उज्जैन महाकाल मंदिर के 4 रहस्य, 1 के आगे तो विज्ञान भी नतमस्तक

सार

Mahakal Temple of Ujjain: हमारे देश में अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं, उज्जैन का महाकालेश्वर भी इनमें से एक है। ये 12 ज्योतिर्लिंगों में तीसरे स्थान पर है। इस मंदिर से 1 नहीं कईं रहस्य छिपे हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

 

4 secrets of Ujjain Mahakal Temple: मध्य प्रदेश का उज्जैन शहर अपने मंदिरों के लिए जाना जाता है। यहां सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध मंदिर है महाकालेश्वर। ये मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर से जुड़ी अनेक मान्यताएं और परंपराएं है जो इसे खास बनाती हैं। इतना ही नहीं ये मंदिर अपने अंदर कईं रहस्य समेटे हैं, जिनके बारे में कम ही लोगों को पता है। आगे जानें महाकाल मंदिर से जुड़े 4 रहस्य…

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1. यहां से गुजरती है कर्क रेखा

वैज्ञानिकों के अनुसार उज्जैन का महाकाल ही वह स्थान है जहां से कर्क रेखा गुजरती है, जिसके चलते ये शहर कभी खगोल गणना का मुख्य केंद्र हुआ करता था। साथ ही भूमध्य रेखा भी यहीं पर कर्क रेखा को काटती है। इसलिए महाकाल को पृथ्वी का सेंटर यानी केंद्र बिंदु भी माना जाता है। वैज्ञानिकों ने जब ये देखा तो वे भी चौंक गए कि पुराने समय में इतनी सटीक खगोल गणना आखिर किसने और कैसे की होगी?

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2. सुबह होने वाली भस्म आरती

महाकाल मंदिर में रोज सुबह होने वाली भस्म आरती अपने आप में एक रहस्य है क्योंकि ये परंपरा कैसे शुरू हुई ये कोई नहीं जानता। कहते हैं पहले के समय में भगवन महाकाल की भस्मारती में मुर्दें की राख का उपयोग किया जाता है, लेकिन बाद में ये परंपरा बदल गई। भस्मआरती को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग यहां आते हैं।

3. एकमात्र दक्षिमुखी ज्योतिर्लिंग है महाकाल

उज्जैन का महाकाल मंदिर एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग हैं। अन्य कोई ज्योतिर्लिंग इस दिशा में नहीं है। एकमात्र महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दक्षिण मुखी होना कोई साधारण बात नहीं है। वास्तु में दक्षिण दिशा के स्वामी मृत्यु के देवता यमराज को माना गया है। मृत्यु से परे होने के कारण ही भगवान महाकाल को ये नाम दिया गया है।

4. साल में एक बार खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर

उज्जैन का महाकाल मंदिर 3 तलों में बना हुआ है। सबसे ऊपरी तल पर नागचंद्रेश्वर मंदिर है, जो साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर खुलता है। ऐसी मान्यता है कि तक्षक नाग आज भी गुप्त स्थान पर यहां रहता है। यहां जो प्रतिमा स्थापित है वो मराठा काल की है। इस प्रतिमा में भगवान शिव देवी पार्वती के साथ शेषनाग पर विराजित हैं, विश्व में अन्य कहीं ऐसी प्रतिमा देखने को नहीं मिलती।


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Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो ज्योतिषियों व विद्वानों द्वारा बताई गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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