Arulmigu Dhandayuthapani Swamy Temple: तमिलनाडु में स्थित अरुल्मिगु दंडायुधपाणी मंदिर काफी प्राचीन है। कहा जाता है कि इस मंदिर में स्वामी कार्तिकेय की जो प्रतिमा स्थापित है, उसका निर्माण 9 सबसे विषैले पदार्थों को मिलाकर किया गया है।
उज्जैन. हमारे देश में अनेक प्राचीन मंदिर हैं, इन सभी से अलग-अलग मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हैं। ऐसा ही एक मंदिर तमिलनाडु (Tamil Nadu) के डिंडीगुल (Dindigul) जिले के पलनि (Palani) में भी है, जिसे अरुल्मिगु दंडायुधपाणी (Arulmigu Dhandayuthapani Swamy Temple) मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में शिवपुत्र स्वामी कार्तिकेय का प्रतिमा स्थापित है। स्वामी कार्तिकेय को यहां मुरुगन के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। आगे जानिए इस मंदिर का इतिहास व अन्य खास बातें
विषैले पदार्थों से बनी है मुरुगन स्वामी की प्रतिमा
ऐसा कहा जाता है कि मुरुगन स्वामी की जो प्रतिमा अरुल्मिगु दंडायुधपाणी मंदिर में स्थापित है वह 9 बेहद जहरीले पदार्थों को मिलाकर बनाई गई है। आयुर्वेद में इन जहरीले पदार्थों को एक निश्चित अनुपात में मिलाकर औषधि निर्माण की प्रक्रिया का भी वर्णन मिलता है। मंदिर परिसर में ही एक ओर ऋषि बोगार की समाधि है। ऋषि बोगार आयुर्वेद के महान विद्वान थे। मान्यता है कि ऋषि बोगार ने ही मुरुगन स्वामी की मूर्ति का निर्माण किया था।
ये है मंदिर का इतिहास
मुरुगन स्वामी के इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। इसका वर्णन स्थल पुराण और तमिल साहित्य में मिलता है। वर्तमान में जो मंदिर यहां स्थापित है, उसका निर्माण 5वीं-6वीं शताब्दी के दौरान चेर वंश के राजा चेरामन पेरुमल ने करवाया था। कहते हैं कि स्वयं मुरुगन स्वामी ने राजा को सपने में आकर इस स्थान पर उनकी प्रतिमा होने की बात बताई थी। उसके बाद राजा ने यहां मंदिर की स्थापना की। इसके बाद पांड्य वंश के राजाओं ने भी इस मंदिर को विशाल रूप दिया।
मंदिर का स्वरूप और खास बातें
अरुल्मिगु दंडायुधपाणी मंदिर शिवपुत्र कार्तिकेय का सबसे विशाल मंदिर कहा जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 689 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इस मंदिर का गोपुरम सोने से मढ़ा गया है। गर्भगृह में जाने की अनुमति किसी को नहीं है लेकिन इसके बाद भी यहां भक्तों की संख्या लगातार बनी रहती है। इस मंदिर की एक और खास बात यहां का प्रसाद है जिसे पंचतीर्थम प्रसादम कहा जाता है। इस प्रसाद का निर्माण केला, घी, इलायची, गुड़ और शहद से किया जाता है। इस प्रसाद को भौगोलिक संकेत या GI टैग भी प्रदान किया गया है।
कैसे पहुँचें?
- पलनि का सबसे नजदीकी हवाईअड्डा कोयंबटूर अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा है, जो यहाँ से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से सड़क मार्ग द्वारा आप आसानी से मंदिर पहुंच सकते हैं।
- पलनि रेलवे स्टेशन कोयंबटूर-रामेश्वरम रेललाइन पर स्थित है। यहां पहुँचने के लिए मदुरै, कोयंबटूर और पलक्कड से ट्रेनें चलती हैं।
- सड़क मार्ग से भी आसानी से पलनि पहुंचा जा सकता है क्योंकि तमिलनाडु राज्य परिवहन की बसें सीधे ही कई बड़े शहरों से पलनि के लिए चलती हैं।
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