
Mahagathbandhan CM Face: बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा? इसको लेकर कांग्रेस ने तस्वीर साफ कर दी है। कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने शुक्रवार (27 जून) को कहा कि 'महागठबंधन' की ओर से तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री पद के लिए मुख्य चेहरा होने को लेकर कोई भ्रम और विवाद नहीं है।
उन्होंने कहा, अगर विपक्षी गठबंधन विधानसभा चुनाव जीतता है तो सबसे बड़े घटक दल के तौर पर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का नेता स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री होगा। कन्हैया कुमार ने कहा कि चुनाव में मुद्दे महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन एक 'साजिश' के तहत उनसे ध्यान भटकाने के लिए बार-बार चेहरे की बात की जा रही है।
कन्हैया कुमार ने समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा, मुझे लगता है कि पिछली बार भी बदलाव का माहौल था। महागठबंधन की सरकार मामूली अंतर से नहीं बन पाई। बिहार में पिछले पांच सालों के हालात बताते हैं कि बदलाव की हवा पहले से ज्यादा तेज है। बिहार विधानसभा चुनाव इस साल अक्टूबर-नवंबर में होने की संभावना है। बिहार में 'भारत' (भारतीय राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन) गठबंधन के घटक दलों के गठबंधन को 'महागठबंधन' के नाम से जाना जाता है। इस गठबंधन में वामपंथी दलों के साथ-साथ राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) भी शामिल हैं। इसका मुकाबला एनडीए से है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में भाजपा, नीतीश कुमार की जेडीयू, जीतन राम मांझी की हम, चिराग पासवान की लोजपा (आर) और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम शामिल हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 52 प्रतिशत की सफलता दर के साथ 75 सीटें जीती थीं। कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे सिर्फ़ 27 प्रतिशत सीटों पर ही सफलता मिली और उसे सिर्फ़ 19 सीटों पर जीत मिली। सीपीआई (एमएल) लिबरेशन ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 पर जीत हासिल की, यानी उसे 63 प्रतिशत सीटों पर सफलता मिली।
कन्हैया कुमार ने दावा किया कि बीजेपी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद से हटाकर इस पद पर अपना चेहरा लाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा, ऐसा नहीं है कि वे नीतीश जी के अस्वस्थ होने पर यह कोशिश कर रहे हैं। वे पहले भी कोशिश कर चुके हैं। पिछले कई दशकों से बीजेपी बिहार में भी वही करना चाहती है जो वह दूसरी जगहों पर करने में सफल रही है। यानी पहले किसी क्षेत्रीय पार्टी का समर्थन लें और फिर धीरे-धीरे उसे निगल लें। बिहार में ऐसा न कर पाने की वजह से बीजेपी को मजबूरन नीतीश का समर्थन लेना पड़ा।
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