
मोकामाः बिहार की सियासत में कुछ सीटें सिर्फ राजनीतिक नहीं होतीं वो इतिहास, बाहुबल और बदले की भावना की विरासत होती हैं। मोकामा ऐसी ही एक सीट है। 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले फिर वही माहौल बनने लगा है, जहाँ पोस्टर से ज्यादा पिस्टल का नाम चलता था और नेताओं के नाम से पहले “बाहुबली” जुड़ना गर्व की बात मानी जाती थी। और इस बार भी कहानी के दो पुराने किरदार वही हैं- अनंत सिंह बनाम सूरजभान सिंह।
90 के दशक के में जब बिहार की राजनीति पर ‘लालू राज’ का वर्चस्व था, तब मोकामा की पहचान थी दिलीप सिंह और अनंत सिंह। लेकिन साल 2000 में इस इलाके की तस्वीर बदल दी सूरजभान सिंह ने। निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने उस वक्त के ताकतवर मंत्री दिवंगत दिलीप सिंह को पटखनी दी थी। उस दौर में कहा जाता था कि रेलवे का कोई ठेका सूरजभान के सिग्नल के बिना पास नहीं होता था। उनकी पहुंच पटना से गोरखपुर तक बताई जाती थी। 50 से ज़्यादा मुकदमों में नाम, पर जनता में पकड़ इतनी कि अपराध के बीच भी असर बना रहा।
2004 में सूरजभान रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के टिकट पर सांसद बने। लेकिन बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें चुनावी राजनीति से बाहर होना पड़ा। फिर राजनीति की कमान उनकी पत्नी वीणा देवी और भाई चंदन सिंह के हाथ में चली गई। दोनों सांसद बने, एक वक्त में दिल्ली से लेकर मोकामा तक “सूरजभान फैक्टर” फिर से दिखा।
अब वही मोकामा फिर सुर्खियों में है। सूरजभान सिंह के करीबी संकेत दे रहे हैं कि इस बार उनकी पत्नी वीणा देवी को राजद के टिकट पर मैदान में उतारा जा सकता है और सामने होंगे बाहुबली नेता अनंत सिंह। यह वही अनंत सिंह हैं जिन्हें मोकामा के लोग छोटे सरकार के नाम से जानते हैं। जेल से लेकर जनसभा तक, उनका हर कदम खबर बनता है। हाल ही में अनंत सिंह के एक बयान ने पुराने घावों को फिर से कुरेद दिया और कहा जा रहा है कि सूरजभान कैंप अब इस चुनाव को “मुकाबला नहीं, मिशन” बना चुका है।
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