Rajasthan News: राजस्थान में शुरू साल का सबसे लंबा त्योहार: 16 दिन का उत्सव!, महिलाओं के लिए खास

Published : Mar 17, 2025, 06:48 PM IST
 gangaur festival 2025

सार

gangaur festival 2025 : राजस्थान के लिए सबसे खा गणगौर पर्व शुरू हो गया है। जो 16 दिन तक चलता है, इसमें शिव-पार्वती की पूजा होती है। यह पर्व महिलाओं के सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है। गणगौर पर्व राजस्थानी कला, परंपरा और समाज की एकता को दर्शाता है।

जयपुर. गणगौर पर्व (gangaur festival 2025) राजस्थान का एक प्रमुख लोक पर्व है, जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार शिव-पार्वती के मिलन और पार्वती के सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इसे चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। गणगौर केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि राजस्थानी संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है।

गणगौर पर्व कहां-कहां मनाया जाता है?

 1. राजस्थान में गणगौर का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। विशेष रूप से जयपुर, उदयपुर, जोधपुर, बीकानेर, कोटा, बूंदी और बांसवाड़ा में यह त्योहार भव्य रूप से मनाया जाता है। जयपुर: यहाँ गणगौर की शोभायात्रा बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें सजी-धजी सवारियां निकलती हैं। उदयपुर: यहाँ पिछोला झील के किनारे गणगौर की पूजा होती है और नावों पर शोभायात्रा निकाली जाती है। जोधपुर और बीकानेर: यहाँ गणगौर के मेले लगते हैं, जिनमें लोकनृत्य और गायन होते हैं।

2. मध्य प्रदेश राजस्थान के समीप होने के कारण मध्य प्रदेश में भी गणगौर का विशेष महत्त्व है। मालवा और निमाड़ क्षेत्र: यहाँ की महिलाएं पूरे विधि-विधान से गणगौर माता की पूजा करती हैं। इंदौर और उज्जैन: इन शहरों में भी गणगौर की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है।

3. गुजरात गुजरात में भी यह पर्व मनाया जाता है, विशेषकर मारवाड़ी समुदाय के लोग इसे बड़ी श्रद्धा से मनाते हैं। अहमदाबाद और सूरत: यहाँ राजस्थान से आए प्रवासी गणगौर की पूजा करते हैं।

4. पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में प्रवासी मारवाड़ी समुदाय राजस्थान से बाहर रहने वाले मारवाड़ी समुदाय के लोग भी यह पर्व बड़े उत्साह से मनाते हैं, खासकर कोलकाता, दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में।

गणगौर पूजा की विधि और परंपरा 

गणगौर की पूजा 16 दिन तक चलती है, जिसमें कुंवारी कन्याएं और विवाहित महिलाएं उपवास रखती हैं। वे गीली मिट्टी से ईसर (शिव) और गौर (पार्वती) की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करती हैं।

मुख्य परंपराएं सोलह दिन की पूजा

 महिलाएं सुबह जल्दी उठकर गीली मिट्टी से शिव-पार्वती की मूर्ति बनाती हैं और उन्हें फूलों, मेहंदी, कंगन आदि से सजाती हैं। गीत और भजन: "गौर गऊरा, गोमती ईसर पूजे पग पै..." जैसे पारंपरिक गीत गाए जाते हैं। शोभायात्रा और विसर्जन: अंतिम दिन गणगौर माता की शोभायात्रा निकाली जाती है और नदी या तालाब में उनका विसर्जन किया जाता है।

गणगौर का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

  • यह पर्व महिलाओं के सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है। गणगौर मेले में लोक संस्कृति, नृत्य, संगीत और पारंपरिक वस्त्रों की झलक देखने को मिलती है। यह पर्व राजस्थानी कला, परंपरा और समाज की एकता को दर्शाता है।
  • गणगौर केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि राजस्थानी संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। यह न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे भारत में प्रवासी मारवाड़ी समुदायों द्वारा भी पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

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