Bihar Election: 1300 किलोमीटर की ‘वोटर अधिकार यात्रा’, क्या बिहार में फिर से चमकेगा कांग्रेस का सितारा?

Published : Sep 01, 2025, 12:28 PM IST
Voter Adhikar Yatra

सार

क्या ‘वोट चोरी’ के आरोप और 'वोटर अधिकार यात्रा' से कांग्रेस को बिहार में दोबारा राजनीतिक जीवनदान मिल सकता है? विधानसभा चुनाव 2025 से पहले जानिए कहां से शुरू हुई यात्रा, इसका असर और संभावित राजनीतिक समीकरण।

Bihar Election Latest Update: बिहार की राजनीति में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने एक नई उम्मीद और ऊर्जा का संचार किया है। 17 अगस्त को सासाराम से आरंभ हुई यह 1300 किलोमीटर लंबी यात्रा 23 जिलों से होकर गुजरते हुए पटना में भव्य समापन पर पहुंची। इस यात्रा ने कांग्रेस को राज्य में फिर से दमदार वापसी के लिए एक मौका दिया है, लेकिन इसके साथ कई बड़े सवाल भी खड़े हो गए हैं।

यात्रा की शुरुआत से लेकर पटना तक

राहुल गांधी ने इस यात्रा की शुरुआत इसी उम्मीद के साथ की कि वे बिहार के मतदाताओं से सीधे जुड़ेंगे और ‘वोट चोरी’ के मुद्दे को जनता के सामने मजबूती से रखेंगे। 1300 किलोमीटर की यह राजनीतिक महायात्रा सीमांचल, मिथिलांचल, भोजपुर जैसे BJP-JDU के मजबूत गढ़ों से होकर निकली, जहां राहुल गांधी ने कई बार गमछा लहराकर और जनता से सीधी बातचीत करके लोगों को रिझाने का प्रयास किया। महिलाओं, युवा वर्ग और दलित-पिछड़े समुदाय के साथ उनके जुडने का तरीका और बातचीत का अंदाज खास रहा।

‘वोट चोरी’ का मुद्दा

कांग्रेस का दावा रहा कि करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए गए, जिनमें अधिकांश दलित, पिछड़े और गरीब वर्ग के लोग हैं। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव सहित महागठबंधन के नेताओं ने इसे सरकार और चुनाव आयोग की मिलीभगत बताया। इस दौरान महागठबंधन के नेता चुनाव आयोग और सरकार पर लगातार हमलावर रहे और ‘वोट चोरी’ का यह मुद्दा कांग्रेस की नई रणनीति का केंद्र बन गया।

गठबंधन की ताकत

वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी के साथ महागठबंधन के बड़े नेता जैसे तेजस्वी यादव, हेमंत सोरेन, अखिलेश यादव, मुकेश सहनी, स्टालिन और दीपांकर भट्टाचार्य ने सहभागिता दर्शाई। इसने विरोधियों को स्पष्ट संदेश दिया कि बिहार में विपक्ष सशक्त और एकजुट है। महागठबंधन की यह ताकत बिहार चुनाव 2025 को नया रंग दे सकती है।

कांग्रेस के लिए चुनौती

वर्तमान हालातों पर नजर डालें तो कांग्रेस ने पिछली कई विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अपना प्रभाव खो दिया है। 1951 में 239 से 2010 में सिर्फ 4 सीटों पर सीमित कांग्रेस पार्टी की वापसी इस यात्रा के दौर में नई उम्मीद जगाती है। लेकिन क्या राहुल गांधी की यह यात्रा कांग्रेस को राजनीतिक जीवनदान दे सकेगी? या फिर यह महागठबंधन के भीतर अपनी सीटों की दावेदारी को मजबूत करने का मात्र एक हथियार साबित होगी? चुनाव परिणामों में इसका असर कितना होगा, यह चुनावी विश्लेषकों की अहम चर्चा का विषय है।

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