राजस्थान के पाली जिले के बाबूलाल, जो खुद दृष्टिहीन हैं, ब्रेललिपि के माध्यम से बच्चों को संस्कृत पढ़ाते हैं। 9 साल की उम्र में बीमारी के कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी, उन्होंने हार नहीं मानी और शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं।
पाली. देशभर में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाएगा, इसी उपलक्ष्य में हम आपको राजस्थान के ऐसे टीचर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने आंखों की रोशनी नहीं होने के बावजूद हजारों छात्र-छात्राओं का जीवन संवार दिया है।
ब्रेललिपि से देते है शिक्षा
राजस्थान में एक ऐसे भी शिक्षक हैं जो खुद तो आंखों से देख नहीं सकते हैं, लेकिन उन्होंने पढ़ाते हुए अपने हजारों स्टूडेंट की जिंदगी को रोशन कर दिया है। वे स्टूडेंट्स को ब्रेललिपि के जरिए पढ़ाते हैं। दरअसल, हम बात कर रहे हैं पाली जिले के कुर्णा गांव निवासी बाबूलाल की,जो वर्तमान में पाली जिले के बालिया में स्कूल टीचर है। यहां बच्चों को संस्कृत पढ़ाते हैं। इन्हें स्कूल में पढ़ाते हुए कई साल हो गए। इनके स्टूडेंट आज संस्कृत सब्जेक्ट में महारथ हासिल करके पीएचडी भी कर चुके हैं।
बचपन में चली गई थी रोशनी
टीचर बाबूलाल बताते हैं कि जब वह 9 साल के थे तब उन्हें टाइफाइड हो गया था। घरवाले ज्यादा पढ़े लिखे हुए नहीं थे। ऐसे में उन्होंने देसी दवाइयां दी। जिसके चलते बाबूलाल की आंखों की रोशनी कम होती गई। बाबूलाल ने स्कूल में एडमिशन ले रखा था लेकिन वहां ज्यादा दिखे न पाने के कारण और पढ़ाई पर ज्यादा जोर देने के कारण बाबूलाल की आंखें और भी ज्यादा खराब हो गई। उन्हें दिखाना बंद हो गया। इसलिए उन्होंने ब्रेललिपि से पढ़ाई करना शुरू कर दिया।
12 साल की उम्र में हुआ एडमिशन
जब वे 12 साल के थे तब उनका एडमिशन पहली कक्षा में हुआ था, 2002 में उन्होंने जोधपुर में ग्रेजुएशन कर ली और इसके बाद 2007 में दिल्ली में दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने के लिए बीएड किया। राजस्थान आकर 2008 में एमए की पढ़ाई पूरी कर ली। 2008 में थर्ड ग्रेड टीचर के रूप में बाबूलाल को ज्वाइनिंग मिल गई। इसके बाद से वह लगातार कई स्कूल में स्टूडेंटस को पढ़ा चुके हैं।इनकी पत्नी शांति देवी दोनों पैरों से दिव्यांग है। दोनों एक दूसरे की मदद करके आज जीवन जी रहे हैं।
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