
पटना, 06 नवंबर। बिहार में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व शुरू हो चुका है, लेकिन पहले चरण की वोटिंग के साथ ही सिस्टम और जनता के बीच की दूरी एक बार फिर उजागर हो गई। जहां एक ओर कुछ इलाकों में लोगों ने बढ़-चढ़कर मतदान किया, वहीं कई गांवों में सन्नाटा पसरा रहा। कहीं ‘रोड नहीं तो वोट नहीं’ के नारे गूंजे, तो कहीं मशीनों ने जवाब दे दिया। पहले चरण के चुनाव ने एक बार फिर दिखा दिया कि लोकतंत्र के उत्सव को सुचारू बनाए रखने के लिए सिर्फ प्रचार नहीं, बल्कि भरोसेमंद व्यवस्था भी जरूरी है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग गुरुवार को 18 जिलों की 121 सीटों पर हुई। सुबह से ही मतदाताओं में उत्साह देखने को मिला। बूथों पर लंबी कतारें लगीं, महिलाएं और युवा बड़ी संख्या में पहुंचे। हालांकि इस जोश के बीच कई जगहों पर मतदान बहिष्कार, EVM खराबी और प्रशासनिक लापरवाही की घटनाएं भी सामने आईं।
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प्रभात खबर की रिपोर्ट के अनुसार, पटना, दरभंगा और मुजफ्फरपुर जिलों के कई गांवों में मतदाताओं ने वोट डालने से इंकार कर दिया।
प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद ग्रामीणों ने मतदान केंद्र तक जाने से इनकार कर दिया। वहीं, मुजफ्फरपुर के गायघाट विधानसभा के तीन बूथों (161, 162, 170) पर पुल और सड़क निर्माण में देरी को लेकर मतदाताओं ने बहिष्कार किया। इन घटनाओं ने जनता की नाराजगी और व्यवस्था पर अविश्वास को उजागर किया।
कई जिलों में मतदान की शुरुआत के साथ ही EVM मशीनें ठप पड़ गईं।
तकनीकी दलों ने मशीनें ठीक कर दीं, लेकिन इस दौरान मतदाताओं को धूप में इंतजार करना पड़ा, जिससे नाराजगी बढ़ी।
फतुहा विधानसभा के हाजीपुर गांव में बूथ नंबर 254 पर पीठासीन अधिकारी राजेश की तबीयत मतदान के दौरान बिगड़ गई। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उनका ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ पाया गया।वहीं, बिहार शरीफ में BJP के चार कार्यकर्ताओं को पर्चियां बांटने के आरोप में पुलिस ने हिरासत में लिया। इस घटना के बाद RJD और BJP समर्थकों के बीच तनाव बढ़ गया।पटना साहिब सीट पर विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव और मतदान अधिकारियों के बीच नोकझोंक भी चर्चा में रही, जब उनसे वोटर कार्ड दिखाने को कहा गया।
नालंदा जिले के हिलसा विधानसभा क्षेत्र में दिव्यांग मतदाताओं को बूथ नंबर 297 और 298 पर व्हीलचेयर जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलीं। कई दिव्यांग मतदाताओं को लाइन में खड़े होकर मतदान करना पड़ा। आयोग के निर्देशों के बावजूद यह लापरवाही प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर करती है।
तकनीकी गड़बड़ियों और बहिष्कार के बावजूद अधिकांश जिलों में वोटिंग 60 प्रतिशत से अधिक रही। महिलाओं और युवाओं में उत्साह दिखा, लेकिन ग्रामीण इलाकों में विरोध की आवाजें भी तेज रहीं। पहले चरण की वोटिंग ने यह साफ कर दिया कि बिहार का मतदाता आज भी लोकतंत्र पर भरोसा रखता है, बस उसे चाहिए एक पारदर्शी और संवेदनशील प्रशासन।
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