
जयपुर. राजस्थान के कई जिलों में ऐसे किसान हैं जिन्होनें प्रकृति के विपरित होने के बाद भी खेती बाड़ी में कई आविष्कार और प्रयोग कर डाले। इसके लिए धैर्य और लगातार मेहनत जारी रखी, देर से ही सही परिणात उनके पक्ष में आए। उनमें से कुछ को तो राष्ट्रपति अवार्ड तक मिला, वह भी एक बार नहीं दो - दो बार। ऐसी ही एक महिला किसान राजस्थान के सीकर जिले में रहती हैं और उनका नाम संतोष पचार है। जैसा नाम है वैसा ही उनका काम है, बेहद सावधानी और धैर्य पूर्वक काम करते हुए उन्होनें गाजर के बीच की नई किस्म ही तैयार कर डाली।
सीकर के छोटे से गांव में रहती हैं संतोष देवी
दरअसल, सीकर जिले के एक गांव में रहने वाली संतोष देवी आठवीं तक पढ़ी हुई है। खेती की जमीन होने के कारण खेती में हाथ बंटाती रहीं हैं। खेती के साथ ही परिवार और समाज का जिम्मा भी उनके उपर ही है। गाजर की खेती करने वाली संतोष का कहना था कि गाजर कम लंबी, आड़ी - तिरछी होने के कारण दाम कम मिलते थे। उनको सही करने का आइडिया नहीं मिल रहा था। ऐसे में कई बार राज्य सरकार की ओर से आयोजित किए जाने वाले मेले और वर्कशॉप में जाना शुरू किया और वहां से कुछ जानकारियां जुटाई।
संतोष देवी के पास दूर-दूर से ट्रेनिंग लेने आते हैं किसान
संतोष देवी ने गाजर के बीज पर देसी गाय के घी और शहद से कुछ प्रयोग किया और बीजों की गुणवत्ता को बदलने की कोशिश की गई। कुछ समय में ही परिणाम सामने आने लगे। उत्पादन में समय कम लगने लगा, छीजत कम होने लगी और गाजर करीब डेढ़ फीट तक लंबी होने लगी। हर साल करीब दो से ढाई लाख रूपए का मुनाफा ही कमा पाते थे, ये बढ़कर पचास लाख तक पहुंचने लगा। संतोष देवी पचार ने कुछ साल के दौरान करीब दस हजार से भी ज्यादा किसानों को इस खास तकनीक का ज्ञान दिया है। उनको साल 2013 और 2017 में राष्ट्रपति पदक भी मिल चुका है। उनसे ट्रेनिंग लेने के लिए दूर दूर से किसान आते हैं।
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