
नई दिल्ली: पिछले महीने दिवाली से एक दिन पहले 2 साल की बच्ची से डिजिटल रेप करने वाले शख्स को कोर्ट ने 25 साल की सख्त जेल की सजा सुनाई है। कोर्ट ने कहा कि डिजिटल रेप के मामले में नरम रुख नहीं अपनाया जा सकता। 20 नवंबर के अपने आदेश में, एडिशनल सेशन जज बबीता पुनिया ने इस बात पर जोर दिया कि हमारा कानून डिजिटल रेप और असल रेप में कोई फर्क नहीं करता।
कोर्ट 19 नवंबर को पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराए गए 30 साल के शख्स के मामले की सुनवाई कर रहा था। दोषी ने 20 अक्टूबर को यह अपराध किया था और मामले की जांच और सुनवाई एक महीने के अंदर पूरी हो गई। खास बात यह है कि सुनवाई सिर्फ 9 दिनों में खत्म हो गई। बचाव पक्ष के वकील ने दलील दी थी कि दोषी ने डिजिटल रेप किया है, इसलिए नरम रुख अपनाया जाए। लेकिन जज पुनिया ने इस दलील को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, "कानून डिजिटल और असल रेप में कोई फर्क नहीं करता। रेप कानून के मुताबिक, किसी भी तरह का रेप, असल रेप ही माना जाता है।"
जज ने दोषी की माफी की अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह नशे में था और अनपढ़ था। उन्होंने कहा, "यह माना जा सकता है कि अपराध के समय दोषी किसी नशीले पदार्थ के प्रभाव में था। फिर भी, यह अपराध को कम करने वाला कारण नहीं है, क्योंकि किसी ने उसे ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं किया था। उसने अपनी मर्जी से गांजा/शराब पी थी, वह भी दिवाली से ठीक पहले।"
जज ने आगे कहा, "मुझे लगता है कि अनपढ़ होने को, खासकर बच्चों के खिलाफ अपराधों में, कोई रियायत देने वाला कारण नहीं माना जा सकता। यह न केवल कानूनी रूप से दंडनीय है, बल्कि नैतिक रूप से भी घिनौना है।"
इसके बाद कोर्ट ने उसे 25 साल की सख्त जेल की सजा सुनाई। कोर्ट ने कहा कि सजा की यह अवधि एक सही बदला है और समाज को पर्याप्त सुरक्षा देती है। साथ ही, यह दोषी को अपने किए की गंभीरता का एहसास कराएगी और उसे सुधरने का मौका देगी।
कोर्ट ने यह भी कहा, "निर्भया और कठुआ जैसे कुछ रेप मामलों ने मीडिया का ध्यान खींचा, जिससे समाज में हंगामा हुआ। इन मामलों के बाद मौजूदा कानून में कुछ बदलाव किए गए। फिर भी, अदालत को समाज की भावनाओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए सिद्धांतों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।"
जज ने गौर किया कि दोषी, पीड़ित बच्ची के पिता का दोस्त था और गांव से परिवार से मिलने आया था। उन्होंने कहा कि उसने भरोसे को तोड़ा है। "पीड़ित बच्ची अपनी दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह, यानी अपने घर में थी, लेकिन दोषी ने उस जगह को भी उसके लिए असुरक्षित बना दिया। इसके अलावा, रोशनी का त्योहार उसके और उसके परिवार के लिए जीवन भर का अंधेरा बन गया।"
जज ने कहा, "हालांकि पीड़ित बच्ची और उसके परिवार के दर्द की भरपाई पैसों से नहीं हो सकती, लेकिन मुझे लगता है कि इससे उसे कुछ आर्थिक राहत मिलेगी।" इसके बाद कोर्ट ने 13.5 लाख रुपये के मुआवजे का ऐलान किया।
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