Hindu tradition: आरती लेने के बाद थाली में पैसे रखने की परंपरा क्यों, क्या जानते हैं आप?

Hindu tradition: हिंदू धर्म के अंतर्गत जब भी कोई पूजा-पाठ या धार्मिक कार्य किया जाता है तो अंत में आरती जरूर की जाती है। आरती लेने के बाद थाली में थोड़े पैसा जरूर रखे जाते हैं, ये परंपरा पुरातन समय से चली आ रही है।

 

उज्जैन. हिंदू धर्म में कई परंपराएं पुरातन समय से चली आ रह है। इन सभी परंपराओं के पीछे कोई न कोई धार्मिक, वैज्ञानिक या मनोवैज्ञानिक पक्ष होता है, लेकिन बहुत कम लोग इसके बारे में जानते हैं। ऐसी ही एक परंपरा (Hindu tradition) पूजा के बाद की जाने वाली आरती से जुड़ी है। पूजा के बाद कपूर से भगवान की आरती की जाती है और बाद में जब सभी लोग आरती लेते हैं तो थाली में कुछ पैसे रखते हैं। ये पैसे क्यों रखे जाते हैं, इसके पीछे दो कारण हैं। आज हम आपको इन्हीं दो कारणों के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…


आरती की थाली में पैसे रखने का धार्मिक पक्ष
हिंदू धर्म में दान को आवश्यक माना गया है। हर व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार दान जरूर करना चाहिए और दान हमेशा सद्पात्र व्यक्ति को देना चाहिए। श्रीमद्भागवत गीता में श्लोक है-
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।17.20।।
अर्थ- दान देना ही कर्तव्य है, इस भाव से जो दान योग्य देश, काल को देखकर ऐसे (योग्य) पात्र (व्यक्ति) को दिया जाता है, जिससे प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं होती है, वह दान सात्त्विक माना गया है।

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इस श्लोक का धार्मिक पक्ष देखे तों मंदिर में जो पुजारी होता है, वह भी दान के लिए सद्पात्रों में से एक होता है क्योंकि उससे हम किसी तरह की कोई अपेक्षा नहीं रखते। मंदिर के पुजारी हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं और दूसरों की भलाई के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। इसलिए आरती की थाली में रखे गए पैसे मंदिर के पुजारी को दानस्वरूप दिए जाते हैं।


आरती की थाली में पैसे रखने का मनोवैज्ञानिक पक्ष
पहले के समय में मंदिर में नियुक्त किए गए पुजारी कोई अन्य कार्य नहीं कर सकते थे, उन्हें मंदिर में पूजा के साथ-साथ अन्य व्यवस्थाओं का भी ध्यान रखना होता था। मंदिर के पुजारियों की कोई निश्चित आय नही होती थी, इसके लिए मंदिर में आने वाला दान ही आय का एकमात्र स्त्रोत होता था। इसी दान से वे अपने परिवार का पालन-पोषण भी करते थे और मंदिर की व्यवस्थाओं को भी सुचारू रूप से चलाते थे। जब भी कभी मंदिर में कोई अतिरिक्त कार्य करवाना होता था तो इसी दान की राशि से वे कार्य करते थे। इसलिए मंदिर में प्रतिदिन की जाने वाली आरती में दान स्वरूप पैसे देने की परंपरा बनाई गई ताकि मंदिर के पुजारी अपने परिवार का पालन- पोषण कर सकें और मंदिर की व्यवस्था भी ठीक रहे। ये परंपरा आज भी जारी है।


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें। आर्टिकल पर भरोसा करके अगर आप कुछ उपाय या अन्य कोई कार्य करना चाहते हैं तो इसके लिए आप स्वतः जिम्मेदार होंगे। हम इसके लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।

 

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