Pradosh Vrat 2022:भगवान शिव त्रिदेवों में से एक है। जिस तरह विष्णु जी संसार के पालनकर्ता हैं, उसी तरह शिवजी को विनाशक कहा जाता है। महीने में कई व्रत-त्योहार ऐसे आते हैं जब शिवजी की पूजा विशेष रूप से की जाती है।
उज्जैन. 5 दिसंबर, सोमवार को अगहन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। इस दिन प्रदोष व्रत किया जाएगा। सोमवार को होने से ये सोम प्रदोष (Som Pradosh December 2022) कहलाएगा। इस व्रत में भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस बार ये व्रत सोमवार को होने इसका महत्व और भी बढ़ गया है क्योंकि त्रयोदशी तिथि और सोमवार का संयोग बहुत कम बनता है। इस शुभ संयोग में की गई शिव पूजा बहुत ही फलदाई मानी जाती है। आगे जानिए इस शुभ संयोग में कैसे शिवजी की पूजा, शुभ मुहूर्त आदि जानकारी…
सोम प्रदोष पर पूजा का शुभ मुहूर्त (Som Pradosh December 2022 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, अगहन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 5 दिसंबर, सोमवार की सुबह 05:58 से शुरू होकर 06 दिसंबर, मंगलवार की सुबह 06:47 तक रहेगी। चूंकि प्रदोष व्रत में पूजा शाम को की जाती है, इसलिए ये व्रत 5 दिसंबर को ही किया जाएगा। इस दिन भरणी नक्षत्र होने से चर नाम का शुभ योग दिन भर रहेगा। इसके अलावा परिघ और शिव नाम के योग भी इस दिन बनेंगे। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05:24 से रात 08:07 तक रहेगा।
ये है प्रदोष की पूजा विधि (Som Pradosh 2022 Puja Vidhi)
- 5 दिसंबर, सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत व पूजा का संकल्प लें। दिन भर कुछ खाए नहीं। ऐसा संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं।
- शुभ मुहूर्त में शिवजी की तस्वीर या प्रतिमा एक चौकी पर स्थापित करें। पहले शुद्ध जल से और फिर गाय के दूध से शिवलिंग का अभिषेक करें। एक बार पुन: शुद्ध जल से अभिषेक करें।
- इसके बाद शिवजी को भांग, धतूरा, सफेद चंदन, फल, फूल, अक्षत (चावल) गाय का दूध, धूप आदि चढ़ाएं। पूजा करते समय ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें।
- भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। इसके बाद शिवजी की आरती करें।
- रात में जागरण करें और शिवजी के मंत्रों का जाप करें। इस तरह व्रत व पूजा करने से व्रती (व्रत करने वाला) की हर इच्छा पूरी हो सकती है।
शिवजी की आरती (Shivji Ki Aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥
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