
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा भले अभी न हुई हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चुनावी सरगर्मी बढ़ चुकी है। महागठबंधन और एनडीए दोनों ही गठबंधन सीटों के बंटवारे और उम्मीदवारों के चयन को लेकर रणनीति बनाने में जुटे हैं। चुनावी तैयारियों के तहत दोनों पक्ष अपने-अपने संभावित प्रत्याशियों की गहन जाँच-पड़ताल कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में कई मौजूदा विधायकों के टिकट कटने की संभावना जताई जा रही है।
बीजेपी के सूत्रों के अनुसार इस बार पार्टी करीब 15 मौजूदा विधायकों का टिकट काट सकती है। पार्टी के भीतर चल रही समीक्षा में उम्र, निष्क्रियता, कम वोटों से जीत और दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को जगह देने जैसी वजहें प्रमुख रूप से सामने आई हैं। जानकारी के अनुसार, भाजपा के 6 विधायक 70 वर्ष से अधिक आयु के हैं, जिनके स्थान पर युवा चेहरों को मौका देने की तैयारी की जा रही है। वहीं, 2020 के चुनाव में 6 सीटों पर जीत का अंतर 3 हजार से भी कम था, जबकि 8 सीटों पर यह अंतर 2 हजार से भी नीचे रहा। इसके अलावा 13 सीटों पर भाजपा उम्मीदवार 11 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए थे, जिससे पार्टी नेतृत्व को इन सीटों पर बदलाव की आवश्यकता महसूस हो रही है।
चुनावी साल में केंद्रीय नेतृत्व का बिहार दौरा लगातार जारी है। शनिवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पटना पहुँचे, जहाँ उन्होंने कोर कमिटी की बैठक की और नेताओं को चुनावी जिम्मेदारियाँ सौंपीं। इसी कड़ी में 15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार दौरे पर आ रहे हैं। इस दौरान वे राज्य को बड़ी परियोजनाओं की सौगात देंगे। साथ ही, 18 और 27 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार में क्षेत्रीय बैठकों की अध्यक्षता करेंगे, जहाँ प्रत्याशियों का चयन अंतिम रूप से तय होगा। 18 सितंबर को पटना, मगध और शाहाबाद जोन की बैठक होगी, जबकि 27 सितंबर को कोसी, सीमांचल, सारण, चंपारण और मिथिलांचल जोन की बैठक आयोजित की जाएगी।
चुनावी रणनीति को लेकर केंद्रीय नेतृत्व ने बिहार को पाँच जोन में बाँट दिया है। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से 5 से 7 संभावित नाम चुने जाएंगे, जिनमें से 3 नाम दिल्ली भेजे जाएंगे। अंतिम प्रत्याशी की घोषणा नामांकन की प्रक्रिया शुरू होने से 5 से 9 दिन पहले की जाएगी। प्रदेश भाजपा कार्यालय में अब तक करीब 1300 नेताओं ने अपने बायोडाटा जमा कर दिए हैं, जिससे यह साफ है कि चुनाव में नई रणनीति और नेतृत्व बदलाव की तैयारी तेज हो चुकी है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह बदलाव पार्टी के भविष्य की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें युवाओं को नेतृत्व में आगे लाना और निष्क्रिय नेताओं को हटाना मुख्य उद्देश्य है। वहीं, दूसरी ओर गठबंधन की मजबूती बनाए रखने के लिए केंद्रीय नेतृत्व क्षेत्रीय समीकरणों पर भी विशेष ध्यान दे रहा है। आगामी महीनों में बिहार की राजनीति में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। चुनावी समीकरणों को लेकर चल रही इन गतिविधियों पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हुई हैं।
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