
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का प्रचार थम चुका है, और अब निगाहें 14 नवंबर के नतीजों पर टिकी हैं। लेकिन चुनाव प्रचार के आँकड़े एक दिलचस्प तस्वीर पेश करते हैं: यह चुनावी जंग 'क्वांटिटी' बनाम 'क्वालिटी' की रही। एक ओर युवा नेताओं ने रैलियों की संख्या का रिकॉर्ड बनाया, तो दूसरी ओर दिग्गजों ने कम, लेकिन प्रभाव वाली सभाओं पर ज़ोर दिया।
इस चुनावी महासमर में, राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता तेजस्वी यादव ने सबको पीछे छोड़ते हुए 'रैली किंग' का खिताब अपने नाम किया। उन्होंने रिकॉर्ड 181 से अधिक चुनावी सभाओं को संबोधित किया। यह सक्रियता दर्शाती है कि महागठबंधन ने स्टार पावर के बजाय, मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के व्यक्तिगत ज़मीनी संपर्क पर पूरा भरोसा किया।
तेजस्वी के सहयोगी रहे वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने भी 161 रैलियाँ कर अपनी ताकत दिखाई। इन दोनों युवा नेताओं की रैलियों की संख्या एनडीए के किसी भी शीर्ष नेता से व्यक्तिगत तौर पर कहीं अधिक है।
एनडीए खेमे में, एलजेपी (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान ने अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने लगभग 90 जनसभाएं कीं, जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा की गई 84 सभाओं से 6 अधिक हैं। यह आंकड़ा बिहार की राजनीति में चिराग के बढ़ते कद को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
NDA ने 'टारगेटेड' प्रचार की रणनीति अपनाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी स्टार पावर का इस्तेमाल करते हुए कुल 16 जनसभाएं कीं। संख्या में कम होने के बावजूद, उनकी हर रैली बड़ी भीड़ खींचने और मतदाताओं के बीच एक राष्ट्रीय संदेश देने में सफल रही।
पीएम मोदी के अलावा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 36, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने 31, और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 20 सभाएं कीं। एनडीए की यह सामूहिक रणनीति बड़े राष्ट्रीय नेताओं के प्रभाव और राज्य नेताओं की ज़मीनी पकड़ का मिश्रण थी।
बिहार के चुनाव में यह पहली बार हुआ है कि क्षेत्रीय युवा नेताओं ने रैलियों की संख्या के मामले में राष्ट्रीय दिग्गजों को इतनी बड़ी टक्कर दी हो। अब अंतिम सवाल यही है: क्या तेजस्वी यादव की 181 रैलियों की 'क्वांटिटी' (संख्या), पीएम मोदी की 16 मेगा रैलियों की 'क्वालिटी' (प्रभाव) पर भारी पड़ेगी? इस सवाल का जवाब 14 नवंबर को वोटों की गिनती के बाद ही मिल पाएगा।
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