
पटनाः बिहार की राजनीति इन दिनों चुनावी रंग में रंग चुकी है। साल के अंत में राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है और चुनाव आयोग से सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में चुनाव कार्यक्रम जारी करने की उम्मीद की जा रही है। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 22 नवंबर 2025 को समाप्त होगा, इसलिए उसके पहले ही चुनाव कराए जाएंगे। ऐसे में एनडीए और इंडिया गठबंधन ने सीट बंटवारे को लेकर अपनी रणनीतियाँ तेज कर दी हैं।
सूत्रों के अनुसार एनडीए में भाजपा और जेडीयू के बीच लगभग 102-103 सीटों पर सहमति बन गई है। यह कदम गठबंधन को मज़बूत दिखाने के साथ विपक्ष को संदेश देने का प्रयास है कि एनडीए एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरेगा। बताया जा रहा है कि जल्द ही सीटों का औपचारिक ऐलान भी कर दिया जाएगा, जिससे कार्यकर्ताओं में जोश भरा जाएगा।
एनडीए इस बार छोटे घटक दलों को साथ लेकर चलने के लिए गंभीर है। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 20 से 22 सीटें मिल सकती हैं, जिससे वह गठबंधन का तीसरा सबसे बड़ा घटक बनकर उभरेगी। वहीं, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 7 से 9 सीटें देने की योजना है। इससे यह स्पष्ट है कि एनडीए अपने सहयोगी दलों को नज़रअंदाज़ नहीं कर रहा और सभी को साथ लेकर चुनावी मैदान में उतरने की कोशिश कर रहा है।
एनडीए नेताओं का दावा है कि हाल में लिए गए फैसलों ने गठबंधन के भीतर विश्वास और सामंजस्य बढ़ाया है। जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि “सरकार के निर्णयों को सभी घटक दलों ने समर्थन दिया है, जिससे गठबंधन मजबूत हुआ है। यही कारण है कि सीट बंटवारे की प्रक्रिया बिना विवाद के आगे बढ़ रही है।” भाजपा और जेडीयू बराबरी का रिश्ता बनाए रखते हुए गठबंधन को और मज़बूत करना चाहते हैं।
एनडीए की रणनीति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बिहार दौरा बेहद अहम माना जा रहा है। शाह की मौजूदगी में सीटों का अंतिम बंटवारा तय होगा, जिससे कार्यकर्ताओं में ऊर्जा आएगी और विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक दबाव भी बनेगा। विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा एनडीए की चुनावी रणनीति को नई दिशा देने वाली होगी।
वहीं विपक्ष भी अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटा है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस और वामपंथी दल अपने-अपने वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने यात्राओं के जरिए जनता से जुड़ाव बढ़ाया है। हालांकि अभी तक उम्मीदवारों की सूची अंतिम रूप नहीं ले सकी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस और आरजेडी के बीच समन्वय की कमी विपक्ष की सबसे बड़ी चुनौती है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम न केवल राज्य बल्कि 2029 के लोकसभा चुनाव को भी प्रभावित करेगा। एनडीए का यह संतुलित सीट वितरण उसकी ताकत को बढ़ाएगा और कार्यकर्ताओं में जोश भरकर चुनावी अभियान को नई ऊर्जा देगा। आचार संहिता लागू होने से पहले एनडीए अपने सीट बंटवारे का अंतिम फ़ॉर्मूला जनता के सामने रखेगा। छोटे दलों को हिस्सेदारी देकर यह गठबंधन व्यापक समर्थन जुटाना चाहता है। अमित शाह की मुहर के साथ यह रणनीति ज़मीन पर भी मजबूती से उतरने को तैयार है। वहीं इंडिया गठबंधन भी अपने वोट बैंक को साधने में जुटा है।
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