Jivitputrika Vrat 2023: 8 अक्टूबर को होगा जीवित्पुत्रिका व्रत का पारणा, जानें पूजा विधि, कथा व अन्य खास बातें

Jivitputrika Vrat 2023: श्राद्ध पक्ष के दौरान कई प्रमुख व्रत किए जाते हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत भी इनमें से एक है। इसे जिऊतिया या जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस बार ये व्रत 6 अक्टूबर, शुक्रवार को किया जाएगा।

 

Manish Meharele | Published : Oct 5, 2023 6:03 AM IST / Updated: Oct 07 2023, 08:43 AM IST

उज्जैन. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat 2023) किया जाता है। ये व्रत महिलाएं अपने पुत्रों की लंबी आयु और अच्छी सेहत के लिए रखती हैं। ये व्रत 3 दिनों तक किया जाता है। इस बार ये व्रत 6 से 8 अक्टूबर तक किया जाएगा। ये व्रत जिमूतवाहन, जिऊतिया और जितिया आदि नामों से भी किया जाता है। वैसे तो ये व्रत पूरे देश में किया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार में इसकी विशेष मान्यता है। आगे जानिए इस व्रत की पूजा विधि, कथा व अन्य खास बातें…

इन शुभ योगों में किया जाएगा जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat 2023 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर, शुक्रवार को पूरे दिन रहेगी। इस दिन आर्द्रा नक्षत्र होने से पद्म नाम का शुभ योग दिन भर रहेगा। इसके अलावा परिघ और शिव नाम के 2 अन्य योग भी इस दिन बनेंगे। जानिए 3 दिनों तक किए जाने वाले इस व्रत में कब क्या होगा…

नहाय-खाय 
इस दिन, व्रत रखने वाली महिलाएं किसी तालाब या नदी में स्नान करती हैं और घी से बना सात्विक भोजन करती हैं। इस दिन भोजन में सामान्य नमक के बजाए फलाहारी नमक का उपयोग किया जाता है।

खुर-जितिया या जिविपुत्रिका दिवस 
यह त्योहार का दूसरा दिन है, जिसमें 24 घंटे का उपवास रखा जाता है। इस व्रत का समापन अगले दिन मुहूर्त के अनुसार ही किया जाता है।

पारण 
यह व्रत का तीसरा दिन है, जब महिलाएं अपना व्रत समाप्त करती हैं। कई लोग खीरा और दूध से व्रत खोलते हैं। इसके बाद चावल, नोनी साग और मडुआ रोटी का पारंपरिक भोजन कर व्रत का समापन किया जाता है।

इस विधि से करें जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat Puja Vidhi)
व्रत करने वाली महिलाएं 6 अक्टूबर, शुक्रवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और व्रत-पूजा का संकल्प लें। शाम को गाय के गोबर से पूजन स्थल को लीपें और मिट्टी से एक छोटा तालाब भी बना लें। इस तालाब के किनारे पाकड़ (एक प्रकार का पेड़) की डाल लाकर खड़ी कर दें। कुशा घास से जिमूतवाहन का पुतला बनाएं और उसकी पूजा करें। मिट्टी या गाय के गोबर से चिल्होरिन (मादा चील) और सियारिन की मूर्ति बनाकर उसके माथे पर लाल सिंदूर लगाएं। पूजा के बाद इस व्रत की कथा जरूर सुनें।

ये है जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा (Jivitputrika Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, जिमूतवाहन गंधर्वों के राजकुमार थे। एक दिन वन में घूमते हुए उन्होंने एक वृद्धा को रोते हुए देखा। कारण पूछने पर उस स्त्री ने बताया कि ‘मैं नागवंश की स्त्री हूं। हमारे वंश में रोज एक बलि पक्षीराज गरुड़ को देने की परंपरा है। आज मेरा पुत्र की बारी है।’
महिला की बात सुनकर जिमूतवाहन ने कहा ‘मैं तुम्हारे पुत्र की रक्षा करूंगा। उसके स्थान पर मैं स्वयं गरुड़देव का आहार बनूंगा।’ ऐसा कहकर जिमूतवाहन स्वयं उस जगह जाकर खड़े हो गए जहां पक्षीराज गरुड़ आने वाले थे।
जब गरुड़देव वहां आए तो नाशवंशी के अलावा दूसके युवक को वहां देख उन्होंने इसका कारण पूछा तो जिमूतवाहन ने उन्हें सारी बात सच-सच बता दी। जिमूतवाहन की बहादुरी देखकर गरुड़देव ने नागों की बलि ना लेने का वचन दिया।
इस तरह जिमूतवाहन के साहस से नाग जाति की रक्षा हुई। तभी से संतान की सुरक्षा और उसकी अच्छी सेहत के लिए जीमूतवाहन की पूजा की शुरुआत हुई। जिमूतवाहन के नाम से इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका और जिउतिया पड़ा।


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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