Pongal 2024: क्यों और कितने दिनों तक मनाते हैं पोंगल, जानें इसका इतिहास और रोचक कथा?

Pongal Kyo Manate hai: देश के अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। तमिलनाडु में ये पर्व पोंगल के रूप में मनाया जाता है। पोंगल से जुड़ी अनेक परंपराएं और मान्यताएं हैं।

 

Manish Meharele | Published : Jan 15, 2024 4:03 AM IST

Pongal Ki Katha: तमिलनाडु में हर साल मकर संक्रांति के मौके पर पोंगल उत्सव मनाया जाता है। ये उत्सव 4 दिनों तक चलता है। इस बार ये उत्सव 15 से 18 जनवरी तक मनाया जाएगा। इस पर्व से जुड़ी अनेक खास मान्यताएं और परंपराएं हैं। पोंगल उत्सव के पहले दिन को भोगी, दूसरे को सूर्य, तीसरे को मट्टू और चौथे को कानुम पोंगल कहते हैं। तमिलनाडु में इसी दिन से नए साल की शुरूआत मानी जाती है। आगे जानिए क्यों मनाते हैं पोंगल…

इसलिए मनाते हैं पोंगल उत्सव (Why do we celebrate Pongal)
प्राचीन कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने अपने वाहन नंदी से कहा कि ‘ तुम धरती पर जाकर लोगों से कहो कि सभी मनुष्यों को रोज तेल से स्नान करना चाहिए और महीने में सिर्फ एक दिन खाना खाना चाहिए।’
जब नदी धरती पर आए तो वे महादेव का संदेश भूल गए और उन्होंने कहा कि ‘मनुष्यों को रोज भोजन करना चाहिए और एक दिन तेल से स्नान करना चाहिए।’
जब महादेव को पता चला कि नंदी ने मनुष्यों को गलत संदेश पहुंचाया है तो नाराज हो गए और नंदी को श्राप दिया कि तुम्हें पृथ्वी पर रहकर हल जोतना पड़ेगा। साथ ही महादेव ने ये भी कहा कि साल में एक दिन पृथ्वीवासी तुम्हारी पूजा करेंगे।
मान्यता है कि इसी श्राप के कारण साल में एक बार पोंगल उत्सव मनाया जाता है, जिसमें बैलों की पूजा की जाती है। इस दौरान और भी परंपराओं का पालन किया जाता है।

पोंगल की एक कथा ये भी (Story of Pongal)
पोंगल की एक अन्य कथा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है। उसके अनुसार ‘एक बार देवराज इंद्र को अहंकार हो गया कि वे जब तक पानी नहीं बरसाएंगे, तब तक पृथ्वी पर खेती नहीं हो पाएगी।’
जब ये बात श्रीकृष्ण को पता चली तो उन्होंने गोकुल वासियों से इंद्र के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा। उन्होंने ऐसा ही किया। ये देखकर इंद्र क्रोधित हो गए और मूसलाधार बारिश करने लगे।
तब श्रीकृष्ण ने सभी की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठा लिया। जब इंद्र ने ये देखा तो उनका अभिमान टूट गया और उन्होंने आकर श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की। इसके बाद नई फसलें आने पर श्रीकृष्ण के साथ सभी ग्रामवासियों ने उत्सव मनाया, तभी से पोंगल का त्योहार मनाया जा रहा है।


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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