रांची। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार आउटसोर्सिंग के माध्यम से कार्यरत हजारों कर्मियों को मानदेय और अन्य सुविधाएं देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेने जा रही है। हाईकोर्ट के आदेश और कर्मियों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एक प्रस्ताव तैयार किया है ताकि इनके हित में नीतिगत निर्णय लिया जा सके। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में मंगलवार को होने वाली कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव पर चर्चा की जाएगी।
वर्तमान में 31 हजार से ज्यादा आउटसोर्सिंग कर्मी हैं कार्यरत
वर्तमान में झारखंड सरकार के विभिन्न विभागों और प्रखंड स्तर पर 31 हजार से अधिक आउटसोर्सिंग कर्मी कार्यरत हैं। यदि इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलती है, तो यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि आउटसोर्स कर्मियों की जिम्मेदारी निर्धारित की जाए, उनका शोषण रोका जाए और उन्हें सम्मानजनक मानदेय सहित अन्य सुविधाएं प्रदान की जाएं।
हाईकोर्ट ने भी सरकार को दिया है आदेश
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने पहले आउटसोर्सिंग के माध्यम से विभागों में सेवाएं देने के संबंध में एक आदेश पारित किया था, जिसके अनुसार सरकार को नीतिगत निर्णय लेने की आवश्यकता है। इससे पहले सरकार के पास कोई स्पष्ट नीति नहीं थी, जिसके चलते कई प्रशासनिक समस्याएं उत्पन्न होती थीं।
सैलरी में असमानता को लेकर सरकार से मांगा ब्यौरा
इस साल मार्च और अप्रैल में हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकारी स्तर पर इस मुद्दे पर पहल शुरू हुई थी। मुख्यमंत्री के निर्देश पर वित्त विभाग ने हाल ही में विभिन्न विभागों और उनके अधीनस्थ कार्यालयों से आउटसोर्स कर्मियों का ब्योरा मांगा था। यह भी उल्लेखनीय है कि विभागों में संविदा पर कार्यरत कंप्यूटर ऑपरेटरों को जहां 30 हजार रुपये का मानदेय मिलता है, वहीं आउटसोर्सिंग के माध्यम से कार्यरत कर्मियों को केवल 12 से 18 हजार रुपये मिलते हैं।
जैप आईटी और एजेंसियों के माध्यम से होती है नियुक्ति
सरकार के विभिन्न विभागों में जैप आईटी के माध्यम से लिस्टेड 14 एजेंसियों द्वारा आउटसोर्स कर्मियों की नियुक्ति की जाती है। इस समय कार्यरत 31 हजार कर्मियों में कंप्यूटर ऑपरेटर, डाटा एंट्री ऑपरेटर, आदेशपाल, चालक, सफाईकर्मी, सहायक प्रोग्रामर आदि शामिल हैं।
कोर्ट के आदेश पर हो रही है नियमितीकरण की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 10 साल से अधिक सेवा देने वाले आउटसोर्स कर्मियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई है। अगर संबंधित विभाग कर्मी की लंबे समय से सेवा का प्रमाण देगा, तो राज्य सरकार इस पर विचार कर सकती है। एक मजबूत नीति से इन कर्मियों को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा मिल सकेगी और उनका शोषण रोका जा सकेगा।
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