 05 अक्टूबर, रविवार की दोपहर 03 बजकर 04 मिनिट तक रहेगी। चूंकि प्रदोष व्रत की पूजा शाम को करने का विधान है, इसलिए ये व्रत 4 अक्टूबर, शनिवार को करना शास्त्र सम्मत रहेगा। शनिवार को प्रदोष व्रत होने से ये शनि प्रदोष कहलाएगा।
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19 सितंबर, शुक्रवार को प्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06 बजकर 03 मिनिट से रात 08 बजकर 30 मिनिट तक रहेगा। यानी भक्तों को पूजा के लिए पूरे 02 घंटे 27 मिनट का समय मिलेगा। इस दिन वर्धमान, आनंद और द्विपुष्कर नाम के 3 शुभ योग रहेंगे, जिससे इस व्रत का महत्व और बढ़ जाएा।
4 अक्टूबर, शनिवार की सुबह उठकर स्नान करने के बाद हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें। ऊपर बताए गए शुभ मुहूर्त से पहले पूजन सामग्री एक स्थान पर रख लें। शुभ मुहूर्त में पूजा शुरू करें। सबसे पहले शिवलिंग पर जल चढ़ाएं, फिर गाय के दूध से अभिषेक करें। एक बार पुन: जल से अभिषेक करें। भगवान को फूल चढ़ाएं, शुद्ध घी का दीपक लगाएं। इसके बाद एक-एक करके बिल्व पत्र, आंकड़े के फूल, धतूरा, रोली, अबीर, जनेऊ आदि चीजें अर्पित करें। पूजा के दौरान ऊं नम: शिवाय का जाम मन ही मन में करते रहें। भगवान को भोग लगाएं और आरती करें। इस तरह प्रदोष व्रत करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे स्वामी पंचांनन राजे
हंसानन गरुड़ासन हंसानन गरुड़ासन
वृषवाहन साजे ओम जय शिव ओंकारा
दो भुज चारु चतुर्भूज दश भुज ते सोहें स्वामी दश भुज ते सोहें
तीनों रूप निरखता तीनों रूप निरखता
त्रिभुवन जन मोहें ओम जय शिव ओंकारा
अक्षमाला बनमाला मुंडमालाधारी स्वामी मुंडमालाधारी
त्रिपुरारी धनसाली चंदन मृदमग चंदा
करमालाधारी ओम जय शिव ओंकारा
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगें स्वामी बाघाम्बर अंगें
सनकादिक ब्रह्मादिक ब्रह्मादिक सनकादिक
भूतादिक संगें ओम जय शिव ओंकारा
करम श्रेष्ठ कमड़ंलू चक्र त्रिशूल धरता स्वामी चक्र त्रिशूल धरता
जगकर्ता जगहर्ता जगकर्ता जगहर्ता
जगपालनकर्ता ओम जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका स्वामी जानत अविवेका
प्रणवाक्षर के मध्यत प्रणवाक्षर के मध्य
ये तीनों एका ओम जय शिव ओंकारा
त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावें स्वामी जो कोई जन गावें
कहत शिवानंद स्वामी कहत शिवानंद स्वामी
मनवांछित फल पावें ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।