महाराष्ट्र के जालना जिले से एकमात्र डॉक्टर शेख यूनुस लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के कार्डियोलॉजी विभाग में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर हैं। शेख यूनुस के पिता ने कपास की खेती कर उन्हें पढ़ाया। शेख अब देशभर में अपने पिता का नाम रोशन कर रहे हैं।
जालना/मुंबई। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के कार्डियोलॉजी विभाग में सीनियर रेजिडेंट डॉ. शेख यूनुस महाराष्ट्र के जालना जिले के पहले मुस्लिम डॉक्टर हैं। उन्होंने 2015 में एमबीबीएस की डिग्री पूरी की। 34 साल के शेख यूनुस ने दसवीं तक की पढ़ाई गांव के एक स्कूल से पूरी की। बाद में उनके पिता ने मेडिकल की पढ़ाई के लिए उधार पैसे लिए। बता दें कि डॉ. यूनुस शेख अपने पिता खुदबुद्दीन और बड़े भाई असलम के साथ जालना जिले के दधेगांव में अपनी 4 एकड़ जमीन में कपास की खेती करते हुए बड़े हुए हैं।
रिश्तेदार चाहते थे कि मैं मदरसे में पढूं :
अपने स्कूल दिनों को याद करते हुए शेख यूनुस कहते हैं कि उनके रिश्तेदारों चाहते थे कि उन्हें भी दूसरे बच्चों की तरह ही मदरसे में पढ़ने भेज दिया जाए। लेकिन शेख की इच्छा एक रेगुलर स्कूल से पढ़ने की थी और उनके पिता ने उनकी इस इच्छा का सम्मान किया। शेख यूनुस जब 10वीं क्लास में थे, तभी से वो साइंस में इंटरेस्ट लेते थे। बाद में उन्होंने इसमें ही करियर बनाने का रास्ता चुना।
स्कूल के सीनियर्स और टीचर ने बढ़ाया हौसला :
शेख यूनुस के मुताबिक, 800 लोगों की आबादी वाले उनके पिछड़े गांव में मुश्किल से ही कोई उच्च पद तक पहुंचा था। शुक्र है कि स्कूल में मेरे कुछ सीनियर्स और टीचर्स करियर-माइंडेड बन गए थे। उन्होंने मुझे अपनी महत्वाकांक्षा पर फोकस करने के लिए प्रेरित किया। सभी तरह की दिक्कतों को पार करते हुए मैंने मेडिकल कॉलेज प्रवेश परीक्षा को क्रैक किया।
मेरी पढ़ाई के लिए पिताजी ने लिया कर्ज :
डॉ. यूनुस कहते हैं- मेरे पिता, जिनका अगस्त 2022 में 62 साल की उम्र में निधन हो गया, वे एक कपास किसान थे। महाराष्ट्र में कपास के किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों की वजह से वो भुखमरी की कगार पर थे। हम चार भाई-बहन हैं - दो भाई और दो बहनें। 2008 में मेरे पिता की सालाना इनकम महज 30,000 रुपए थी। ऐसे में मेडिकल कॉलेज की प्रवेश परीक्षा के लिए औरंगाबाद में कोचिंग के लिए 12 हजार रुपए सालाना फीस के अलावा एक साल के लिए रहने-खाने का खर्च देना उनके लिए काफी मुश्किल था। कुल मिलाकर मेरी कोचिंग पर सालाना 50 हजार रुपए का खर्च आता था। इसके लिए मेरे पिता ने 30,000 रुपए का कर्ज भी लिया था।
मेरे पिता ने कभी कोई कमी नहीं होने दी :
हालांकि, यूनुस शेख को सरकारी मेडिकल कॉलेज, नागपुर में अपने 6 साल के एमबीबीएस सिलेबस के लिए 25,000 रुपए सालाना अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति मिलने लगी। लेकिन बावजूद इसके उन्हें अपने दूसरे खर्चों को पूरा करने के लिए हर महीने 3000 रुपए के लिए अपने पिता पर निर्भर रहना पड़ता था। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए शेख यूनुस कहते हैं- मेरे पिता के पास बहुत ही सीमित साधन थे। मेरी बहनों की शादी के लिए पैसे बचाना और मेरी फीस के लिए 2000 रुपए अलग रखना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती थी लेकिन उन्होंने मुझे कभी कोई कमी नहीं होने दी।
नहीं बचते थे गांव जाने के लिए किराये के पैसे :
