
नई दिल्ली। भोपाल गैस त्रासदी, 3 दिसंबर 1984-एक ऐसा दिन जिसे दुनिया आज भी भूल नहीं पाई है। उस रात यूनियन कार्बाइड के पेस्टिसाइड प्लांट से 40 टन से ज़्यादा मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) नाम की जहरीली गैस लीक हुई और देखते ही देखते पूरा भोपाल मौत के बादलों से घिर गया। कुछ ही घंटों में हजारों लोग दम तोड़ गए, सड़कें लाशों से भर गईं और शहर सदमे में डूब गया। यह घटना सिर्फ एक इंडस्ट्रियल दुर्घटना नहीं थी, बल्कि कॉर्पोरेट लापरवाही, सुरक्षा की कमी और मानव जीवन की अनदेखी का सबसे बड़ा उदाहरण बन गई। यह त्रासदी दुनिया के सामने कई सवाल छोड़ गई कि क्या यह सुरक्षा में चूक थी, सिस्टम की नाकामी या फिर एक छिपाया गया सच?
हां। टैंक E610 में 42 टन MIC था, जो 30 टन की सेफ लिमिट से ज़्यादा था, जिससे मेंटेनेंस के दौरान पानी घुसने पर एक्सोथर्मिक रिएक्शन और बिगड़ गया। मेंटेनेंस के दौरान पानी घुसने से एक्सोथर्मिक रिएक्शन हुआ और गैस लीक हो गई।
सर्वे बताते हैं कि गैस फ्लेयर सिस्टम तीन महीने से ऑफलाइन था। एक सेफ्टी वाल्व पहले ही फेल हो चुका था। यानी जब गैस दबाव के साथ बाहर निकली तो उसे रोकने वाला कोई सिस्टम मौजूद ही नहीं था। यही वजह है कि ज़हरीली गैस सीधे भोपाल की आबादी में फैल गई।
यूनियन कार्बाइड पर यह आरोप भी लगा कि उन्होंने गैस की विषाक्तता की जानकारी छुपाई। शुरू में उन्होंने साइनाइड पॉइज़निंग ट्रीटमेंट की सलाह दी, फिर उसे वापस ले लिया। कई विशेषज्ञों के अनुसार लीक में हाइड्रोजन साइनाइड भी मौजूद था, जिससे विवाद और बढ़ गया।
गैस लीक के तुरंत बाद कम से कम 3,800 लोग मारे गए। सड़कें लाशों से भरी हुई थीं और स्थानीय अस्पताल पूरी तरह तैयार नहीं थे। लंबे समय तक, बचे हुए लोग कैंसर, अंधापन, सांस की तकलीफ़, और रोज़गार में नुकसान झेलते रहे। गैस के संपर्क में आने से नवजात शिशुओं में जन्म दोष बढ़े। मृत्यु दर 200% तक बढ़ गई, स्टिलबर्थ में 10% की वृद्धि हुई और हज़ारों बच्चे बीमारियों के साथ पैदा हुए।
1989 में भारत सरकार ने 6 लाख पीड़ितों के लिए $470 मिलियन मुआवज़ा प्राप्त किया। हर पीड़ित को औसतन 15,000 रुपये मिले। लेकिन यह रकम गंभीरता से कम थी। यूनियन कार्बाइड के CEO वॉरेन एंडरसन के खिलाफ वारंट जारी हुआ, लेकिन अमेरिका ने एक्सट्रैडिशन से मना कर दिया। 2014 में उनकी मौत हो गई, बिना कोई इंसाफ़ हुए।
भोपाल त्रासदी केवल मानव जीवन तक सीमित नहीं रही। हज़ारों भैंस, गाय, कुत्ते और पक्षी मरे। पेड़ बंजर हो गए और मछली पकड़ने पर रोक लग गई। गंदगी और ज़हरीली मिट्टी के कारण स्थानीय पानी पीने और खाना पकाने लायक नहीं रहा। त्रासदी के 40 साल बाद भी, प्रभावित क्षेत्र में ज़हरीली मिट्टी और पानी मौजूद है। आस-पड़ोस के कॉलोनियों का ग्राउंडवाटर पीने और खाना बनाने के लिए दूषित हो चुका है। डॉव केमिकल्स ने प्लांट खरीदने के बाद सफाई करने से मना कर दिया।
भोपाल गैस त्रासदी ने पूरे भारत और दुनिया को यह सिखाया कि इंडस्ट्रियल सुरक्षा और कॉर्पोरेट जिम्मेदारी को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
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