
Bihar Chunav 2025: वैसे तो अभी तक महागठबंधन में सबकुछ ठीक चल रहा है, लेकिन पड़ोसी राज्य झारखंड से आ रही खबर परेशानी खड़ी कर सकती है। झारखंड की सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) बिहार में चुनाव लड़ना चाहती है, लेकिन आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव इसे महत्व नहीं दे रहे हैं। ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा हैरान है। जेएमएम का कहना है कि उसने झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आरजेडी दोनों का सम्मान किया और अब बिहार विधानसभा चुनाव में उसकी अनदेखी की जा रही है। आरजेडी का राष्ट्रीय अधिवेशन 5 जुलाई को है और उसके बाद घटक दलों के बीच सीट बंटवारे पर बातचीत शुरू होगी।
जेएमएम प्रवक्ता मनोज पांडेय कहते हैं कि हम किसी पर निर्भर नहीं हैं। अगर हमें योग्य नहीं समझा गया तो हम अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे। पांडेय ने कहा कि हमारे पास संगठन भी है और लोकप्रिय नेता भी। बिहार में हमारा जनाधार भी है।
झामुमो प्रवक्ता की टिप्पणी पर राजद ने भी प्रतिक्रिया दी। झारखंड राजद महासचिव कैलाश यादव ने कहा, "पेट दर्द हो तो डॉक्टर से सलाह लें। झामुमो को अहंकार नहीं दिखाना चाहिए। हमारी लोकप्रियता किसी से कम नहीं है।"
राजद और झामुमो से उलट कांग्रेस वेट एंड वॉच की स्थिति में है। झारखंड कांग्रेस अध्यक्ष केशव महतो कमलेश ने कहा कि जैसे झारखंड में हमने मिलकर फैसला लिया, वैसे ही बिहार में भी सभी दल आपसी सहमति से मिलकर फैसला लेंगे।
तीनों दलों के नेताओं के बयानों के बीच अंदरखाने से आ रही खबरों के अनुसार, सीट बंटवारे के लिए लोकसभा चुनाव के फॉर्मूले को आधार बनाया जा सकता है। इस फॉर्मूले के अनुसार, राजद को अधिकतम 138 सीटें, कांग्रेस को 54, वाम दलों को 30 और विकासशील इंसान पार्टी को 18 सीटें दी जा सकती हैं। इससे साफ है कि बिहार के महागठबंधन में झामुमो के लिए कोई जगह नहीं है। अगर पशुपति कुमार पारस की पार्टी रालोसपा महागठबंधन का हिस्सा बनती है तो उसे भी 3 सीटें दी जा सकती हैं। खबर यह भी है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जिन सीटों पर दावा किया था, उन्हें महागठबंधन के सहयोगियों को सौंपा जा सकता है।
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में झामुमो ने 5 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे कुल 25,213 वोट मिले थे। इनमें से 4 सीटों पर राजद और एक सीट पर कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे।
वहीं अगर 2015 की बात करें तो उस समय झामुमो महागठबंधन का हिस्सा था और 32 सीटों पर मैदान में था। तब उसे 1,03,940 वोट मिले थे।
2010 में झामुमो ने 41 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और उसे कुल 1,76,400 वोट मिले थे। 2005 की बात करें तो उसने 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 76,671 वोट मिले थे। वर्ष 2000 में जेएमएम ने सबसे ज्यादा 85 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 13,06,152 वोट मिले थे।
लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो 4 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बाद भी उसे सिर्फ 30,853 वोट ही मिल पाए। लोकसभा चुनाव 2024 में इंडिया ब्लॉक का हिस्सा होने के कारण जेएमएम ने बिहार में उम्मीदवार नहीं उतारे।
लोकसभा चुनाव 2014 में 8 उम्मीदवार उतारने के बाद भी उसे सिर्फ 1,89,265 वोट मिले और 2004 में 4 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी उसे सिर्फ 1,08,841 वोट ही मिल पाए।
अब मान लीजिए, अगर बिहार में सीटों के बंटवारे में महागठबंधन जेएमएम को नजरअंदाज कर देता है और उसे गठबंधन का हिस्सा नहीं बनाता है तो नुकसान किसको होगा? ऐसे में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जाहिर है कि जेएमएम महागठबंधन या इंडिया ब्लॉक का सहयोगी है और अगर वह अपने उम्मीदवार उतारता है तो इससे महागठबंधन के उम्मीदवारों को ही नुकसान होगा। जेएमएम सूत्रों का दावा है कि पार्टी ने बिहार की 12 विधानसभा सीटों पर अपनी तैयारी शुरू कर दी है। बूथ मैनेजमेंट के साथ ही उम्मीदवारों की स्क्रूटनी भी की जा रही है।
जानकारों का कहना है कि अगर बिहार में जेएमएम को महत्व नहीं दिया गया और वह नाराज हो गया तो झारखंड की राजनीति भी इससे अछूती नहीं रहेगी। झारखंड सरकार में सहयोगी आरजेडी की भूमिका पर भी सवाल उठेंगे। फिलहाल झारखंड विधानसभा में जेएमएम के 34, कांग्रेस के 16 और आरजेडी के 4 विधायक हैं। वहां बहुमत के लिए 41 विधायकों की जरूरत है। अगर दोनों पार्टियों के बीच तनाव हुआ तो इसका असर झारखंड सरकार पर भी पड़ सकता है।
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