Rajasthan High Court : ने शादी से पहले गंभीर मानसिक बीमारी छिपाने को धोखाधड़ी मानते हुए सिजोफ्रेनिया से पीड़ित पत्नी के विवाह को शून्य घोषित किया। कोर्ट ने कहा कि यह बीमारी वैवाहिक जीवन असंभव बनाती है, इसलिए पति को राहत दी गई।
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एक झूठ और विवाह शून्य
भारत में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत किसी भी पक्ष द्वारा गंभीर मानसिक बीमारी छिपाने पर विवाह को शून्य घोषित किया जा सकता है। विवाह वैध नहीं होगा।
Marriage Annulment : राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि विवाह से पहले गंभीर मानसिक बीमारी की जानकारी छिपाना धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है। अदालत ने सिजोफ्रेनिया से पीड़ित महिला के विवाह को शून्य घोषित करते हुए कहा कि यह बीमारी केवल अस्थायी मानसिक तनाव नहीं, बल्कि ऐसी गंभीर अवस्था है जो सामान्य वैवाहिक जीवन को बाधित कर सकती है।
क्यों राजस्थान हाईकोर्ट ने सुनाया ये बड़ा फैसला?
यह मामला कोटा के एक दंपत्ति से जुड़ा है। वर्ष 2013 में हुई इस शादी के कुछ ही समय बाद पति को पता चला कि पत्नी मानसिक रोग ‘सिजोफ्रेनिया’ का इलाज करवा रही थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि विवाह के बाद पत्नी का व्यवहार असामान्य था और पीहर से आए सामान में मिले एक पर्चे से इस बीमारी का खुलासा हुआ। पति ने आरोप लगाया कि बीमारी छिपाने के कारण वैवाहिक संबंध भी स्थापित नहीं हो सके।
इसके विपरीत, पत्नी ने अदालत में दावा किया कि वह किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं थी। शादी से कुछ समय पहले मां और बहन की दुर्घटना के चलते वह अवसाद में थी। साथ ही, उसने पति और ससुराल वालों पर दहेज उत्पीड़न का आरोप भी लगाया।
फैमिली कोर्ट ने अगस्त 2019 में पति की याचिका खारिज कर दी थी। इस फैसले को चुनौती देते हुए पति ने हाईकोर्ट का रुख किया। जस्टिस इन्द्रजीत सिंह और जस्टिस आनंद शर्मा की खंडपीठ ने सभी साक्ष्यों और तर्कों पर विचार करते हुए स्पष्ट किया कि विवाह से पहले ऐसी गंभीर मानसिक स्थिति को छिपाना हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12(1)(ब) के तहत धोखाधड़ी है।
अदालत ने आदेश में तलाक और विवाह को शून्य घोषित करने के बीच का फर्क भी स्पष्ट किया। तलाक में विवाह को शुरू से वैध मानते हुए बाद में समाप्त किया जाता है, जबकि शून्य विवाह की स्थिति में माना जाता है कि विवाह हुआ ही नहीं था। शून्य विवाह घोषित होने पर भरण-पोषण और अन्य वैवाहिक अधिकार स्वतः समाप्त हो जाते हैं।
यह फैसला न केवल विवाह संबंधी कानूनी मामलों के लिए मिसाल है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि शादी से पहले स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति की पारदर्शिता कितनी जरूरी है। अदालत का यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करेगा।
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