
जयपुर, होली का त्योहार (holi celebration) आते ही बाजार रंगों और गुलाल से भर जाते हैं, लेकिन जयपुर में बनी एक खास होली परंपरा (tradition on holi festiva)l फिर से अपनी पहचान बना रही है... गुलाल गोटा (gulal gota)। ये खास लाख की गेंदें न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि पारंपरिक और शाही अंदाज में होली खेलने का अनूठा तरीका भी हैं। नए व्यक्ति के लिए ये एक मिठाई या रंगीन चॉकलेट की तरह लग सकती है, लेकिन असल में यह गुलाल से भरी हुई एक गेंद हैं।
400 साल पुरानी परंपरा गुलाल गोटा का इतिहास करीब 400 साल पुराना है। कहा जाता है कि जयपुर के शाही परिवार इस अनोखे गुलाल से होली खेलते थे। इसे हाथ से बने लाख के पतले खोल में रंग भरकर तैयार किया जाता है, जो फेंकने पर आसानी से टूट जाता है और गुलाल हवा में बिखर जाता है।
बढ़ती मांग, फिर लौट रहा सुनहरा दौर हाल के वर्षों में सस्ते सिंथेटिक रंगों और गुलाल की उपलब्धता के कारण गुलाल गोटा की मांग में गिरावट आई थी, लेकिन अब एक बार फिर लोग पारंपरिक और प्राकृतिक विकल्पों की ओर लौट रहे हैं। खासकर युवा इसे पसंद कर रहे हैं, क्योंकि यह त्वचा के लिए सुरक्षित है और होली खेलने का एक शाही और अनोखा अनुभव प्रदान करता है।
कारीगरों का पुनरुत्थान जयपुर में मणिहारों का रास्ता और अन्य इलाकों में रहने वाले मुस्लिम कारीगर पीढ़ियों से इस कला को जीवित रखे हुए हैं। इनमें से कई कारीगर अब सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए अपने गुलाल गोटों की बिक्री कर रहे हैं। कारीगर गुलाम मोहम्मद बताते हैं, पहले यह परंपरा केवल शाही परिवारों तक सीमित थी, लेकिन अब देशभर के मंदिरों, होली कार्यक्रमों और पार्टियों में भी गुलाल गोटा की मांग बढ़ रही है।
गुलाल गोटा पूरी तरह से प्राकृतिक और जैविक होता है। इसे बनाने में किसी भी प्रकार के रासायनिक रंगों या प्लास्टिक का उपयोग नहीं किया जाता। इसके विपरीत, पानी के गुब्बारे और सिंथेटिक रंग त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। गुलाल गोटा बाजार में 6 पीस का सेट करीब 150 रुपये में उपलब्ध है। इसे जयपुर के स्थानीय बाजारों के अलावा ऑनलाइन भी खरीदा जा सकता है।
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