Thaipusam 2023: किस मुस्लिम देश में है मुरुगन स्वामी की सबसे ऊंची प्रतिमा, यहां क्यों मनाते हैं थाईपुसम उत्सव?

Thaipusam 2023: थाईपुसम मलेशिया के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस त्योहार में भगवान मुरुगन की पूजा विशेष रूप से होती है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मलेशिया एक मुस्लिम देश है, लेकिन फिर भी यहां थाईपुसम का त्योहार उत्साह के साथ मनाया जाता है।

 

Manish Meharele | Published : Feb 6, 2023 6:33 AM IST
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मुस्लिम देश में हिंदुओं का त्योहार है थाईपुसम

दुनिया में अनेक देश हैं, जहां हिंदू संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। मलेशिया भी इन देशों में से एक है। मलेशिया एक मुस्लिम बाहुल्य देश है जहां का आधिकारिक धर्म इस्लाम है, लेकिन फिर भी यहां कई हिंदू मंदिर हैं। थाईपुसम (Thaipusam 2023) यहां के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस त्योहार में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय की पूजा विशेष रूप से की जाती है। थाईपुसम के दौरान मलेशिया में हिंदू धर्म और संस्कृति की झलक देखने लायक होती है।
 

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बातू गुफा में होता है जोरदार उत्सव

मलेशिया (Malaysia) में आयोजित होने वाले थाईपुसम (Thaipusam 2023) त्योहार में लाखों तमिल श्रद्धालु शरीक होते हैं। ये त्योहार 10 दिनों तक मनाया जाता है, जिसका समापन माघी पूर्णिमा पर होता है। मलेशिया में कुआलालंपुर (Kuala Lumpur) के पास बातू गुफा (Batu Cave) में थाईपुसम का जोरदार उत्सव होता है। यहां यह त्योहार 1892 से मनाया जा रहा है यानी लगभग 130 साल पहले से। उत्सव के दौरान लाखों लोग बातू गुफा के नीचे बने मुख्य द्वार से गुजरते हैं और भगवान मुरुगन की विशाल प्रतिमा के दर्शन करते हैं।
 

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140 फीट ऊंची है भगवान मुरुगन की प्रतिमा

मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में स्थित बातू गुफा के प्रवेश द्वार पर भगवान मुरुगन की विशाल प्रतिमा स्थित है। यह 42.7 मीटर यानी 140 फीट लंबी है। इस प्रतिमा में भगवान मुरुगन शांत मुद्रा में हाथ में भाला लिए खड़े हैं। भाला भगवान मुरुगन का प्रिय अस्त्र है। यह मलेशिया में किसी हिंदू देवी-देवता की सबसे ऊंची प्रतिमा है और मूर्तिकारों द्वारा इसे बनाने में तीन साल लगे थे। इस मूर्ति को बनाने में 350 टन स्टील का उपयोग किया किया गया है।
 

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कोई उठाता है कांवड तो कोई शरीर में छेदता है कीलें

थाईपुसम के दौरान सभी भक्त अलग-अलग तरीकों से भगवान मुरुगन को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। कई श्रद्धालु कांवड़ लेकर चलते हैं, कुछ श्रद्धालु अपने माथे पर दूध का बर्तन लेकर चलते हैं। कुछ लोग सिर मुंडवाते हैं। कुछ भक्त भगवान मुरुगन को प्रसन्न करने के लिए अपने शरीर में धातु की पतली नुकीली खूंटियां घुसाते हैं। इन खूंटियों में धातु के छोटे बर्तन या नींबू भी टंगे होते हैं। कुछ भक्त भाले जैसी दिखने वाली एक छोटी खूंटी अपने दोनों गालों के आर-पार करते हैं।
 

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ये है इस मंदिर से जुड़ी कथा

पौराणिक कथाओंके अनुसार, किसी समय एक महाबलशाली दानव था, उसका नाम इंदुबन था। एक बार एक ऋषि ने इंदुबन को कांवड उठाने को कहा। उस कांवड के दो दोनो सिरों पर दो पहाड़ियों को बांधा गया था और रस्सी की जगह सांप थे। इंदुबन ने उस कांवड को उठा तो लिया, लेकिन जब वह आराम करने के लिए रुका तो एक युवक उस पहाड़ी पर आकर बैठ गया, इसके बाद इदुंबन उसे उठा नहीं पाया। इंदुबन और उस युवक में भंयकर युद्ध। युवक ने इंदुबन को हरा दिया। वह युवक कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान मुरुगन थे। भगवान मुरुगन ने घोषणा की कि जो भी भक्त कांवड़ उठाएगा उसे पुण्य मिलेगा। 
 

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क्यों मनाते हैं थाईपुसम उत्सव?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, तारकासुर नाम के एक महापराक्रमी राक्षस था, जिसे वध सिर्फ शिव पुत्र के हाथों ही संभव था। तारकासुर ने अपनी मृत्यु को टालने का कई बार प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा। अंत में शिव पुत्र कार्तिकेय यानी मुरुगन स्वामी ने उसका वध कर दिया। इसी खुशी में देवताओं में उत्सव मनाया, उसे ही आज थाईपुसम के रूप में मनाया जाता है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव भी कहते हैं।


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