बिहार के अनोखे OBC मुख्यमंत्री की कहानी, CM बनने के बाद 120 घंटे में ही देना पड़ा था इस्तीफा

Published : Sep 14, 2025, 01:30 PM IST
satish prasad singh

सार

सतीश प्रसाद सिंह बिहार के पहले ओबीसी मुख्यमंत्री थे, जिनका कार्यकाल केवल 5 दिन का रहा। उनका योगदान सामाजिक न्याय की राजनीति की शुरुआत में ऐतिहासिक साबित हुआ। जानिए कैसे उन्होंने पिछड़े वर्ग को राजनीतिक हिस्सेदारी दिलाई।

पटनाः बिहार की राजनीति में पिछड़ा वर्ग आज जितना प्रभावशाली है, उसकी जड़ें उन संघर्षों में हैं जिन्हें याद करना जरूरी है। ऐसा ही एक नाम है सतीश प्रसाद सिंह, जो बिहार के पहले पिछड़ा वर्ग (OBC) मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन उनका कार्यकाल केवल 5 दिन, यानी लगभग 120 घंटे का रहा। 28 जनवरी 1968 को मुख्यमंत्री बने सतीश बाबू ने 1 फरवरी 1968 को ही कुर्सी छोड़ दी, लेकिन इतिहास में उनका नाम अमिट हो गया।

कौन थे सतीश प्रसाद सिंह?

1 जनवरी 1936 को बिहार के खगड़िया जिले के कुरचक्का गांव में जन्मे सतीश प्रसाद सिंह कोइरी समाज से थे। राजनीति में उनकी यात्रा कई दलों से होकर गुज़री, शुरुआत स्वतंत्र पार्टी, फिर सोशलिस्ट पार्टी, और अंततः कांग्रेस से। 1967 में उन्होंने परबत्ता विधानसभा से जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बनने का अवसर पाया। अपने संघर्षशील व्यक्तित्व और सामाजिक मुद्दों से जुड़े होने के कारण उन्हें पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधि माना गया।

अस्थिर राजनीति का दौर

1967 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से दूर रह गई। परिणामस्वरूप, कांग्रेस, विपक्ष और छोटे दलों ने मिलकर अस्थिर सरकार बनाई। मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा की सरकार लंबे समय तक नहीं चल सकी। सत्ता की इस जद्दोजहद में पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग को राजनीतिक हिस्सेदारी देने का दबाव बढ़ा।

प्रतीकात्मक मुख्यमंत्री, असली उद्देश्य

कांग्रेस ने सत्ता संतुलन के लिए सतीश प्रसाद सिंह को मुख्यमंत्री बनाकर राजनीतिक संकेत दिया। लेकिन यह जिम्मेदारी केवल अस्थायी थी। उन्हें स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि वे तब तक मुख्यमंत्री बने रहें जब तक बीपी मंडल को विधान परिषद में मनोनीत न कर लिया जाए। मनोनयन पूरा होते ही उन्होंने 1 फरवरी 1968 को इस्तीफा देकर रास्ता खाली कर दिया। उसी दिन बीपी मंडल मुख्यमंत्री बने।

बदलाव की शुरुआत

सतीश बाबू का यह कार्यकाल भले ही छोटा रहा हो, लेकिन इसका संदेश बड़ा था। लगभग दो दशकों से सवर्ण नेताओं के हाथ में रही सत्ता पहली बार पिछड़े वर्ग के नेताओं तक पहुँची। यह बिहार में सामाजिक न्याय की राजनीति का आरंभ था, जिसने आगे चलकर मंडल आयोग, आरक्षण और पिछड़ों की राजनीतिक भागीदारी की नींव रखी।

निजी जीवन

सतीश प्रसाद सिंह न केवल राजनीति में सक्रिय थे, बल्कि सामाजिक मुद्दों से जुड़े भी रहे। उन्होंने अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहन दिया और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी योगदान दिया। वे फिल्म “जोगी और जवानी” से जुड़े रहे। राजनीति में उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में भी जीत दर्ज की थी। दुर्भाग्य से 2020 में कोरोना संक्रमण के दौरान दिल्ली में उनका और उनकी पत्नी ज्ञानकला का निधन हो गया।

रिकॉर्ड का अर्थ

आज बिहार की राजनीति में पिछड़ा-अति पिछड़ा और दलित वर्ग की निर्णायक भूमिका है। ऐसे समय में सतीश प्रसाद सिंह का 5 दिन का कार्यकाल महज एक प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि सत्ता संरचना में बदलाव का ऐतिहासिक क्षण है। यह दर्शाता है कि कैसे अस्थायी नेतृत्व भी सामाजिक परिवर्तन की दिशा तय कर सकता है। उनकी कुर्सी छोड़ने की क्षमता ने उन्हें सिर्फ “सबसे कम समय के मुख्यमंत्री” के रूप में नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की राजनीति का अग्रदूत बना दिया। आज जब चुनावी समीकरणों में पिछड़े वर्ग की भूमिका सबसे अहम मानी जाती है, तो सतीश प्रसाद सिंह का नाम बिहार के राजनीतिक इतिहास में एक प्रेरणा के रूप में दर्ज है।

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