Sawan Somwar Ki Katha: जो लोग पूरे सावन में व्रत नहीं कर पाते, वे सावन मास के प्रत्येक सोमवार को व्रत रखकर शिवजी को प्रसन्न कर सकते हैं। सावन सोमवार की पूजा विधि भी बहुत आसान है, लेकिन बिना कथा सुने इसका फल प्राप्त नहीं होता।
उज्जैन. सावन मास (Sawan 2023) 4 जुलाई से 31 अगस्त तक रहेगा। वैसे तो पूरा सावन मास ही शिवजी की पूजा के लिए शुभ है, लेकिन इस महीने में आने वाले सोमवार को शिवजी की पूजा का खास महत्व माना गया है। इस बार 8 सावन सोमवार रहेंगे। ऐसा सावन का अधिक मास होने के कारण होगा। जो लोग सावन सोमवार का व्रत करते हैं, उनके लिए सावन सोमवार व्रत की कथा (Sawan Somwar Ki Katha) सुनना भी जरूरी है, नहीं तो इस व्रत का पूरा फल नहीं मिलता। आगे जानिए सावन सोमवार की कथा…
शिवजी ने दिया भक्त को संतान का वरदान
पौराणिक कथा के अनुसार, एक शहर में साहूकार रहता था। वह भगवान शिव का परम भक्त रहता था। उसकी कोई भी संतान नहीं थी। इस कारण वह उदास रहता था। संतान की इच्छा से वह प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव-पार्वती की पूजा करता था। एक दिन उसकी पूजा से प्रसन्न होकर शिवजी प्रकट हुए और उसे संतान का वरदान दिया, लेकिन ये भी कहा कि तुम्हारा पुत्र अल्पायु होगा।
जब भक्त ने पुत्र को शिक्षा के लिए भेजा काशी
भगवान शिव के आशीर्वाद से साहूकार के यहां एक सुदंर बालक ने जन्म लिया। जब वह बालक 11 साल का हो गया तो साहूकार ने उसे उसके मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए काशी भेज दिया। जाते समय साहूकार ने कहा कि “रास्ते में जहां भी विश्राम के लिए रूको, वहीं ब्राह्मणों को भोजन जरूर करवाना।” रास्ते के लिए धन लेकर दोनों मामा-भांजे काशी के लिए निकल पड़े।
रास्ते में हो रहा था राजा की पुत्री का विवाह
जब साहूकार का बेटा अपने मामा के साथ काशी जा रहा था तो उसने देखा कि एक राजा अपनी पुत्री का विवाह काफी धूम-धाम से कर रहा है। उसे देखने के लिए वे दोनों भी कुछ देर वहां रुक गए। जिस लड़के से राजकुमारी का विवाह होने जा रहा था, वह काना था। ये बात दूल्हे के पिता ने किसी को बताई नहीं थी। विवाह के पहले डर के मारे उसने साहूकार के बेटे को अपना पुत्र बनाकर उससे राजकुमारी का विवाह करवा दिया।
जब साहूकार के बेटे ने लिखा ये संदेश
जब साहूकार के बेटे का विवाह राजकुमारी से हो गया तो काशी जाने लगा। इसके पहले उसने राजकुमारी के दुपट्टे पर लिखा कि ‘तुम्हारी शादी मुझसे हुई है, लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हें भेजा जाएगा वह काना है।’ राजकुमारी ने ये देखा तो काने राजकुमार के साथ जाने से इंकार कर दिया। उधर साहूकार का पुत्र मामा के साथ काशी पहुंच गया।
शिवजी ने दिया साहूकार के पुत्र को जीवनदान
काशी में रहकर साहूकार का पुत्र शिक्षा प्राप्त करने लगा। जब वह 16 वर्ष का हुआ तो एक दिन अचानक उसकी तबियत खराब हो गई और कुछ ही दिनों में उसकी मृत्यु भी हो गई। संयोग से उसी समय शिव-पार्वती का वहां से जाना हुआ। युवा मृतक को देवी पार्वती बहुत दुखी हुई। माता पार्वती के कहने पर शिवजी ने साहूकार के पुत्र को दोबारा जीवित कर दिया
जब राजुकमारी ने पहचान लिया अपने पति को
काशी में रहते हुए साहूकार के पुत्र ने शेष शिक्षा प्राप्त की और अपने घर लौटने लगा। रास्ते में वही नगर पड़ा, जिसकी राजुकमारी से उसका विवाह हुआ था। जब वह उस नगर से गुजर रहा था तो राजकुमारी ने उसे पहचान लिया। राजा ने अपना जामाता मानकर राजकुमारी और बहुत सारा धन देकर उसे विदा किया। बेटे को जीवित देख धनी बहुत प्रसन्न हुआ। रात में धनी व्यक्ति को सपने में आकर शिव ने कहा कि ये सब सोमवार व्रत करने का फल है।
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