Sant Ravidas Jayanti 2023: संत रविदास के इस मंदिर को क्यों कहते हैं काशी का दूसरा ‘गोल्डन टेंपल’?

Sant Ravidas Jayanti 2023: आज (5 फरवरी, रविवार) संत रविदासजी की जयंती है। पूरे देश में उनके अनुयायी इस दिन को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। काशी में संत रविदास का एक विशाल मंदिर है। इस मंदिर को काशी का दूसरा स्वर्ण मंदिर भी कहते हैं।

 

Manish Meharele | Published : Feb 5, 2023 3:21 AM IST

उज्जैन. हर साल माघी पूर्णिमा पर संत रविदास की जयंती मनाई जाती है। इस बार ये तिथि 5 फरवरी, रविवार को है। संत रविदास महान समाज सुधारक थे, उन्होंने भेदभाव को भूलकर पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का संदेश दिया। देश में शायद ही कोई ऐसा हिस्सा होगा, जहां संत रविदास के अनुयायी न हो। (Sant Ravidas Jayanti 2023) संत रविदास का जन्म और मृत्यु काशी में ही हुई थी। संत रविदास को मानने वालों ने उनके कई मंदिर भी बनवाएं हैं। इन्हीं में से एक मंदिर काशी में भी है। इस मंदिर से जुड़ी कई बातें इसे खास बनाती हैं। आगे जानिए क्या है इस मंदिर की विशेषता…


इसे कहते हैं काशी का दूसरा स्वर्ण मंदिर (Sant Ravidas Temple Kashi)
काशी में स्थित संत रविदास मंदिर (Sant Ravidas Mandir Kashi) का निर्माण 1965 में हुआ था। श्रद्धालुओं की श्रद्धा ऐसी है कि उन्होंने अपने दान से संत रविदास की जन्मस्थली पर भव्य मंदिर बनाया और यह श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद काशी का दूसरा स्वर्ण मंदिर बन गया। इस मंदिर में 200 किलो सोने से ज्यादा के चीजें हैं जैसे पालकी दीपक आदि।


130 किलो की सोने की पालकी
संत रविदास के इस मंदिर को काशी का दूसरा स्वर्ण मंदिर ऐसे ही नहीं कहा जाता। इस मंदिर में 130 किलो सोने की पालकी, 35 किलो सोने का दीपक, 35 किलो सोने की छतरी और 32 स्वर्ण कलश हैं। सोने की पालकी का निर्माण 2008 में यूरोप के भक्तों ने संगत कर पंजाब के जालंधर में बनवाया था। इस पालकी को साल में एक बार रविदासजी की जयंती के मौके पर ही निकाला जाता है।


35 किलो सोने के दीपक में जलती है अखंड ज्योति
मंदिर में सोने की और भी कई चीजे हैं। स्वर्ण दीपक भी इनमें से एक है। इसका वजन लगभग 35 किलो बताया जाता है। इस दीपक में अखंड ज्योति जल रही है, जो कभी नहीं बूझती। दीपक के आकार का अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि इसमें एक बार में 5 किलो शुद्ध घी डाला जाता है।


मंदिर का छत्र भी सोने का
इस मंदिर में पहला स्वर्ण कलश 1994 में संत गरीब दास ने चढ़ाया था। बाद में भक्तों ने इस मंदिर को 32 स्वर्ण कलशों से सुशोभित किया। इतना ही नहीं एक भक्त ने संगत कर मंदिर में 35 किलो सोने का छत्र भी लगाया है। इस मंदिर के कुल सोने का वजन लगभग 200 किलो बताया जाता है, जो हर साल भक्तों की सहयोग से बढ़ता जा रहा है।


रविदास जयंती पर उमड़ती है भीड़
संत रविदास जयंती के मौके पर यहां इनके अनुयायियों का तांता लगता है। बड़े-बड़े नेता, कलाकार व अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोग यहां आकर अपना शीश नवाते हैं। इस मौके पर देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी संत रविदास के अनुयायी यहां आते हैं। इस दौरान यहां की रौनक देखते ही बनती है।


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