
अयोध्या। मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष पंचमी, अर्थात विवाह पंचमी के पावन अवसर पर अयोध्या धाम तथा पूरे विश्व ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के पूर्णत्व का ऐतिहासिक क्षण देखा। मंगलवार को मंदिर के शिखर पर भगवा ध्वज आरोहण समारोह आयोजित हुआ। इस अवसर पर आरएसएस के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि यह दिन हम सभी के लिए अत्यंत सार्थक और पूर्णता का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि वर्षों से अनेक संतों, कार्यकर्ताओं और रामभक्तों ने मंदिर निर्माण के लिए अपना सब कुछ समर्पित किया। कई लोगों ने इस अभियान के लिए प्राणार्पण भी किया। आज उनके त्याग की आत्मा तृप्त होगी। उन्होंने विशेष रूप से अशोक सिंघल, महंत रामचंद्र दास, डालमिया जी और अनेक संतों का स्मरण किया। भागवत ने कहा कि जो लोग इस दुनिया से जा चुके हैं, वे भी इसी कामना के साथ गए थे कि भव्य राममंदिर अवश्य बनेगा, जो आज साकार हो चुका है।
सर संघचालक ने कहा कि मंदिर निर्माण की शास्त्रीय प्रक्रिया पूरे विधि-विधान से पूरी हो गई और भगवा ध्वज शिखर पर स्थापित हो चुका है। यह दिन इतिहास में पूर्णत्व और कृतार्थता का दिवस बन गया है। यह हमें अपने संकल्प को फिर से दोहराने की प्रेरणा देता है।
डॉ. भागवत के अनुसार, रामराज्य का यह भगवा ध्वज एक बार फिर अयोध्या में अपने सर्वोच्च स्थान पर विराजमान है। उन्होंने कहा कि जैसे ध्वज को शिखर तक पहुंचने में समय लगा, वैसे ही मंदिर निर्माण भी धैर्य और संकल्प का परिणाम है। उन्होंने कहा कि यह भगवा रंग धर्म, सत्य, त्याग और तप का प्रतीक है।
उन्होंने बताया कि ध्वज पर बने ‘कोविदार’ का प्रतीक रघुकुल की परंपरा से जुड़ा है। यह वृक्ष कचनार की तरह है, जो धूप में खड़े रहकर दूसरों को छाया देता है और अपने फल सबके साथ बांटता है। इसी तरह सत्पुरुष भी समाज के हित के लिए कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल हों, धर्म के मार्ग पर चलना ही हमारा कर्तव्य है।
भागवत ने सूर्य देव के रथ के प्रतीकों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका चक्र, रथ व लगाम प्रतीकात्मक रूप से यह बताते हैं कि कठिन परिस्थितियों में भी निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि सत्य का प्रतिनिधित्व ‘ओंकार’ करता है और इसी आध्यात्मिक शक्ति को दुनिया तक पहुंचाने की भूमिका भारत को निभानी है।
सर संघचालक ने कहा कि भारत की जिम्मेदारी है कि वह ऐसा चरित्र गढ़े जिससे दुनिया जीवन जीने की सही दिशा सीखे। उन्होंने कहा कि “पृथ्वी के सभी मानव भारतवासियों के आचरण से जीवन की विद्या सीखें”— यही भारत की ऐतिहासिक भूमिका है। उन्होंने कहा कि श्रीरामलला अब विराजमान हैं, और इससे प्रेरणा लेकर हमें भारत को धर्म, ज्ञान और कल्याण का केंद्र बनाना है।
समारोह के अंत में उन्होंने कहा कि रामदास स्वामी का यह वचन- “जैसा सपना मैंने देखा था, उससे भी अधिक सुंदर मंदिर आज बन गया”- अब सत्य हो चुका है। उन्होंने सभी सनातन धर्मावलंबियों और देशवासियों को शुभकामनाएं दीं और कहा कि यह अवसर हमारे भीतर तप, कर्तव्य और समर्पण की भावना जगाए।
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