एमबीबीएस की सालाना फीस 18,000 रुपए थी। इसके अलावा हॉस्टल की सालाना फीस 4000 रुपए थी। बाकी पैसा किताबें खरीदने में खर्च हो जाता था। सारे खर्चों के बाद भी मुझे पिता से हर महीने 2000 रुपए के लिए निर्भर रहना पड़ता था। मुझे अपने घर की याद आती थी, लेकिन किराए के पैसे न होने की वजह से मैं 6 महीने में एक बार अपने परिवार से मिलने के लिए ट्रेन से 16 घंटे की लंबी यात्रा करके पहुंचता था।
2020 में मैंने MD कम्प्लीट किया :
शेख यूनुस की पहली कमाई नागपुर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस फाइनल ईयर करने के बाद हुई। साल भर की इंटर्नशिप के दौरान सरकार हमें 6000 रुपए प्रति माह दे रही थी। इसके बाद मैं मेडिसिन में एमडी के लिए नीट परीक्षा में शामिल हुआ। मुझे देश में 104वीं रैंक मिली। महाराष्ट्र में मेडिसिन में एमडी के लिए सिर्फ 26 सीटें थीं। मुझे पुणे के पास मिराज में सरकारी मेडिकल कॉलेज में तीन साल तक एमडी करने का मौका मिला। मैंने 2020 में एमडी कम्प्लीट किया।
कपास की खेती करते हैं भाई :
डॉ. यूनुस अपने परिवार में एकमात्र डॉक्टर हैं। वे कहते हैं कि मेरे पिता ने भले ही दसवीं तक पढ़ाई की लेकिन मेरे लिए वे चट्टान की तरह खड़े रहे। मेरे सपनों को पूरा करने के लिए वे जो कुछ भी कर सकते थे, उन्होंने किया। मेरी बहनें, जिनकी अब शादी हो चुकी है, केवल चौथी-पांचवीं तक ही पढ़ी हैं। मेरी मां शाहीन हाउसवाइफ हैं। मेरे बड़े भाई ने औरंगाबाद में डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर यूनिवर्सिटी से हिंदी में पोस्ट ग्रेजुएशन किया, लेकिन नौकरी नहीं मिली। इसलिए, उन्होंने कपास की खेती शुरू कर दी।
जिंदगी भर रहेगा पिता को खोने का मलाल :
डॉ. यूनुस कहते हैं कि उनकी कड़ी मेहनत ने उन्हें परीक्षा में सफल होने में मदद की, लेकिन उन्हें इस बात का गहरा अफसोस है कि वह पिछले साल अपने पिता की जान नहीं बचा पाए। यूनुस कहते हैं- मैं ICU में था, जब मुझे घरवालों का फोन आया कि पिताजी की तबीयत ठीक नहीं है। जब मैंने अपने गांव के घर से 50 किमी दूर एक प्राइवेट अस्पताल में उनका इलाज कर रहे डॉक्टर को वीडियो कॉल किया, तो पता चला कि उनकी हालत गंभीर है। उन्हें निमोनिया था। मैं इन बीमारियों के इलाज में माहिर हूं लेकिन मैं उनकी जान नहीं बचा सका। मुझे जिंदगीभर इसका मलाल रहेगा।
2022 में हुई शेख यूनुस की शादी :
फरवरी 2022 में डॉ. यूनुस ने अपनी जूनियर महजबीन से शादी की, जो अब उत्तर प्रदेश के बांस-बरेली में एक सर्जिकल स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। बरेली में शादी में शामिल हुए डॉ. यूनुस के परिवार को इस बात पर बेहद गर्व है कि उनका बेटा और बहू डॉक्टर हैं। लखनऊ के राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में काम कर रहीं महजबीन डॉ. यूनुस के संघर्ष की तारीफ करते नहीं थकती हैं। वे कहती हैं- जब मैं अपनी शादी और ससुर के निधन के बाद ससुराल गई तो मुझे महसूस हुआ कि मेरे घरवालों को इस बात पर गर्व है कि हम दोनों डॉक्टर हैं।
भाई की तरह अपने बच्चों को भी डॉक्टर बनाना चाहते हैं असलम :
डॉ. यूनुस के बड़े भाई असलम शेख को उन पर गर्व है। असलम का कहना है कि जालना जिले से मेरे भाई के अलावा कोई भी छात्र एमबीबीएस में दाखिला लेने के लिए प्रतियोगी परीक्षा में चयनित नहीं हो पाया। बता दें कि असलम कपास की खेती से सालाना 60,000 रुपए कमाते हैं और 5 लोगों के परिवार का भरण-पोषण करते हैं। वे कहते हैं- मैं अपने बेटे अरहान असलम शेख को 12 किमी दूर एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ने के लिए भेजता हूं। मेरी बेटी जिया अभी केवल ढाई साल की है। मैं चाहता हूं कि वे मेरे भाई और उनकी पत्नी की तरह डॉक्टर बनें। डॉक्टर बनने के बाद भी यूनुस अपनी जड़ों को नहीं भूला है। वो जब भी घर आता है तो अपने पिता के खेत में जाता है।
कंटेंट : AWAZ The Voice