
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों में NDA ने इतिहास रच दिया है। शुरुआती रुझानों से लेकर अंतिम दौर तक, NDA की लहर नहीं—सीधी सुनामी दिखी, जिसने 200+ सीटों का आंकड़ा पार कर पूरे राजनीतिक समीकरण बदल दिए। यह जीत सिर्फ वोटों की नहीं, बल्कि एक रणनीतिक, सामाजिक और राजनीतिक गठजोड़ की सफलता भी है। आइए समझते हैं इस प्रचंड जीत के पीछे की 10 बड़ी बातें:
इस चुनाव की सबसे निर्णायक ताकत महिलाएं रहीं। 71% से ज्यादा महिला वोटर्स ने मतदान किया, पुरुषों से लगभग 9% ज्यादा। नीतीश कुमार की रोजगार प्रोत्साहन, साइकिल-स्कॉलरशिप जैसी योजनाओं का सीधा फायदा NDA को मिला।
केंद्र में मोदी सरकार और राज्य में नीतीश कुमार, यह "डबल इंजन विकास" का संदेश ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी वोटरों तक गहराई से उतरा। महंगाई या बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर लोगों की नाराजगी उतनी नहीं दिखी, जितना विकास का भरोसा भारी पड़ा।
राजद-कांग्रेस की जोड़ी इस बार जमीन पर ढंग से नहीं उतर पाई। सीट शेयरिंग में देरी, उम्मीदवारों की सूची को लेकर अंदरूनी टकराव और तेजस्वी यादव पर बढ़ती भरोसे की कमी ने महागठबंधन की पकड़ कमजोर की।
एक लंबा राजनीतिक करियर, प्रशासनिक अनुभव और महिलाओं के बीच बनी मजबूत पकड़। विकास पुरुष और सुशासन बाबू की छवि ने नीतीश को फिर से खेल में 'किंगमेकर' नहीं, बल्कि 'किंग' बना दिया।
नरेंद्र मोदी के EBC-MBC कार्ड ने इस बार कमाल किया। EBC समुदाय का भारी झुकाव NDA की तरफ रहा और यह पूरे चुनाव को निर्णायक दिशा देने वाला मोड़ साबित हुआ।
भाजपा ने इस बार शॉर्ट वीडियो, AI-पोस्टर्स, माइक्रो-टार्गेटिंग और लोकल भाषा में बड़े पैमाने पर डिजिटल मोर्चा खोला। राजद का डिजिटल कैंपेन कमजोर रहा और युवाओं में भाजपा ने बढ़त बना ली।
चिराग पासवान युवा वोट और दलित वोट दोनों में आकर्षण रखते हैं। उनका प्रचार NDA को लाभ देता दिखा, खासकर सीटें जीतने की गति बढ़ाने में। 2024 लोकसभा चुनाव में उनका 100 प्रतिशत स्ट्राइक रेट रहा था और अब विधानसभा चुनाव में भी उनका परफ़ोर्मेंस अच्छा दिख रहा है।
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का पूरी तरह साफ होना भी एक बड़ा फैक्टर रहा। तीसरा मोर्चा नहीं चल पाया, और एंटी-इंकंबेंसी वोट बंटने के बजाय NDA के पक्ष में हो गया।
NDA ने पूरी ताकत से 2005 के पहले वाले जंगल राज का मुद्दा उठाया। यह नैरेटिव ग्रामीण और पहली बार वोट करने वाले युवाओं में अच्छी तरह सेट हुआ। महागठबंधन इसको काटने में नाकाम रहा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों, भाषणों और सोशल मीडिया की पहुंच ने चुनाव को एकतरफा कर दिया। मोदी का चेहरा, नीतीश की सरकार, और भाजपा की चुनाव मशीनरी—इस त्रिकोण ने मिलकर 200+ वाले आंकड़े की आधारशिला रखी।
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