बिहार का चुनावी महासंग्राम: 35 साल के तेजस्वी या 74 साल के नीतीश, जनता किस पर करेगी भरोसा?

Published : Oct 29, 2025, 10:36 AM IST
cm Nitish kumar vs Tejashwi yadav

सार

बिहार चुनाव 2025 दो पीढ़ियों की जंग है। 74 वर्षीय अनुभवी नीतीश कुमार बनाम 35 वर्षीय तेजस्वी यादव। यह मुकाबला नीतीश के अनुभव और तेजस्वी की राजनीतिक विरासत के बीच है। अंततः, जनता का विश्वास ही तय करेगा कि बिहार का अगला नेता कौन होगा।

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुकाबला सिर्फ दो गठबंधनों के बीच नहीं है, बल्कि दो पीढ़ियों और दो विपरीत राजनीतिक विचारधाराओं के बीच है। एक तरफ नीतीश कुमार हैं, जो 74 वर्ष की उम्र के साथ केंद्र में मंत्री से लेकर बिहार में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का अपार अनुभव रखते हैं। दूसरी तरफ तेजस्वी यादव हैं, जो 35 वर्ष की युवा ऊर्जा के साथ अपने पिता लालू यादव की विशाल राजनीतिक विरासत के वारिस हैं। यह सियासी जंग इस बात का प्रमाण है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए उम्र या औपचारिक शिक्षा नहीं, बल्कि जनता का अटूट विश्वास मायने रखता है। यही विश्वास दोनों नेताओं के लिए सबसे बड़ी कसौटी है।

अनुभव बनाम युवा जोश: एक तरफ संघर्ष, दूसरी तरफ विरासत

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की पृष्ठभूमि एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है। नीतीश कुमार ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और उनकी राजनीति अपने संघर्षों और जेपी आंदोलन से निकली है। उनके पास केंद्र में मंत्री और बिहार में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का विशाल सरकारी अनुभव है। इसके विपरीत, तेजस्वी यादव दसवीं तक भी नहीं पढ़ पाए और उन्होंने क्रिकेट में हाथ आजमाया। उन्हें लालू यादव से बनी-बनाई आरजेडी पार्टी संरचना विरासत में मिली है, और उनके अनुभव का आधार विपक्ष के नेता और उप-मुख्यमंत्री पद तक सीमित है। नीतीश की राजनीति जहाँ समय के साथ खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के संघर्ष पर टिकी है, वहीं तेजस्वी को जनता के बीच यह साबित करना है कि वह सिर्फ 'उत्तराधिकारी' नहीं, बल्कि 'योग्य प्रशासक' हैं।

तेजस्वी की सबसे बड़ी चुनौती: विरासत का दोधारी तलवार

तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी ताकत निस्संदेह उन्हें लालू यादव से मिली राजनीतिक विरासत है, जिसके कारण उन्हें एक समर्पित कोर वोट बैंक (MY: मुस्लिम-यादव) और तत्काल पहचान मिली है। लेकिन यही विरासत उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है। जनता के बीच उन्हें यह साबित करना है कि उनकी राजनीति लालू-राबड़ी के दौर की 'एम-वाई' और 'जंगलराज' की राजनीति से अलग हटकर विकास की राजनीति है। उन्हें न केवल विपक्ष के अनुभवी नेता नीतीश कुमार का मुकाबला करना है, बल्कि अपनी ही पार्टी की पुरानी छवि को भी तोड़ना है।

ए टू जेड तक ले जाने का संघर्ष

तेजस्वी यादव ने अपनी पार्टी को 'एम-वाई' से आगे बढ़कर 'ए टू जेड' की पार्टी बनाने का दावा किया है। जनता का विश्वास जीतने के लिए उन्हें इस दावे को जमीन पर उतारना होगा। सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी और यादवों के बीच पप्पू यादव की बढ़ती पैठ ने RJD के कोर वोट बैंक में चिंता पैदा की है। तेजस्वी को मुस्लिम-यादव समुदाय का विश्वास दोबारा से पूरी तरह हासिल करने के लिए 'नया निवेश' करना होगा। इसके साथ ही, उन्हें हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने के लिए ओबीसी जातियों और खासकर उन दलित वोटों को वापस लाना होगा, जो कभी RJD के साथ थे लेकिन अब छिटक चुके हैं। यदि वह सामाजिक आधार का विस्तार नहीं कर पाते, तो मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना पूरा होना कठिन है। इसके अलावा, महागठबंधन की मजबूती के लिए जरूरी है कि कांग्रेस (जिसका पिछले चुनाव में विनिंग स्ट्राइक रेट सिर्फ 27% था) इस बार RJD जैसा दमदार प्रदर्शन करे, ताकि 2020 की तरह सरकार बनने से पहले गठबंधन की नाव न डगमगाए।

जनादेश और जनता का विश्वास

नीतीश कुमार ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और तेजस्वी यादव दसवीं तक नहीं पढ़ पाए। नीतीश के पास केंद्र से लेकर राज्य तक का अनुभव है, जबकि तेजस्वी युवा जोश के साथ उप-मुख्यमंत्री पद का अनुभव लेकर मैदान में हैं। अंततः, बिहार की यह चुनावी जंग उम्र, शिक्षा या अनुभव की नहीं, बल्कि जनता के विश्वास की कसौटी है। जो नेता मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने में सफल होगा कि वह बिहार के भविष्य के लिए अधिक सक्षम, सुरक्षित और विकासोन्मुखी विकल्प है, वही इस बार 'बिहार का बाजीगर' कहलाएगा।

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