
how to cultivate red dates : जोधपुर/जैसलमेर/बाड़मेर, राजस्थान की तपती रेत अब सिर्फ रेत नहीं रही, बल्कि उसमें लाल चमकते फल उग रहे हैं — ADP-1 किस्म का लाल खजूर, जिसे आयुर्वेद में 'गुना की खान' और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। जोधपुर, जैसलमेर और बाड़मेर जैसे शुष्क जिलों में इस खजूर की खेती किसानों की किस्मत बदलने वाली साबित हो रही है। वह रेगिस्तान से लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं।
केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी), जोधपुर द्वारा विकसित की गई यह नई किस्म, अब थार के रेगिस्तान में भी बंपर पैदावार दे रही है। यहां के किसान अब विदेशी फल कहे जाने वाले खजूर की पैदावार से लाखों की कमाई कर रहे हैं।
ADP-1 किस्म का यह खजूर न केवल तेज गर्मी को सहन करता है, बल्कि इसकी मिठास भी उत्कृष्ट है। इसका रंग गहरा लाल होता है और स्वाद अत्यंत मीठा। एक पेड़ से 60 से 180 किलो तक उपज मिलती है और यह 30 वर्षों तक लगातार फल देता है।
जोधपुर में मिला जीवन काजरी ने इस किस्म को 2015 में गुजरात के आनंद कृषि विश्वविद्यालय से मंगवाया था। टिशू कल्चर तकनीक से तैयार पौधों को संस्थान ने पश्चिमी राजस्थान की जलवायु में अनुकूलित किया, जिसके नतीजे अब ज़मीन पर नजर आ रहे हैं।
इन जिलों के कई किसानों ने अब पारंपरिक बाजरा या मूंग की खेती छोड़कर खजूर की बागवानी शुरू की है। एक हेक्टेयर में करीब 150 पौधे लगाए जाते हैं, जिनमें हर साल हाथ से परागण कराना होता है। ADP-1 किस्म की बाजार में कीमत अच्छी मिलती है और इसका व्यापार बढ़ रहा है।
टिशू कल्चर में खजूर के ऊतक से पौधे तैयार किए जाते हैं। यह प्रक्रिया नियंत्रित लैब में होती है जहां हार्मोन और पोषक तत्वों से एक ऊतक को सैकड़ों पौधों में बदला जाता है। इससे एक समान, मजबूत और जल्दी फल देने वाले पौधे तैयार होते हैं।
रेगिस्तान को बनाएं हरित प्रदेश काजरी के कार्यकारी निदेशक डॉ. सुमंत व्यास कहते हैं कि ADP-1 किस्म ने साबित कर दिया कि थार की धरती अब सिर्फ रेत नहीं, उपज भी दे सकती है। यह मॉडल पूरे शुष्क भारत के लिए एक उदाहरण बन सकता है।
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