नेतागिरी नशा है, कई सरकारी कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ राजनीति की राह पकड़ी

राजनीति ऐसा नशा है कि एक बार चढ़ जाए तो जल्दी उतरता नहीं है। राजस्थान के कई ऐसे सरकारी कर्मचारी हैं जिन्होंने नौकरी छोड़कर राजनीति शुरू कर दी और चुनाव भी जीते। कई ऐसे हैं जिन्होंने चार-चार बार विधायक चुनाव में जीत हासिल की हैं। 

जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने में अब करीब 26 दिन का समय बचा हुआ है। 26 वें दिन राजस्थान में मतदान होना है। इस बार कई दिग्गज नेता चुनावी मैदान में हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि चुनाव लड़ने का चस्का केवल नेताओं को ही नहीं, सरकारी कर्मचारियों को भी है। वह भी ऐसा कि नेतागिरी के लिए उन्होंने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी और राजनीति की राह पर चल पड़े।

हाड़ौती से 6 सरकारी कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ चुनाव लड़ा
राजस्थान के हाड़ौती इलाके से करीब 6 सरकारी कर्मचारी ऐसे रहे जिन्होंने नौकरी छोड़कर चुनाव लड़ा और विधायक भी बने। इस लिस्ट में पहला नाम है ललित किशोर चतुर्वेदी का जो उच्च शिक्षा विभाग में प्रोफेसर थे। पहली बार तो इन्होंने 1977 में चुनाव लड़ा और फिर इसके बाद 1980 से लेकर 1990 और फिर 1993 में विधायक के पद का चुनाव जीता। वहीं कैबिनेट मंत्री और राज्यसभा सांसद की जिम्मेदारी भी संभाली।

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कोटा के शिक्षक बन गए नेता
इसी तरह कोटा की पीपल्दा विधानसभा सीट से हीरालाल आर्य पहले टीचर थे लेकिन उन्होंने वर्ष 1977 में चुनाव लड़ा और जीते भी। उसके बाद 1980 से 1993 तक वे राजनीति में सक्रिय हो गए और चुनाव भी लगातार जीता। हीरालाल चार बार विधायक रहे। वहीं इसी सीट से प्रभुलाल महावर को साल 2003 में मौका दिया गया जो इरीगेशन डिपार्टमेंट के सहायक इंजीनियर थे। उन्होंने 415 वोटो से चुनाव जीता।

बैंक की नौकरी छोड़ चुनाव लड़े
बाबूलाल वर्मा भी बैंक की नौकरी छोड़कर 1993 में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। फिर इसके बाद 2003 और 2013 में भी केशोरायपाटन से विधायक चुने गए। इसी तरह सीएल प्रेमी, रामपाल मेघवाल भी नौकरियां छोड़कर चुनाव लड़े और जीत हासिल की। वहीं इस बार इस इलाके के डॉ. दुर्गा शंकर सैनी सहित अन्य कर्मचारी चुनाव लड़ने के मूड में है।

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