राजस्थान से हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां साइबर ठगों ने ऐसी खतरनाक ट्रिक अपनाई की जिन गरीब परिवारों के पास रुपया नहीं था फिर भी इनसे आरोपियों ने करोड़ों रुपए ठग लिए। जब पुलिस ने आरोपियों को पकड़ पूछताछ की तो उनका तरीका जानकार हैरान हो गई।
जयपुर (jaipur news). अक्सर आपने देखा, सुना और पढ़ा होगा कि या तो सामान्य परिवारों से या अमीर परिवारों से लाखों करोड़ों रुपयों की ठगी की जाती है, लेकिन क्या आपने सुना है गरीब परिवार जिनके पास शाम के खाने का बंदोबस्त तक नहीं उनसे भी करोड़ों रुपयों की ठगी कर ली गई है। जयपुर में इसी तरह की एक गैंग को पकड़ा गया है। गैंग के पांच बदमाशों के पास से करीब 10 लाख रुपए कैश, दो लग्जरी गाड़ियां, 200 लोगों की फोटो, 3 दर्जन से ज्यादा सिम, 20 से ज्यादा मोबाइल फोन, डेढ़ सौ खाली चेक, स्टांप और बड़ी संख्या में मोहरे बरामद की गई है। यह पांचो गरीबों को ठगते थे और अय्याशी करते थे। पूरा घटनाक्रम सोडाला थाना इलाके का है।
पीएम आवास लोन और सरकारी ऋण के नाम करते थे ठगी
पुलिस ने बताया कि विकास, विशाल, रविकांत, योगेश और रामअवतार को अरेस्ट किया है। सोडाला पुलिस ने बताया कि कुछ दिन पहले सोनू मेहरा नाम की एक महिला ने सोडाला थाने में केस दर्ज कराया था कि कुछ लोगों ने उसे प्रधानमंत्री आवास ऋण और अन्य सरकारी ऋण देने के नाम पर दस्तावेज दिए। उनसे बैंक खाता खुलवाया और बाद में जब उसके खाते में रुपए आए तो इन रुपयों को अपने खातों में ट्रांसफर कर लिया। अब बैंक उनके खातों से किस्त काट रही है, जो उसकी बचत में से काटा जा रहा है।
एनजीओ सदस्य बनकर गरीबों को अपने जाल में फंसाते थे
पुलिस ने जांच पड़ताल की और आखिर 3 दिन तक लगातार नजर रखने के बाद पांच ठगों को गिरफ्तार कर लिया। सोडाला पुलिस ने बताया कि सबसे पहले गरीब परिवारों को टारगेट कर, उन लोगों से मिलते जिनको रुपयों की जरूरत होती है। उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ बता कर खाता खुलवाने की बात करते हैं और खुद को एनजीओ वाला बताते थे। उसके बाद ये लोग गरीबों के अकाउंट से खाता खोलने के लिए जो सरकारी और निजी दस्तावेजों की जरूरत पड़ती, उनके लिए सरकारी कर्मचारियों और बैंकों के कर्मचारियों से सांठगांठ कर लेते थे। फर्जी दस्तावेज बनवाते और बैंक अकाउंट खोलने से सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता तो सही, नहीं तो गरीबों के नाम से पर्सनल लोन तक उठा लेते थे।
3 महीने बाद पता चलता था की हो गई ठगी
पीड़ितों को करीब 3 से 4 महीने के बाद पता लगता कि उनको कर्ज की किस्त देनी है। पुलिस ने बताया कि पीड़ित परिवारों को पता ही नहीं लगता क्योंकि कर्ज लेने के बाद यह लोग अक्सर पता बदल देते थे। बाद में बैंक वाले जैसे तैसे पीड़ितों तक पहुंचते, तब जाकर पूरे मामले का खुलासा होता था।
पुलिस का कहना है कि करोड़ों रुपयों की हेराफेरी की गई है और इसमें सरकार के कई विभागों के अलावा कई निजी एवं सरकारी बैंकों की कर्मचारी भी शामिल हो सकते हैं। लालच देकर या उनसे झूठ बोलकर जरूरी दस्तावेज बनवाए गए थे। फिलहाल सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश किया गया है और उन्हें रिमांड पर लिया गया है।
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