
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब अपनी ओर रफ्तार पकड़ चुका है। चुनाव आयोग ने इस बार प्रत्याशियों के चुनावी खर्च और प्रचार पर कड़ी निगरानी रखने का एलान कर दिया है। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी (सीईओ) विनोद सिंह गुंजियाल ने सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर विस्तृत दिशा-निर्देश साझा किए। बैठक का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि चुनाव पारदर्शिता, निष्पक्षता और अनुशासन के साथ संपन्न हो।
सीईओ ने बैठक में कहा कि अब आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी अपने रिकॉर्ड के साथ जनता के सामने होंगे। उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी, दंड या सजा से जुड़ी जानकारी मीडिया और सार्वजनिक मंचों के माध्यम से जनता तक पहुंचेगी। यह कदम लोकतंत्र में पारदर्शिता और मतदाताओं के अधिकार को सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
बैठक में प्रमुख विषय चुनावी खर्च की सीमा तय करना था। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि हर उम्मीदवार अधिकतम 40 लाख रुपये तक ही चुनाव में खर्च कर सकता है। इसमें रैली, पोस्टर, बैनर, वाहन और मीडिया विज्ञापन शामिल हैं। सीईओ ने चेतावनी दी कि चुनावी प्रक्रिया में पैसा, शराब या अन्य प्रलोभन बांटना अपराध माना जाएगा और इसके लिए जेल की सजा का प्रावधान है।
राजनीतिक दलों को यह भी बताया गया कि स्टार प्रचारकों की सूची चुनाव आयोग को निर्वाचनी अधिसूचना जारी होने के सात दिन के भीतर सौंपना अनिवार्य होगी। मान्यता प्राप्त दलों के लिए 40 और अन्य दलों के लिए 20 स्टार प्रचारकों की सुविधा मिलेगी। इसके लिए परमिट मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय से जारी किया जाएगा।
राज्य एवं जिला स्तर पर मीडिया सर्टिफिकेशन एंड मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया गया है। इसका काम सभी समाचार पत्र, टीवी और सोशल मीडिया विज्ञापनों का पूर्व अनुमोदन करना होगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि चुनाव प्रचार में कोई अनुचित सामग्री या झूठी जानकारी जनता तक न पहुंचे।
सीईओ ने उम्मीदवारों के सामान्य आचरण, सभा-जुलूस, मतदान दिवस पर व्यवहार, बूथ में प्रवेश और प्रेक्षक नियुक्ति जैसी जानकारियां भी साझा की। सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया गया कि वे अपने उम्मीदवारों को इन नियमों का पालन करने के लिए प्रशिक्षित करें।
बैठक में राजद, कांग्रेस, भाजपा, जदयू, सीपीआई-एमएल और अन्य दलों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। सभी ने इस मौके पर अपने सवाल पूछे और चुनाव आयोग ने उनका संतोषजनक समाधान दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम बिहार में चुनावी पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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