
पटनाः आज बिहार विधानसभाओं के चुनाव एक सीट-एक विधायक के सिद्धांत पर होते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि आज़ादी के शुरुआती दौर में बिहार की कई विधानसभा सीटों से एक साथ दो-दो विधायक चुने जाते थे। सुनने में अजीब लगता है, लेकिन आज़ादी के शुरुआती दशक में बिहार की राजनीति ने यही अनुभव किया था। 1957 के विधानसभा चुनाव में संयुक्त बिहार (बिहार + झारखंड) की कई सीटें ऐसी थीं, जहां मतदाताओं ने एक ही बार में दो प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा भेजे थे।
1957 में देश की राजनीति में बदलाव की लहर दिख रही थी। लोकतंत्र को मज़बूती देने और सामाजिक समूहों को बेहतर प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से तमाम नवाचार अपनाए गए। संयुक्त बिहार की कुल 264 विधानसभा सीटों में से 68 सीटें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित थी। इनमें से 54 सीटें ‘द्विसदस्यीय’ यानी दो विधायक वाली थीं—इन सीटों से एक उम्मीदवार सामान्य वर्ग और दूसरा आरक्षित वर्ग से चुनकर विधानसभा भेजा जाता था। ख़ास बात यह कि दोनों उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग मतपत्र होते थे।
राजधानी पटना की दो सुरक्षित सीटें, फतुहा और मसौढ़ी, 1957 के चुनाव में चर्चा में रहीं। फतुहा से शिव महादेव प्रसाद और केशव प्रसाद, जबकि मसौढ़ी से नवल किशोर सिंह एवं सरस्वती चौधरी ने जीत दर्ज की। यानी एक ही सीट के मतदाता दो अलग-अलग नेताओं को विधानसभा भेज रहे थे।
यह अनोखी व्यवस्था सिर्फ पटना तक सीमित नहीं थी। बगहा, बेतिया, मोतिहारी, भोरे, दरौली, छपरा, महुआ, पारू, सकरा, शिवहर, जयनगर, दरभंगा दक्षिणी, दलसिंहसराय, सिंघिया, त्रिवेणीगंज, सोनबरसा, फारबिसगंज, धमदाहा, कटिहार, पाकुर, नल्ला, देवघर, दुमका, गोड्डा, कोलगंज, कटोरिया, झाझा, जमुई, शेखपुरा, खगड़िया, बेगूसराय, फतुहा, राजगीर, मसौढ़ी, भभुआ, सासाराम, पीरो, जहानाबाद, टेकारी, नबीनगर, वारिसलीगंज, गवां, गिरिडीह, रामगढ़, तोपचांची, निरसा, घाटशिला, चक्रधरपुर, चांंडिल, रांची, मंदार, लातेहार, भवनाथपुर व लेसलीगंज. समेत कुल 54 विधानसभा क्षेत्रों में दो-दो विधायक चुनने का प्रावधान था।
1957 का चुनाव महिला सशक्तिकरण का भी प्रतीक बना। 46 महिलाएं जीतकर विधानसभा पहुंचीं और समाज के छुपे हुए वर्गों की आवाज़ बनीं। यह भी उल्लेखनीय है कि तब कांग्रेस पार्टी ने ज्यादातर द्विसदस्यीय सीटों पर कब्ज़ा जमाया।
क्या वजह रही कि यह सिस्टम आगे नहीं चला? दरअसल, समाज के हर वर्ग को प्रतिनिधित्व देने की मंशा थी, लेकिन बाद के वर्षों में नई जनगणना, परिसीमन और व्यवस्थागत सुधारों के बाद यह द्विसदस्यीय सीटों की प्रणाली खत्म कर दी गई। अब सिर्फ एक सीट, एक विधायक का प्रावधान है।
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